अजीब रिवाज: यहां 40 फ़ीट ऊंचाई पर उल्टा लटक कर की जाती है पूजा

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झाबुआ लाइव कल्याणपूरा@ उमेश चौहान

 झाबुआ मध्यप्रदेश का आदिवासी बहुल जिला है। यहां के आदिवासी समाज की अपनी एक अलग ही दुनिया है। उनकी इसी दुनिया में ऐसी कई परंपराएं हैं जो हैरान कर देती हैं। *jhabua live* आपको बता रहा है ऐसी ही एक परंपरा के बारे में जिसमें मन्नत पूरी होने पर आदिवासी गले और कमर के बल लटककर देवता का शुक्रिया अदा करते हैं।

कल्याणपुरा से सटे बरखेड़ा में आज गल देवता के मेला देखने हजारों की संख्या मे जनसैलाब उमड़ा जिमसें मन्नत धारियों ने अपनी मन्नत उतारी।

क्या है गल घूमने की परंपरा

गल घूमने की ये परंपरा झाबुआ और अलीराजपुर के आदिवासियों में प्रचलित है। के होली के दूसरे दिन आदिवासी समाज गल नामक देवता की पूजा करते हैं और देवता से बच्चे की शादी, जन्म, किसी बीमारी से मुक्ति आदि की मन्नत मांगते हैं। बरखेड़ा के सरपँच पर्वत निनामा के मुताबिक़ मन्नत मांगते समय व्यक्ति ये वचन देता है कि मन्नत पूरी होने पर वो 5, 7 या 11 बार गल घूमेगा। भगवान से मांगी गई मन्नत के पूरी होने पर गल घूमने की परंपरा निभाई जाती है।
कैसे घूमते हैं गल
होली के पहले लगने वाले मेले में एक 30 से 40 फ़ीट ऊंचा मचान बनाया जाता है। इस पर खाट रखकर क्रेन के जैसा झूला लगाया जाता है। मन्नतधारी को उसके परिजन रंगीन कपडे़ और पगड़ी पहनाकर गीत गाते हुए पूजा स्थल तक लाते हैं। यहां तड़वी यानी पुजारी पहले उससे पूजा करवाता है फिर उसे मचान पर चढ़ाकर झूले पर उलटा लटका देता है। इसके बाद झूले के दूसरे हिस्से पर टंगी रस्सी से लटकाकर लोग झूलते हैं और दूसरी तरफ उलटा लटका हुआ मन्नतधारी आसमान में झूलता रहता है। चक्कर पूरे होने पर तड़वी फिर उससे पूजा करवाता है और यदि उसने मन्नत में बलि देने का वादा किया है तो बलि भी चढ़ावाता है।

ज़मीन और आसमान के देवता को खुश करने के लिए घूमते हैं गल

पर्वत बताते है कि ये परंपरा सालों से चली आ रही है। यहां के आदिवासी समाज को ये भरोसा है कि उनका देवता ज़मीन और आसमान दोनों पर राज करता है। इसलिए उसे खुश करने के लिए ये लोग ज़मीन और आसमान के बीच घूमते हैं।

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