चार्तुमास में चहुंओर बह रही धर्म की गंगा

May

झाबुआ लाइव के लिए पारा से राज सरतलिया की रिपोर्ट-
अनादि से हम सिर्फ मिथ्यात्व से 84 लाख योनियों में भव भ्रमण कर रहे हैं और निगोद के असहनीय दुखो को सहन भी कर रहे हैं क्योंकि निगोद हमारी जन्मभूमि है और निगोद में हमने एक सांस में 18 बार जन्म मरण किए। असंख्य दुखों को सहने के बाद भी हमें संसार में बने रहने की इच्छा होना ही तीव्र मोह है और इसी मोहवश हम परद्रव्य को अपनापन कर अनंत दुखो को आमंत्रण दे रहे हैं। संसार के क्षणिक सुख जो वास्तव में सुख हैं ही नहीं किन्तु सिर्फ सुख की मृगतृष्णा की भांति हैं और उसी काल्पनिक सुख की चाह में मनुष्य अनादिकाल से अनंत दुखो सहन कर रहा है और इसके बाद भी वो भव भ्रमण से बहार निकलने की कोशिश ही न करें तो उसका एक प्रमुख कारण पर पदार्थ के प्रति तीव्र आशक्ति ही है। उक्त प्रेरणास्पद प्रवचन आचार्य देवेश सुविशाल गच्छाधिपति श्रीमद् विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी की सुशिस्या साध्वी अविचलदृष्टाश्रीजी ने पारा चार्तुमास के दौरान अपने प्रवचन में कही। साध्वीजी ने कहा कि मिथ्यात्व के कारण पर से अपनापन करने की आदत होने की वजह से हम खुद अपने आप को ही भूल गए है। हमें एक बार पर से विराम लेकर स्वयं को खोजने के लिए समय निकालना चाहिए। हमने जन्म लेने से लेकर आज तक सिर्फ पर के लिए ही सब पुरुषार्थ किया। आगमों में लिखा गया उठो जागो लेकिन संसार में नही अपने शरीर से नही अपितु यह जागरण है अंतरात्मा का। जब एक इंसान भीतर से जागता है तब वह पाता है की जो जिंदगी में जी रहा रहा था वो तो जिंदगी को काटने जैसा था। प्रत्येक जीव सुख की इच्छा रखता है तो पूर्ण सुख आज तक किसने प्राप्त किया ए इसलिए आगम मे कहा है यदि हम मुक्ति चाहते हैं तो सभी तरह के सांसारिक विषयों को विष के समान मान कर छोड़कर क्षमा, मार्जव, आर्जव, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन, ब्रम्हचर्य आदि आत्मा के अमृत गुणों का सेवन करें तभी हम मोक्ष लक्ष्मी का वरण कर त्रिलोक के सम्राट बनेगें। इसलिये ये दुर्लभ मनुष्य मिलने का सही उपयोग सिर्फ एक मात्र आत्मा को प्राप्त करने में लगाना चाहिए और भव का अभाव करना चाहिये।
दर्शन के लिए आया मुंबई संघ
पारा में चार्तुमास हेतु विराजित साध्वी अविचल दृष्टाश्रीजी मसा आदि ठाणा 7 के दर्शन वंदन के लिए मुम्बई श्रीसंघ के सदस्य शनिवार को पारा आए।

गुरुवर्या साध्वी शशिकलाश्रीजी की पुण्यतिथि मनाई
साध्वी अविचल दृष्टाश्रीजी की गुरुवर्या पण्पुण्साध्वी शशिकला श्रीजी की चतुर्थ पुण्यतिथि जप, तप के साथ मनाई गई। अपनी गुरुणी को याद करते साध्वीजी मसा ने कहा कि वे शांत सरल स्वभावी थी हम उनके नाम से जाने जाते हैं उनकी लगभग 125 से ज्यादा शिष्या रही। साध्वीजी ने हम सभी को पुण्य सम्राट जयंतसेन सूरीश्वरजी के हाथो दीक्षाएं दिलवाई। साध्वीजी की चतुर्थपुण्य स्मरणार्थ दोपहर 2 से 3 तक महिलाओं और पुरुषो ने सामायिक की । इस उपलक्ष्य में प्रभावना भी वितरित की गई।
पक्खी पर्व मनाया
चतुर्मास में पक्खी पर्व विविध तप आराधनाओं के साथ जिसमें एकासना, आयंबिल, नीवी आदि कर तपस्वियों ने पचखाण लेकर क्रिया के साथ मनाया। शाम को पक्खी प्रतिक्रमण किया गया जिसमें सकलाहर्थ, अठारह पाप स्थानक, सात लाख सूत्र, अतिचार सूत्र से 84 लाख जीव योनियों से क्षमा याचना की गई। रविवार को नवकार मंत्रए शंखेश्वर पार्श्व प्रभु के जाप विधि विधान मंत्रोच्चार के साथ होंगें। साथ ही लाभार्थी परिवारों द्वारा विभिन्न आयोजन भी किए जाएगें।