क्या आपको पता है…? पेटलावद को तेरापंथ धर्मसंघ की राजधानी कहते है..इस खबर में जानिए वर्षो पुराना इतिहास
Salman Shaikh@ Jhabua Live
पेटलावद की माटी आचार्य, महाकर्म व्यक्तियों आदि से सुशोभित होती रही है। अब संपूर्ण देश में अहिंसा, मानतवा व नशामुक्ति का संदेश दे रहे श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ कमे 11वें अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी का 11 जून की सुबह पेटलावद की पावन धरा पर मंगलप्रवेश होने वाला है। उनके दर्शन के लिए पूरा नगर बेचैन है। पेटलावदवासी इसलिए भी बेचैन है कि करीब 67 वर्षो के बाद यहां कोई आचार्य पहुंच रहे है।
अगर पेटलावद की बात की जाए तो पेटलावद शुरू से ही पूण्यभूमि रही है, यहां अहिल्यादेवी जी ने शंकर मंदिर की स्थापना की है तो उमेशमुनिजी मसा की यह कर्मभूमि रही है, वहीं मामा बालेश्वर दयाल जैसे स्वतंत्रता सेनानी की भी कर्मभूमि है। आदिवासियो को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान दिलाने वाले स्वं. दिलीपसिंह भूरिया की भी यह कर्मभूमि रही है। तो तेरापंथ के युवाचार्य महाश्रमणजी की भी यह कर्मभूमि रही है जब वे युवाचार्य बनकर यहां अहिंसा यात्रा लेकर पहुंचे थे, और अब वे आचार्य बनकर यहां पहुंच रहे है। यह पेटलावद की माटी का सौभाग्य है कि यहां किसी न किसी विद्वान के पद पडत्रते ही रहे है और आशीर्वाद मिलता रहा है।
गौरतलब है कि जब से तेरापंथ धर्मसंघ का उद्भव हुआ है, उद्भव के 50 साल बाद से ही यह क्षैत्र तेरापंथ के लिए अनुयायी बना हुआ है। यही नही पेटलावद का ऐसा सौभाग्य है कि उस समय से पेटलावद तेरापंथ की राजधानी र्घोिषत है। वह कैसे यह भी हम आपको बताएंगे, उससे पहले तेरापंथ धर्मसंघ के बारे में जान लीजिए..
गौरतलब है कि तेरापंथ धर्मसंघ आचार्य भिक्षु द्वारा स्थापित अध्यात्म प्रधान धर्मसंघ है, जिसकी स्थापना 29, जून, 1760 को हुई थी। यह जैन धर्म की शाश्वत प्रवहमान धारा का युग-धर्म के रूप में स्थापित एक अर्वाचीन संगठन है, जिसका इतिहास 250 वर्ष भी ज्यादा पुराना है। तेरापंथ जैन धर्म का एक अत्यंत तेजस्वी और सक्षम संप्रदाय है। आचार्य भिक्षु इसके प्रथम आचार्य थे। ग्यारहवें आचार्य के रूप में श्री महाश्रमण इसे व्यापक फलक प्रदान कर जन-मानस पर प्रतिष्ठित कर रहे हैं। तेरापंथ का अपना संगठन है, अपना अनुशासन है, अपनी मर्यादा है।
पेटलावद ऐसी कहलाई तेरापंथ की राजधानी-
बता दे कि श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ में करीब 70 से 80 वर्ष पहले के समय में पेटलावद पूरे मालवांचल में सर्वाधिक परिवार थे, जिससे पेटलावद को पूरे देश में तेरापंथ की राजधानी कहा जाता रहा है। यहां लगातार 85 वर्षो से चातुर्मास होते आ रहे है, जो अभी भी सतत जारी है। चातुर्मास की बात करे तो धर्मसंघ के आठवें आचार्य कालूगणीजी यहां प्रवास पर आए थे तो एक कुशल घटना पेटलावद में घटी थी, उसको उन्होनें आशीर्वाद समझकर कहा था कि पेटलावद से चातुर्मास मिलकर ही रहेंगे। उनके आशीवार्द के फलस्वरूप ही लगातार 85 वर्षो से चातुर्मास यहां मिल रहे है।
2 मार्गो का नामकरण और अहिंसा सर्कल का हुआ था लोकर्पण-
तेरापंथ सभा के अध्यक्ष विनोद भंडारी व मंत्री लोकेश भंडारी ने बताया आचार्य श्री महाश्रमणी जब युवाचार्य थे तो वे 17 वर्ष पहले यानि वर्ष 2004 में पेटलावद सहित जिले अहिंसा यात्रा लेकर पहुंचे थे। उनके यहां पधारने के बाद पेटलावद के दो मार्गो का नामकरण हुआ था, जो अभी तक है, एक तो झंडा बाजार से लेकर गणपति चैक तक है, जिसे आचार्य तुलसी मार्ग नाम दिया गया और दूसरा जनपद पंचायत के कोने से लेकर ब्लाक काॅलोनी तक है, उसे आचार्य महाप्रज्ञ नाम दिया गया था। वहीं महाश्रमणजी ने नया बस स्टैंड पर अहिंसा सर्कल का भी लोकर्पण किया था। इस बार वे आचार्य के रूप में 17 वर्ष बाद पेटलावद आ रहे है। उनके पधारने मात्र से ही तेरापंथ धर्मसंघ के एक बड़े भवन का लोकार्पण हो जाएगा। यहां साधु-साध्वियों के प्रवास के के लिए बेहतर ढंग से व्यवस्थाएं की गई है। इस तेरापंथ भवन की बनावट से ही यह हर किसी आने-जाने वाले को अपनी ओर आकर्षित करता है।
अभी तक 5 आचार्यो का हुआ है पेटलावद में आगमन-
तेरापंथ सभा के पूर्व अध्यक्ष फूलचंद कांसवा ने बताया पेटलावद की पावन धरा इतनी धन्य है कि यहां अभी तक 5 आचार्यो का आगमन हो चुका है। वहीं 11 ही आचार्यो में से तीसरे आचार्य ऋषिरायजी ने यहां 4 माह रूककर अपना चातुर्मास किया है। यह पूरे पेटलावद नगर के सोभाग्य की बात है कि उस समय से पेटलावद की पावन धरा पर ऐसे संतो का आगमन हुआ और उनके दर्शन कर यहां के लोगो का जीवन धन्य हुआ। यही वजह है कि यहां से करीब 15 से 20 लोग दीक्षा लेकर त्याग, तपस्या और जनकल्याण के मार्ग पर प्रशस्त हुए है।
पेटलावद में यह मंडल सतत कर रहे है धार्मिक कार्य-
तेरापंथ धर्मसंघ के पेटलावद में कई अलग-अलग मंडल बने हुए है। इसमें तेरापंथ सभा, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ कन्या मंडल, तेरापंथ किशोर मंडल शामिल है। सभी अपने-अपने स्तर पर धार्मिक गतिविधियां संचालित कराते है। इन सभी का संचालन जय ट्रस्ट (तुलसी बाल विकास समिति) और जीवन विज्ञान अकादमी करती है।