सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त जांच समिति की रिपोर्ट : मध्यप्रदेश सरकार की भारी लापरवाही

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झाबुआ लाइव के लिए अब्दुल वली खान की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
1 मई 2017 जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और पिनाकी चंद्र घोष की पीठ ने आज सिलिकोसिस के मामले से संबंधित जनहित याचिका (रिट याचिका 110/2006) में सुनवाई की। मध्य प्रदेश में सिलिकोसिस की समग्र स्थिति का आकलन करने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक जांच समिति डॉ. एचएन सैय्यद की अध्यक्षता में नियुक्त की थी, डॉ एच जी साधु, अमूल्य निधि और सुश्री शमारुख मेहरा समिति के सदस्यों वाली जांच समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट को न्यायालय में प्रस्तुत कर दी है। जांच रिपोर्ट से पता चलता है कि मध्यप्रदेश सरकार पिछले कई वर्षों में सिलिकोस प्रभावित श्रमिकों की दुखद स्थिति में उनके चिकित्सा प्रबंधन और पुनर्वास में पूरी तरह अप्रभावी रही है। जांच दल द्वारा स्थिति को जानने के लिए जमीनी स्तर पर पड़ताल की और उनकी यह रिपोर्ट इस तथ्य का खुलासा करती है कि मध्य प्रदेश सरकार ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत कई हलफनामों में दावा किया है कि अलीराजपुर, धार और झाबुआ जिलों में सिलिकोसिसि रोगियों को चिकित्सा प्रबंधन, मुआवजा और पुनर्वास प्रदान किया गया है, परन्तु वास्तविकता में, इन लाभों में से कोई भी लाभ पीडि़तों तक नहीं पहुंच पाया है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा प्रदान किए गए पुनर्वास के अधिकांश आंकड़े अभी तक कागजों में ही है।
जांच रिपोर्ट में मध्य प्रदेश के अन्य जिलों पन्ना, विदिशा, शिवपुरी और इंदौर में श्रमिकों के बीच सिलिकोसिस की पुष्टि की है और सरकार ने सिलिकोसिस से प्रभावित इन श्रमिकों का पता लगाने, उनकी जांच करने या पुनर्वास करने के लिए कोई पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। बैतुल, रतलाम, छिन्दवाड़ा और सिवनी जिलो में भी सिलिकोसिस की पुष्टि हुई है। इन जिलों में व्यापक रुप से अवैध खनन खदाने संचालित है और यहां पर मदजूरों की सुरक्षा को पूरी तरह से उपेक्षित किया गया है। मध्य प्रदेश में असंगठित क्षेत्र में कोई भी पत्थर खदानों को खदान अधिनियम 1952 के दायरे में शामिल नहीं किया गया है और इसलिए श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। याचिकाकर्ता सिलिकोसिस पीडि़त संघ के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बहस करते हुए कहा  कि गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) ने गुजरात के कुख्यात क्वार्ट्ज फैक्ट्रियों का जल्दबाजी में निरीक्षण किया है जहां काम करके श्रमिकों को घातक बीमारी सिलिकोसिस मजदूरी के एवज में मिली। जीपीसीबी की निरीक्षण रिपोर्ट बताती है कि उन्होंने तीन जिलों में सिर्फ 12 घंटे में 3 तालुकाओं में फैले 30 कारखानों का दौरा किया था। जीपीसीबी की यात्रा की रिपोर्टों की करीबी जांच से लगता है कि निरीक्षण अधिकारी ने केवल 15 मिनट में 70 किलोमीटर की दूरी पर यात्रा की हैए और एक कारखाने का निरीक्षण पूरा कर लिया है। कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को तत्काल इस मामले पर गौर करने के निर्देश दिए हैं। याचिकाकर्ता सिलिकोसिस पीडि़त संघ में अपने शपथपत्र में अन्य राज्यों जैसे उत्तर प्रदेशए गुजरात, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी सिलिकोसिस के बारे में स्थिति स्पष्ट की है। खदान एव सुरक्षा महानिदेशक (डीजीएमएस) द्वारा प्रस्तुत किए गए शपथ-पत्र के अनुसार देश के 36 राज्यों में 44 हजार 155 खदाने है जहां पर कार्यरत 2 लाख 35 हजार 447 मजदूर सिलिकोसिस के खतरे में है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त जांच समिति ने पुष्टि की है कि सिलिकोसिस से मृतक 390 मजदूरों के परजिनों को अभी भी मुआवजे का इंतजार हैं जबकि 1359 बीमार मरीज अलीराजपुर, धार, झाबुआ, विदिशा और पन्ना जिलों में प्रभावी पुनर्वास के बिना संघर्ष कर रहे हैं। कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को जवाब प्रस्तुत करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है।

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