क्या 20 साल से चला आ रहा इतिहास झाबुआ विधानसभा मे दोहराया जायेगा ?

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चंद्रभानसिंह भदोरिया @ चीफ एडिटर

जिला मुख्यालय झाबुआ की विधानसभा यानी झाबुआ विधानसभा सीट बेहद अहम् मानी जाती है लेकिन 1998 से लेकर आज तक 20 साल मे यहा एक नयी परंपरा डल गयी है वह यह कि इस विधानसभा मे हर बार नया चेहरा विधायक बनता है । 1998 मे स्वर्गीय बापूसिंह डामोर साहब का टिकट काटकर कांग्रेस ने यहा स्वरुपबाई को टिकट दिया था ओर वे 1998 से 2003 तक विधायक रही .. 2003 मे झाबुआ विधानसभा के मतदाताओ ने स्वरुपबाई को नकार दिया ओर दिग्विजय सिंह विरोधी लहर मे बीजेपी के पवैसिंह पारगी विजय हुऐ .. फिर आये 2008 के विधानसभा चुनाव .. उसमे बीजेपी ने फिर से पवैसिंह पारगी को टिकट देकर मैदान मे उतारा लेकिन मतदाताओ ने उन्हें नकारते हुऐ फिर नया विधायक कांग्रेस के जेवियर मैडा के रुप मे चुना .. उसके बाद आया 2013 का विधानसभा चुनाव .. जिसमे कांग्रेस ने एक बार फिर से जेवियर मैडा पर ही दांव लगाया लेकिन मतदाताओ ने जेवियर मैडा को नकारते हुऐ फिर से नया चेहरा तलाशा ओर बीजेपी के शांतिलाल बिलवाल को अपना विधायक चुना .. ओर अब आ गया है 2018 का विधानसभा चुनाव .. अब देखना है कि झाबुआ विधानसभा की जनता यानी मतदाता विगत 20 सालो का इतिहास दोहराती है या नही ? विगत 20 साल का इतिहास तो यह कहता है कि जिस भी पार्टी ने अपना उम्मीदवार रिपिट किया वह पार्टी हार गयी ओर उम्मीदवार नकार दिया गया .. चाहे कांग्रेस की स्वरुपबाई ओर जेवियर हो या बीजेपी के पवेसिंह पारगी .. अब अगर विगत 20 साल के इतिहास को कांग्रेस ओर बीजेपी ने पढकर अपना उम्मीदवार तय किया तो नये उम्मीदवार देखने को मिल सकते है ओर 20 साल के चुनावी इतिहास को मिथक माना तो …

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