आदिवासी छात्राओं की व्यथा और रसोइयों की पीड़ा, छात्रावास की रसाइयों को 13 महीने से वेतन का इंतजार, छात्राओं से कराई जा रही सफाई

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भूपेंद्र नायक, पिटोल
आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित गांव बावड़ी छोटी के कन्या परिसर छात्रावास में 416 छात्राएं और 6 रसोइए अपनी मूलभूत समस्याओं के समाधान के लिए जूझ रहे हैं। यहां न तो छात्राओं को साफ-सफाई की सुविधा मिल रही है और न ही भोजन का उचित समय, वहीं दूसरी ओर रसोई का काम करने वाली महिलाओं को पिछले 13 महीने से वेतन नहीं मिला है। विभाग और अधिकारियों की लापरवाही से इन सभी का भविष्य खतरे में है।

वेतन के बिना 15 घंटे काम करती हैं रसोइए
छात्रावास में काम करने वाली 6 रसोइयों को पिछले 13 महीनों से वेतन नहीं मिला है। उनका मासिक वेतन सिर्फ 5,000 रुपये है, जबकि वे रोज सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक, यानी करीब 15 घंटे काम करती हैं। यह मनरेगा की दैनिक मजदूरी (261 रुपये) से भी कम है। उन्हें 2024 में केवल पांच महीनों का वेतन मिला था, जिसके बाद से आज तक कोई भुगतान नहीं हुआ है। रसोइयों ने बताया कि वे अधिकारियों और प्राचार्य से कई बार गुहार लगा चुकी हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ आश्वासन मिलता है।

छात्राएं खुद करती हैं सफाई
परिसर में साफ-सफाई के लिए दो स्वीपर नियुक्त किए गए हैं, लेकिन उनका वेतन केवल 2,500 रुपये होने के कारण वे काम पर नहीं आते। इसी कारण, छात्राओं को शौचालय, बाथरूम और कैंपस की सफाई खुद करनी पड़ती है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है।

भोजन के समय से परेशान छात्राएं
छात्राओं ने भोजन के समय को लेकर भी अपनी परेशानी जाहिर की है। उन्हें सुबह 10 बजे स्कूल जाने से पहले नाश्ता मिलता है, दोपहर का भोजन 1 बजे और रात का भोजन सीधा 8 बजे दिया जाता है। इस लंबे अंतराल के कारण उन्हें भूख से परेशान होना पड़ता है। छात्राओं ने अधिकारियों से भोजन का समय बदलने की मांग की है।

अधिकारियों की लापरवाही, भविष्य से खिलवाड़
परिसर में मौजूद मीडिया कर्मियों को रसोइयों ने बताया कि कोई भी अधिकारी निरीक्षण के लिए आता है तो वे अपनी समस्याएं रखती हैं, लेकिन उनकी कोई नहीं सुनता। सूत्रों के अनुसार, यहां के जिम्मेदार अधिकारी अपनी साख बचाने के लिए छोटे कर्मचारियों पर दबाव बनाते हैं, जिससे समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता। इस लापरवाही से छात्राओं का भविष्य और रसोइयों का जीवन दोनों प्रभावित हो रहे हैं।

जिम्मेदार बोले
कन्या परिसर में कार्यरत रसोयइयन का रुका हुआ वेतन दिलाने के लिए बिल लगाए हुए हैं। ट्रेजरी में आपत्ति आ जाने के कारण उसे हटवा कर बिल लगाए गए हैं। रसोयइयन की समस्या का जल्दी समाधान होगा।
सुप्रिया बिसेन, सहायक आयुक्त, जनजाति कल्याण विभाग, झाबुआ

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