झाबुआ डेस्क। जब मन में ललक साहित्य चेतना व कविता के प्रति ईमानदारी सहित फूहड़ता सस्ती लोकप्रियता से परे कुछ करने का जज्बा हो तों विपरीत परिस्थितियों में भी छोटे किंतु भागीरथी प्रयास इतिहास रच सकतें हैं। ऐसा ही कर दिखाया रंभापुर जैसे गांव के झाबुआ आदिवासी अंचल में पले बढ़े बग़ैर किसी साहित्य विरासत के कालेज समय से कविता लिखने फिर मंचों पर राष्ट्रीय पहचान बना अपने क्षेत्र में साहित्य गतिविधियों व हिन्दी के प्रति राष्टीय अगाध प्रेम करने वाले निसार पठान रंभापुर ने अभिव्यक्ति साहित्य संस्था का गठन 14 सितंबर 2004 में गठित कर छोटे मोटे कभी किसी दिवस गतिविधियों संचालित मौलिक कवियों को मंच देने के प्रयास में।
