सरकार बदली लेकिन सिस्टम नही; 14 घंटे तक मोत से जूझने के बाद मासूम वनूडी ने तोड़ा दम

0

चंद्रभानसिंह भदौरिया/गोपाल राठौड़, कट्ठीवाड़ा

अलीराजपुर सहित मध्यप्रदेश मे सरकार ओर सत्ता का निजाम तो बदल गया लेकिन पैरालिसिस का शिकार हो चुका सिस्टम अभी भी वही है। अपनी इस खबर में हम मध्यप्रदेश की एक आदिवासी बेटी की मौत से जूझने की 14 घंटे की कहानी बता रहे है जिसमे यह आदिवासी लडक़ी मौत से हार गई। बदहाल सिस्टम हमेशा की तरह इसकी मौत की वजह बना। दरअसल यह घटनाक्रम है अलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा इलाके के भजियाना गांव का है जहां लंबे समय से खून की कमी से जूझ रही 5वीं क्लास की वनुडी पिता छगन की है जिसने 14 घंटे के संघर्ष कर बाद अपनी जान गंवा दी।

ऐसे चला वनुडी की मौत या कहे सिस्टम को फैल साबित करने वाला घटनाक्रम
1- कट्ठीवाड़ा इलाके के भजियाना गांव के गरीबी रेखा के नीचे जीवन जीने वाले 8 बच्चो के पिता छगन की 5वें नंबर की औलाद थी। वनुडी विगत 1 माह से खून की कमी से जूझ रही थी जिसका अहसास अनपढ़ माता पिता को शायद नही था वह उसे मानसिक रुप से परेशान मानते थे। कल दोपहर करीब 2 बजे वनुडी ने घर मे रखी कीटनाशक थोडी मात्रा में पी ली।

2- वनुडी के परिजन खेत पर थे और सूचना मिलने पर वह वनुडी को तत्काल पास में सटे गुजरात के छोटा उदयपुर के सरकारी अस्पताल मे शाम 4 बजे के करीब पहुंचे।

3- सरकारी अस्पताल ने वनुडी को निजी केसर अस्पताल ले जाने को कहा जहां जांच मे उसके भीतर महज 2.06 हीमोग्लोबिन पाया गया। कैंसर अस्पताल ने इलाज के नाम पर 6 रुपए हजार वनुडी के माता पिता से ले लिए और वडोदरा ले जाने को कहा।

4. चूंकि वनुडी के पिता छगन के पास अब पैसै नही थे तो वह वनुडी को लेकर शाम 8 बजे घर आ गए और जब वनुडी की तबीयत बिगड़ी तो उसे लेकर कट्ठीवाड़ा के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचे।

5. कट्ठीवाड़ा के डॉक्टर पवन देवडा ने हीमोग्लोबिन की तत्काल जरुरत बताकर अलीराजपुर जिला अस्पताल संपर्क किया। इस दौरान कुछ स्थानीय युवाओं ने रक्तदाताओ को अलीराजपुर मे तैयार कर लिया।

6- मगर वनुडी को अलीराजपुर रैफर करने के पहले कट्ठीवाड़ा के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के डॉक्टर पवन ने जिला अस्पताल मे पता किया तो बताया गया कि यहां रक्त ट्रांसफर नही होगा क्योकि तकनीशियन अवकाश पर है ओर वैकल्पिक इंतजाम नही है।

7- इधर वनुडी की हालत खराब होते देख कुछ लोगों ने आर्थिक मदद की और सामाजिक संगठन सुभाषचंद्र बोस समिति के सदस्यो ने भी रक्त का इंतजाम दाहोद मे सुनिश्चित करना शुरु किया।

8- रात करीब 1 बजे वनुडी को लेकर उसके परिजन दाहोद के के के अस्पताल पहुंचे लेकिन के के अस्पताल ने वनुडी को दाहोद के सिविल अस्पताल ले जाने को कहा।

9. दाहोद के सिविल अस्पताल ने भी वनुडी का मध्य रात्रि में उपचार करने की बजाय क्रिटिकल हालत का हवाला देकर बडोदरा ले जाने को रात 2 बजे कहां ।

10. रात दो बजे तक वनुडी के पिता के सारे रुपये खत्म हो गये ओर उसके पास कोई पूंजी नही थी अंतत: वनुडी के पिता छगन ने वनुडी को बचाने के प्रयास बंद कर उसे रात करीब 3.30 बजे घर ले आये जहां 4 बजे वनुडी ने अंतिम सांस ली ।

वनुडी की मोत ओर सिस्टम पर उठते यह सवाल
1- वनुडी के पिता 10 बच्चों के पिता बीपीएल होकर भी बनते रहे ओर स्वास्थ विभाग उन्हें परिवार नियोजन के लिए राजी क्यों नही कर पाया?

2- वनुडी मे जब खुन की कमी थी तो स्कूल मे शिक्षकों ने ओर घर पर गांव की आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओ ने क्या देखा?

3- महिला बाल विकास विभाग किशोरी या बालिकाओं में हीमोग्लोबिन की कमी ना होने देने के लिए जवाबदेह है उसके जिम्मेदारो ने क्या देखा ?

4- जिला मुख्यालय के आईएसओ सर्टिफाइड अस्पताल मे तकनीशियन अगर छुट्टी पर है तो विकल्प क्यों नहीं? क्या इमर्जेंसी मे मोत की जवाबदेही लेगा जिला अस्पताल?

5-सरकार के दावे है कि ब्लाक लेवल पर जीवन रक्षक दवाइयां, संसाधन और कर्मचारी उपलब्ध है तो फिर कट्टीवाडा स्वास्थ केंद्र में खून चढ़ाने वाला क्यों नहीं था?

6- संबल योजना और आयुष्मान भारत योजनाओं पर क्या वनुडी की मौत सवाल खड़े नहीं करती?

Leave A Reply

Your email address will not be published.