झाबुआ। पारिवारिक एवं सामाजिक सुरक्षा को यदि मजबूत बनाना है तो हमारी भारत की गौरवशाली संस्कृति एवं परंपरा को बचाना होगा। वर्तमान शिक्षा की अंधी दौड़ ने हमारी संस्कृति को हमसे छीन लिया है। विकास के नाम पर परंपराओं को भूला दिया है। पूर्व की गुरूकुलों की शिक्षा में महापुरुषों के जीवन चरित्र, परिवार, समाज, एकता का पाठ पढ़ाया जाता था। जिससे स्नेह एवं राष्ट्रभक्ति का बच्चों में बीजारोपण होता था। आज वह राष्ट्रभक्ति कहां है? उक्त प्रेरणादायी प्रवचन राष्ट्रसंत जैनाचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी मसा के शिष्य रत्नमुनि एवं प्रवचनकार वैभवरत्न विजय मसा ने महत्ती धर्मसभा में सामाजिक एवं राष्ट्र की सुरक्षा संस्कृति से संबंधित विषय पर संबोधित करते हुए व्यक्त किए। मुनिश्री ने बताया कि वर्तमान में राजनीति ऐसी बन गई है कि जिससे भारत देश में भारत माता की जयकारों पर प्रश्नचिह्नï लगाया जा रहा है। ऐसा लगता है कि मानो राष्ट्रभक्ति का खून सूख चुका है। वह समय आ चुका है कि जब हमें फिर से एक बार राष्ट्र भक्ति के लिए एवं परिवार तथा समाज की सुरक्षा के लिए ऋषिा मुनियों द्वारा प्रदत्त मातृ देवो भव: की संस्कृति को बचाने का शंखनाद करना है और वह शुरुआत हमें स्वयं करना है। अपने बच्चें को संस्कारवान एवं राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत बनाना है। हमारे ज्ञान के भंडार आगम, शास्त्र, गीता एवं रामायण को ना सिर्फ घर-घर तक पहुंचाना है, बल्कि उनके ज्ञान-गुण को अपने जीवन आचार-विचारों में उतारना है।
राम न बन सके, तो लक्ष्मण जरूर बने
हम श्री रामजी न बन सके तो लक्ष्मण जरूर बने, हनुमानजी न बन सके, तो जटायु अवश्य बने। वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप द्वारा किए गए कार्य एवं राष्ट्र भक्ति को हमे जीवन में उतारना है। पूज्यश्री ने आगे बताया कि संत एवं सैनिक एक-दूसरे के पर्यायवाची है। सैनिक राष्ट्र सीमाओं की रक्षा करता है तो संत धर्म एवं संस्कृति की।
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