इतनी बड़ी त्रासदी के बाद भी नही लिया गया सबक, आज भी बारूद के ढेर पर बैठा पेटलावद

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सलमान शैख़@ पेटलावद

12 सितंबर 2015 को हुई पेटलावद में ब्लास्ट में सबसे बड़ी वजह अवैध रूप से रखे गए जिलेटिन और डेटोनेटर छड़ थी। जिसके कारण इतनी बड़ी त्रासदी हुई, लेकिन इस त्रासदी के बाद भी प्रशासन ने सबक नही लिया और आज भी पूरा अंचल बारूद के ढेर पर बैठा हैं। पहले ही तरह आज ाी पेटलावद क्षैत्र इसका प्रमुख गढ बना हुआ हैं। सर्वाधिक उपयोग माही परियोजना की नहरों ओर गिट्टी खदानों में हो रहा हैं। कहां कितना प्रयोग हो रहा हैं किसी के पास कोई जानकारी नही हैं।

12 सितंबर 2015 को हुए ब्लास्ट उसमें हुई  बेकसूरों की मौत सैकडों घायल के बाद भी समूचे अंचल में जिलेटिन छड़ो के जरिए ब्लास्टिंग करके पत्थरो को तोडऩे और कुओं, नहरो के बनाने का काम जारी है। सबसे बड़ी बात यह है कि गुजरात और राजस्थान से अंचल के भीतर विस्फोटक सामग्री की खेप आती है। सबसे सस्ता विस्फोटक होने के साथ ही यह यादा खतरनाक भी होता है। जिलेटिन और डेटोनेटर जैसे विस्फोटक को रखने के लिए प्रशासन लाइसेंस देने के बाद यह चैक तक नहीं करता कि वह गाइड-लाइन का पालन कर रहा है या नहीं। गोदाम आबादी से दूर है या बीच में है। पेटलावद ब्लास्ट के पहले और उसके बाद भी कई हादसे हो चुके हैं। यदि प्रशासन और अफसर नहीं जागे तो ऐसे हादसे और होंगे।

शर्मनाक ये है कि ये सारा गोरखधंधा सरकार, सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस और प्रशासन की जानकारी में फल-फूल रहा है, विस्फोटकों के इस गोरखधंधे में जहाँ ऐसे अवैध व्यवसाईयो की फौज तैयार हो रही हैं। जिसमें कई रसूखदार ओर सफेदपोश शामील हैं। आज आलम ये है की सारे विस्फोटक यहां के खनन क्षेत्र में बेचे जा रहे हैं, न सिर्फ बेचे जा रहे हैं, बल्कि इनकी क्षमता से अनभिज्ञ मजदूरों से इनका इस्तेमाल कराया जा रहा है।

प्रशासन के पास जानकारी ही नही-

ग्रामीण क्षेत्र में खदानों व कुओं में बारूद लगाने वाले कई व्यापारी हैं, लेकिन प्रशासन के पास जानकारी ही नही है। कुएं गहरे करने और खदानों में पत्थर निकालने के दौरान बचने वाला बारूद ये अपने पास रख लेते हैं। फिर किसानों को मुंह मांगे दामों पर बेचते हैं। हथियारों की तरह विस्फोटक विशेषज्ञों के लाइसेंस राष्ट्रीय, प्रदेश व जिलास्तर के बनते हैं। सीमावर्ती राय गुजरात और राजस्थान से लोग आकर खदानों व कुओं में विस्फोटक लगाते हैं। जानकारी प्रशासन के रिकॉर्ड में नहीं होती, किंतु ग्रामीणों से ये संपर्क में रहते हैं। विस्फोटक का कारोबार गोपनीय तरीके से होता है।

खदानों के लिए नियम-

– महीने में पांच किलो से यादा विस्फोटक का प्रयोग नहीं कर सकते।

– साल में सिर्फ 60 किलो विस्फोटक का प्रयोग करने की अनुमति।

– इससे यादा मात्रा में विस्फोटक का प्रयोग करने पर कार्रवाई का प्रावधान।

– पुलिस, जिला प्रशासन या खनिज विभाग में कौन करेगा कार्रवाई तय नहीं।

खुलेआम विस्फोटकों का प्रयोग-

पेटलावद के चारो ओर यानि दुल्लाखेड़ी, रायपुरिया मार्ग, उन्नई मार्ग, अनंतखेड़ी मार्ग, कोदली की ओर सहित माही परियोजना में बन रही बड़ी नहरो को बनाने में धड़ल्ले से जिलेटिन, डेटोनेटर व डाइनामाइट लगाकर अवैध तरीके से पहाड़ों को तोड़ा जा रहा है। स्थानीय व जिला प्रशासन को यह सब पता है, लेकिन कभी कार्रवाई नहीं हुई।

क्या है पीईटीएन-

पीईटीएन को पेंटाइरिथ्रीटोल टेट्रानाइट्रेट के नाम से जाना जाता है। इसे प्लास्टिक बमों में सर्वाधिक शक्तिशाली और खतरनाक माना जाता है। इसे डिटेक्ट करना बहुत मुश्किल है। इसके अणु बेहद संगठित होते हैं। इसके कुछ ही अणु बाहर के वायु के साथ संपर्क कर पाते हैं। इसलिए कुत्ते या सेंसर तक इसकी पहचान नहीं कर पाते। अल आसिरी द्वारा बनाये गये पीईटीएन बमों की खासियत यह है कि इसे साधारण सीरिंज से भी केमिकल डेटोनेटर के जरिये विस्फोट किया जा सकता है।

ये है हकीकत-

– विकासखण्ड में विस्फोटक पदार्थ बेचने वाले कितने लाइसेंसी, प्रशासन को नहीं पता

– पेटलावद ब्लास्ट के बाद विस्फोटक पदार्थ बेचने वालों की खंगाली गई थी कुंडली, जिला व पुलिस प्रशासन की नींद टूटी थी और जांच की बात कही लेकिन बाद में सब भूल गए ओर तेजी से यह व्यापार फलने फूलने लगा।

पथरीली जमीन के कारण होता है यादा इस्तेमाल-

जिलेटिन और डिटोनेटर जिसे यहां की भाषा में टोटा बोला जाता है, बड़ी आसानी से मिल जाते हैं। क्षेत्र के लोग बताते हैं कि यहां की जमीन पथरीली है। इसलिए जब भी कोई कुआं या तालाब खोदना होता है, विस्फोटक का इस्तेमाल करना ही पड़ता है। यही वजह है कि विस्फोटक यहां आसानी से उपलब्ध हैं।

अब नही तो कब जागोगे-

ये सभी घटनाएं हमारी प्रशासनिक अमले व राजनेताओं की इछाशक्ति की अक्षमता और असंवेदनशीलता की दासतां सुनाने के लिए काफी हैं। इस तरह के हादसों के पीछे शासन व प्रशासन दोनों ही वर्ग के नुमांइदों का व्यक्तिगत लालच है। सरकार को अब जागना ही होगा। कुछ हलचल हुई और सोते ही रहने के लिए बदनाम सियासत करवट बदल, कार्रवाई करने की बात करने लगी। तो क्या अब हम निश्चिंत हो सकते हैं कि अब ऐसा हादसा दोहराया नहीं जाएगा? शायद, इसलिए नहीं कि यह काफी पुराना और प्रामाणिक संदेह है कि सकिय सियासत यादा दिन तक जागी नहीं रह पाती। सोती सरकार को जगाने की एक कोशिश पेटलावद में फिर हुई। यदि सचमुच में सरकार इस घटना के पीडि़तों की सहायता करना चाहती हैं तो अवैध खनन के कारोबारियों व अवैध धधों में लिप्त लोगों चाहे फिर वह कांग्रेस या भाजपा से सरोकार रखने वाले ही क्यों न हो उनकी नकेल कसना होगा अन्यथा पेटलावद का यह हादसा भी उन हादसों की तरह ही याद रखा जाएगा जिनमें पीडि़तों को आज भी तलक न्याय की दरकार है।

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