साबूदाना का सच जानकर होश खो बैठोंगे

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झाबुआ लाइव डेस्क। साबूदाना किसी पेड़ पर नहीं उगता। यह कासावा FB_IMG_1445647732782FB_IMG_1445647759929 (1) FB_IMG_1445647765327 FB_IMG_1445647740333 FB_IMG_1445647753934 FB_IMG_1445647732782या टैपियोका नामक कंद से बनाया जाता है। कासावा वैसे तो दक्षिण अमेरिकी पोधा है लेकिन अब भारत मे यह तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश ओर कर्नाटक मे भी बडेद्व पैमाने पर उगाया जाता है। केरल मे इस पोधे को कप्पा कहा जाता है। इस पोधे की जड़ को काटकर साबूदाना बनाया जाता है जो शकरकंदी की तरह होती है। इस कंद मे भरपूर मात्रा मे स्टार्च होता है। यह सच है कि साबूदाना टैपियोका कासावा के गूदे से बनाया जाता है परंतु इसकी निर्माण विधि इतनी अपवित्र होती है कि इसे किसी भी सूरत मे शाहकार एवं स्वास्थ्यप्रद नहीं कहा जा सकता।
तमिलनाडु प्रदेश मे सालेम से कोयम्बटूर जाते समय रास्ते मे साबूदाने की बहुत सी फैक्ट्रियां पडती है यहां पर फैक्ट्रियो के आसपास भयंकर बदबू ने हमारा स्वागत किया। तब हमने जाना साबूदाने की सच्चाई को। साबूदाना विशेष प्रकार की जडो से बनता है। यह जड़े केरला मे होती है। इन फैक्ट्रियो के मालिक साबूदाने को बहुत ज्यादा मात्रा मे खरीदकर उसका गूदा बनाकर उसे 40 फीट से 25 फीट के बडे-बडे गडढे मे डाल देते है, सड़ने के लिए। महीनो तक साबूदाना वहां सडता रहता है। साबूदाना बनाने के लिए सबसे पहले कसावा को खुले मैदान मे पानी से भरी बडी-बडी कुंडियो मे डाला जाता है ओर रसायनो की सहायता से उन्हे लंबे समय तक गलाया जाता है। इस प्रकार सडने से तैयार हुआ गूदा महीनो गलाया-सडाया जाता है। इस प्रकार सडने से तैयार हुआ गूदा महीनो तक खुले आसमान के नीचे पडा रहता है। रात मे कुडियो मे गर्मी देने के लिए उनके आसपास बडे-बडे बल्ब जलाए जाते है। इससे बल्ब के आसपास उडने वाले कई छोटे-मोटे जहरीले जीव भी इन कुंडियो मे गिर कर मर जाते है। यह गडढे खुले मे हैं ओर हजारो टन सडते हुए साबूदाने पर बडी-बडी लाइट्स से हजारो कीडे मकोडे गिरते है।
फैक्ट्री के मजदूर इन साबूदाने के गडढो मे पानी डालते रहते है इसकी वजह से इसमे सफेद रंग के कीट पैदा हो जाते है। यह सडने का कीडे-मकोडे गिरने का ओर सफेद कीट पैदा होेने का कार्य 5-6 महीनो तक चलता रहता है। दूसरी ओर इस गूदे मे पानी डाला जाता है, जिससे उसमे सफेद रंग के करोडो लंबे कृमि पैदा हो जाते है इसके बाद इस गूदे को मजदूरो के पैरो तले रोंदा जाता है।

FB_IMG_1445647748210आजकल कई जगह मशाीनो से भी मसला जाता है। इस प्रक्रिया मे गूदे मे गिरे हुए कीट-पतंग तथा सफेद कृमि भी उसी मे समां जाते है। यह प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है। पूरी प्रक्रिया होने के बाद जो स्टार्च प्राप्त होता है उसे धूप मे सुखाया जाता है। धूप मे वाष्पीकरण के बाद इस स्टार्च मे पानी उड जाता है तो यह गाढ़ा यानी लेइनुमा हो जाता है। इसके बाद इसे मशाीनो की सहायता से छन्नियो पर डालकर महीन गोलियो मे तब्दील किया जाता है। यह प्रक्रिया वैसे ही होती है जैसे बेसन की बुंदी छानी जाती है। इन गोलियो के सख्त बनने के बाद इन्हे नारियल का तेल मे लगी कढाई मे भूना जाता है ओर अंत मे गर्म हवा मे सुखाया जाता है। फिर मशीनो से इसे कीडे मकोडे युक्त गटे को छोटे छोटे आकार मे देकर इसे पाॅलिश किया जाता है। इतना सब होने के बाद अंतिम उत्पाद के रुप मे मोतियो जैसा साबूदाना हमारे सामने आता है। बाद मे इन्हे आकार, चमक ओर सफेदी के आधार पर अलग अलग छांट लिया जाता है ओर बाजार मे पहुंचा दिया जाता है परंतु इस चमक के पीछे कितनी अपवित्रता छीपी है वह अब आप जान ही चुके होंगे। आप लोगो की बातो मे आकर साबूदाने को शुद्ध न समझे। साबूदानम बनाने का यह तरीका 100फीसदी सत्य है।
इस वजह से बहुत से लोगो ने साबूदाना खाना छोड दिया है तो चलिये उपवास के दिनो मे
उपवास करे या न करे यह अलग बात है
साबूदाने की स्वादिष्ट खिचडी या खीर या बर्फी खाते हुए साबूदाने की निर्माण प्रक्रिया को याद कीजिए की क्या साबूदाना एक खाद्य प्रदार्थ है? या व्रत के लिए उपयुक्त है या शाहकारी भोजन है।
यह छोटे छोटे मोती की तरह सफेद गोल होते है यह सैगो पाम नामक पेड के तने के बूंदे से बनता है। सागो ताड की तरह ही एक पोधा होता है। यह मूल रुप से पूर्वी अफ्रीका का पोधा है। पकने के बाद यह अपारदर्शी से हल्का पारदर्शी नरम ओर स्पंजी हो जाता है। भारत मे इसका उपयोग पापड या खिचडी बनाने मे होता है। सूप ओर अन्य चीजो को गाढ़ा करने के लिए भी इसका उपयोग होता है।
भारत मे साबूदाने का उत्पादन सबसे पहले तमिलनाडू के सेलम मे हुआ था। लगभग 1943-44 भारत मे इसका उत्पादन एक कुटीर उद्योग के रुप मे हुआ था। इसमे पहले टैपियाका की जडो मे मसलकर उसके दूध को छानकर उसे जमने देते थे फिर उसकी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर सेंक लेते थे। टैपियाका के उत्पादन मे भारत अग्रिम देशो मे है। लगभग 700 इकाइयां सेलम मे स्थित है। साबूदाने मे कार्बोहाइड्रेड की प्रमुखता होती है। अब फैसला आपका है, व्रत के पांखड से बचना है या फिर व्रत की पवित्रता ओर गरिमा को बचा के रखना है। आपके व्रत 100 प्रतिशत शुद्ध ओर शाहकारी हो ऐसी हमारी कामना है………….।

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