ग्राउंड रिपोर्ट: “मौत” की नींद “सोते” “राष्ट्रीय पक्षी मोर”; हैरान करने वाले आंकड़े …

May

सलमान शैख़@ झाबुआ Live..

मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है, लेकिन झाबुआ जिले के पेटलावद क्षेत्र में मोर की जिंदगी पर खतरा मंडरा हुआ दिख रहा है। एक के बाद एक करकर मोरो की जान पर आफत आई हुई है और लगातार मौत होने के बाद जिला प्रशासन और वन विभाग कागजी खानापूर्ति करके चेन की नींद सोया हुआ है।

दरअसल, शहर सहित ग्रामीण अंचलो में दोबारा मोरो की मौतो का सिलसिला चल पड़ा है। ऐसे में जब गर्मी की प्रचंडता कठोर से कठोर प्राणियों का हौसला पस्त कर रही है, देश की पहचान एवं गरिमा का प्रतीक मोर भी इस कुदरती मार से बच नहीं पा रहे हैं। शिकारियों एवं परभक्षियों के निशाने पर रहे मोर फिलहाल कहीं ज्यादा कुदरत की मार झेल रहे हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि वन विभाग को इस बात की खबर तक नहीं है। हैरानी की बात तो यह है कि राष्ट्रीय पक्षी मोरो की मौत का राज अभी तक जिम्मेदार अधिकारी नही जान पाए है और मामले को ठंडे बस्ते में डालकर पूरे मामले को दबाने की कोशिश की है।

पानी के अभाव मे तड़पकर गिरा मोर-

रविवार को भी एक मोर गणपति चौक में गर्मी के कारण गंभीर हो गया। भीषण गर्मी में पानी के अभाव में उसकी सांसे तेज हो गई और वह अचानक पेड़ से नीचे आ गिरा। वह तो गनीमत यह रही कि जैसे ही वह गिरा तो आसपास कोई कुत्ता नही था, नही तो यह मोर भी उनका शिकार हो जाता और फिर एक राष्ट्रीय पक्षी मोर कम हो जाता। मोरप्रेमियो ने तत्काल वन विभाग के कर्मचारियो को दूरभाष से संपर्क किया तो बुलवाया, हालांकि मोर उनकी पकड़ में नही आया और रहवासीयो की छत पर चढक़र बैठ गया, लेकिन उसकी सांसे तब भी तेज ही चल रही थी, मोरप्रेमी उस पर नजर रख रहे है।

यह पहली मर्तबा नही है, जब मोर घायल होकर गिरा है, बल्कि इससे पहले भी कई मोर या तो करंट की चपेट में आकर या कुत्तो के हमलो से या फिर दाना-पानी की तलाश में अपनी जान गंवा बैठे है। पढ़िए यह ग्राउंड रिपोर्ट..

केस-1:16 मई के दरमियान नगर के माधव कॉलोनी, हास्पीटल कॉलोनी और ब्लाक कॉलोनी में एक-एक मोर को आवारा कुत्तो ने अपना शिकार बना लिया। इसके बाद वन विभाग के कर्मचारियो ने मौके पर पहुंचकर तीनो मोरो के शव को उठाया। इसके कुछ देर बाद सिवी मोहल्ले में एक मोर घायलावस्था मे मिला। यहा मोरप्रेमियो की सजकता के चलते मोर को पशु चिकित्सालय तत्काल ले जाया गया, जहां उपचार के मिलने से उसकी जान बच सकी।

केस-2: 22 मई को रायपुरिया मे बिजली के पोल से करंट की चपेट में आने से एक मोर गंभीर रूप से घायल हो गया था और जमीन पर गिर गया था, जमीन पर गिरते ही कुत्तो ने उस पर हमला कर दिया और मौत के घाट उतार दिया। ग्रामीणो ने लाख कोशिशे की उसे बचाने की, लेकिन उसकी जान नही बच पाई। ग्रामीण जगदीश प्रजापत व अजय पाटीदार ने मृत मोर को वन विभाग के सुपूर्द किया।

केस-3: शहर में पिछले 3 दिनो पहले ऐसी ही घटना घटी। गणपति चौक पर लगी बिजली विभाग की डीपी से निकल रहे तारो से उलझकर मोर गंभीर रूप से घायल हो गया और जमीन पर जा गिरा। यहां कुत्तो ने उस पर हमला कर दिया और उसकी जान चली गई। नगर के मोर प्रेमियो ने मृत मोर को वन विभाग के सूपूर्द किया। बता दे कि यहां बड़ी संख्या में मोर विचरण करते नजर आते है, लेकिन दाना-पानी के अभाव में कई मोर घायल हो जाते है या फिर दाना-पानी की तलाश में बिजली लाईनो की चपेट में आकर अपनी जान गंवा देते है।

पेटलावद क्षैत्र में 10 हजार से अधिक है मोरो की संख्या-

वन विभाग से प्राप्त आंकड़ो के मुताबिक अकेले पेटलावद क्षैत्र में राष्ट्रीय पक्षी मोर की संख्या 10 हजार से अधिक है। यह आंकड़े 2014-15 में वन विभाग के पास उपलब्ध है। हालांकि 2016 से लेकर अभी तक मोरो की सही संख्या का आंकड़ा वन विभाग के पास उपलब्ध नही है, क्योंकि इस समय अंतराल कई मोरो की मौत क्षैत्र में हो चुकी है। जिनकी मौत का कारण या तो जंगली जानवर है या फिर पानी के अभाव में प्यास से तड़पकर हो रही मौत है।

इतने मोर और मात्र 10 स्थानो पर ही पानी की व्यवस्था-

उल्लैखनीय है कि वन विभाग की कार्यप्रणाली पर हमेशा अपने लापरवाह और ढीले रवैये के कारण सवाल उठे है। पूरे पेटलावद क्षैत्र में वनक्षैत्र मोरझरिया, रसोड़ी, बेड़दा, मोकमपुरा और राजस्व क्षैत्र में पेटलावद, करड़ावद, रायपुरिया, रूपगढ़, जामली, बरवेट, हमीरगढ़, सारंगी, बोड़ायता, बावडी, झकनावदा, बोलासा, तारखेड़ी, बनी, करवड़, घुघरी, रामगढ़, बड़ी देहण्डी आदि स्थानो पर मोर विचरण करते है। इनमें से सबसे अधिक रसोड़ी वन क्षैत्र और पेटलावद, करड़ववद राजस्व क्षैत्र में मोर विचरण करते है, लेकिन आश्चर्यजनक बात तो यह है कि वन विभाग ने मात्र 10 स्थानो पर ही पानी के इंतजाम किए है। इन 10 जगहो पर भी छोटे-छोटे बर्तन पानी के लिए उपलब्ध किए है, जो नाकाफी है।

सवाल आखिर कब जागेगा वन विभाग?

अब तक करीब दर्जनों मोरों के मर जाने की बात सामने आ चुकी है कई बार मोरों के शव मिलने से वनविभाग में हडक़म्प मचा लेकिन अभी तक इनकी सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किये गए है जिससे हर बार दर्जनों मोर मर जाते है और वन विभाग को मोरो के मरने का कारण तक पता नहीं चल पाता है। वन विभाग मोरो के शवो का पोस्ट मार्टम कराकर केवल खानापूर्ति पूरी करके शांत बैठ जाता है।

राष्ट्रीय पक्षी को लेकर हर कोई बेपरवाह है-

मोरों की पीड़ा से हर कोई बेपरवाह है। मोरप्रेमी इलाक्षी पाटीदार, खुश मांडोत, हेमंत वोरा, हिमांशु नागोरी आरोप है कि पानी के अभाव में पिछले 5 सालो से मोरो की असमय मौत हो रही है, उन्होंने राष्ट्रीय पक्षी मोर की मौतों के लिए स्थानीय प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है। रूपगढ़ के किसान प्रवीण चोयल बताते है कि  हमने अपने खेत मोरों के लिए खुले छोड़ रखे हैं। खेत में रोजाना 20 से ज्यादा मोर दाना चूगने और पानी पीने के लिए यहां आते रहते है। इससे ज्यादा एक किसान क्या कर सकता है? हमें उन्हें तड़पता देख पीड़ा होती है, पर हम क्या कर सकते हैं? जाहिर है, हमारी लोकोक्तियों, किंवदंतियों, कहानियों और कल्पना लोक में विचरने वाले इन भव्य और मनोहारी पक्षियों को उस दिन का इंतजार है जब गर्मी उनके लिए मौत का मौसम बनना बंद कर देगी।

बीते 4 वर्ष में हुई राष्ट्रीय पक्षी मोरो की मौत-

वर्ष                सख्या

2015-16           17

2016-17           15

2017-18           20

2018-19           15-20

(आंकड़े पशु चिकित्सालय से प्राप्त)

अब तक एक दर्जन से अधिक मोर हुए बीमारी का शिकार:

पशु चिकित्सालय के प्रभारी डॉ. दिलीप निनामा ने चर्चा में बताया कि वर्ष 2018-19 में करीब 15-20 राष्ट्रीय पक्षी मोर बीमारी का शिकार हुए है। जिनमें से अधिकतर मोर मृत हो चुके है और यह आकड़ा अभी लगातार बढ़ता जा रहा है। श्री निनामा ने बताया जब कोई बीमार मोर चिकित्सालय में आता है तो जब तक उसे वे नही छोड़ते जब तक वह पूर्णत: ठीक नही हो जाता। उसे प्राथमिक उपचार करने के बाद देखभाल के लिए एक रूम में रखा जाता है जहां उसका रोजाना उपचार किया जाता है। इसके बाद जब वह ठीक हो जाता है तो उसे वन विभाग के सुपूर्द कर दिया जाता है। दाना पानी के तलाश में विचरण करते हुए मोर ओर अन्य जीव लापरवाही से अपने प्राण गवां रहे है। शहर सहित ग्रामीण इलाको में जहां मोर अधिक है वहां न तो अभी तक मयूर पार्क बन पाया है और न ही मोरो के संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम उठाये गए है। हैरत की बात तो यह है कि इतना होने के बाद भी जिम्मेदार इन जीवों के प्रति असंवेदनशील बने हुए है। जीवदया प्रेमियों ने इन जीवों से सरंक्षण के लिये तत्काल कोई ठोस कदम उठाने का आग्रह किया है।

दाना-पानी की व्यवस्था की है-

वन विभाग के एसडीओ श्री संतोष कुमार रण्छोड़े से चर्चा की तो उन्होनें बताया कि शहर मोरो के लिए 12 स्थानो पर टंकियो की व्यवस्था की गई है। वहीं पूरे क्षैत्र में मोरो को पीने के लिए पर्याप्त पानी मिले इसीलिए दाना-पानी की व्यवस्था की गई है। पिछले कई सालो से इलाके में बरसात कम हो रही है इसीलिए मई-जून के महीने में तालाबों का पानी सूख जाता है इसलिए पानी की किल्लत हो जाती है। आगामी समय में पानी के अभाव में जानवरो और पक्षियों की मौत न हो इसके लिए इंतजाम किया जाएगा।।