आरएसएस के शताब्दी वर्ष पर पिटोल में भव्य पथ संचलन, 500 से अधिक स्वयंसेवकों ने भरी हुंकार; धर्मांतरण रोकने पर जोर

वक्ताओं ने कहा-धर्म की रक्षा के लिए हिन्दू समाज को संगठित होने की ज़रूरत 

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भूपेंद्र नायक, पिटोल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के गौरवमयी स्थापना के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में, माँ भारती की सेवा को परम ध्येय मानकर कार्य करने वाले स्वयंसेवकों द्वारा पिटोल नगर में एक विशाल और भव्य पथ संचलन निकाला गया। लगभग 500 से अधिक स्वयंसेवकों की उत्साहपूर्ण सहभागिता से पूरा शहर “कदमों के ताल” से गूंज उठा। जगह-जगह समाजों और संगठनों ने पुष्प वर्षा कर और जयकारे लगाकर संचलन का स्वागत किया। इस अवसर पर वक्ताओं ने आरएसएस के 100 वर्षों के राष्ट्र निर्माण के योगदान को रेखांकित किया, वहीं आदिवासी समाज में हो रहे ईसाई धर्मांतरण को एक गंभीर चुनौती बताते हुए इस पर तत्काल चिंतन करने और सनातनी हिन्दुओं की एकता पर बल दिया।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने पिछले 100 वर्षों में न केवल भारतीय समाज के उत्थान और सशक्तिकरण की दिशा में अभूतपूर्व प्रयास किए हैं, बल्कि देश की एकता, अखंडता और समृद्धि के लिए भी अनमोल योगदान दिया है। संघ के प्रत्येक स्वयंसेवक ने अपनी निष्ठा, संकल्प और कर्तव्यनिष्ठा के साथ भारतीय संस्कृति, गौरव और राष्ट्र की सेवा में अविरत कार्य किया है। संघ का यह शताब्दी वर्ष अतीत की उपलब्धियों के उत्सव के साथ ही भविष्य के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का अवसर भी है।

वीर सपूतों का स्मरण और हिन्दू एकता पर बल

मुख्य अतिथि कालू सिंह चरपोटा, जिला शारीरिक प्रमुख, ने अपने बौद्धिक का प्रारंभ हल्दीघाटी के वीर योद्धा राणा पुंजा भील के जन्म दिवस पर उनका स्मरण कर किया, साथ ही डॉ. हेडगेवार जी और श्री गुरुजी ओर भारत माता को भी याद किया। उन्होंने कहा कि हम भाग्यशाली हैं कि हमने भारत में हिंदू धर्म में जन्म लिया और उससे भी अधिक गर्व का विषय है कि हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं। उन्होंने ज़ोर दिया कि विभिन्न जातियों में बांटने के षड्यंत्रों के बावजूद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही एकमात्र ऐसा संगठन है जो समस्त हिंदू समाज को संगठित करने का कार्य करता आ रहा है। उन्होंने मुगलों और अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजाद कराने में आदिवासी समाज के योगदान और मानगढ़ के शहीदों के बलिदान का भी उल्लेख किया।

धर्मांतरण पर संत शिरोमणि गंगूराम जी महाराज का प्रेरक उद्बोधन

मुख्य वक्ता, आदिवासी समाज के संत शिरोमणि श्री गंगूराम जी महाराज (गुजरात देहदा) ने धर्मांतरण को लेकर आदिवासी समाज को जागृत करने के लिए एक प्रेरक उद्बोधन दिया। उन्होंने सरपंचों, तड़वी और पटेलों को चेताते हुए कहा कि राम को मानने वाले आदिवासी समाज को सामाजिक तत्वों द्वारा अनपढ़ और भोले भालेपन का फायदा उठाकर धर्मांतरित कर ईसाई बनाया जा रहा है। उन्होंने इसे रोकने के लिए कठोर निर्णय लेने का आह्वान किया, जिसमें ईसाई बने लोगों के साथ सामाजिक मेलजोल और वैवाहिक संबंध बंद करने की बात कही। उन्होंने स्पष्ट कहा कि यदि आदिवासी समाज को बचाना है, तो ईसाई धर्म में परिवर्तित हुए लोगों की घर वापसी करानी होगी। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि केवल आदिवासी समाज ही क्यों ईसाई बन रहा है, अन्य समाज के लोग क्यों नहीं।

संघ स्थापना का उद्देश्य और लोकतंत्र में भूमिका

वक्ताओं ने बताया कि एक समय जब हिंदुत्व के भाव में कमी आई और विदेशी आक्रांताओं ने राज किया, तब 1921 में जेल के दौरान डॉ. हेडगेवार जी ने चिंतन किया। उन्होंने पाया कि समाज में आई विकृति को दूर कर हिंदू समाज को संगठित करने हेतु ही 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की गई। तमाम उपहास के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और निरंतर संघ कार्य करते हुए समाज जागरण का कार्य किया, जिसके परिणामस्वरूप संघ की एक घंटे की शाखा से व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का कार्य बढ़ता गया। उन्होंने यह भी कहा कि देश में लोकतंत्र की स्थापना में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

उत्साह का चरम और सुरक्षा व्यवस्था

शताब्दी वर्ष में निकला यह पथ संचलन पिछले वर्षों के संचलनों की तुलना में ना केवल बृहद था, अपितु स्वयंसेवकों की उपस्थिति अखंड भारत का स्वरूप दिखा रही थी। पिछले एक माह से स्वयंसेवकों की टोलियों ने घर-घर जाकर संचलन में सम्मिलित होने का न्योता दिया था, जिसकी सार्थकता इस कारवां ने बयां कर दी।

संचलन के दौरान पुलिस की कड़ी निगरानी रही। पिटोल पुलिस चौकी प्रभारी अशोक बघेल के साथ अन्य अधिकारियों और जवानों ने यातायात व्यवस्था और अन्य सुरक्षा व्यवस्थाओं को संभाला। कार्यक्रम में एकल गीत, अमृत वचन व प्रार्थना हुई और सुंदर रंगोली भी आकर्षण का केंद्र रही। अंत में आभार खण्ड संघ चालक प्रभारी डॉ. जगदीश खतेड़िया ने माना।

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