शक्ति आराधना का पर्व है नवरात्र – मुनि चैतन्य कुमार अमन

0

झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
इस संसार में शक्ति का महत्व है। कायर क्लीव कमजोर व्यक्ति दीन-हीन और असहाय होता है। अपनें आपको शक्ति सम्पन्न बनाने के लिए हर व्यक्ति प्रयत्न भी करता है। आचार्य महाप्रज्ञ नेे एक पुस्तक लिखी है शक्ति की साधना। उसमें उन्होंने अनेक प्रकार ही शक्तियों के बारे में बताया है जैसे अध्यात्म की शक्ति, संकल्प की शक्ति, चित्त की शक्ति, मन की शक्ति, इच्छा शक्ति, सहिष्णुता की शक्ति, नैतिक शक्ति, ध्यान की शक्ति, मंत्र की शक्ति, व्रत की शक्ति, आहार की शक्ति, ब्रहचर्य की शक्ति, अस्वीकार की शक्ति, मौन की शक्ति। इन सारी शक्तियों को प्राप्त करने के लिए साधना करनी होती है। साधना के बिना शक्ति संपन्न बनना मुश्किल होता है। भारतीय परम्परा में शक्ति की साधना के लिए नवरात्र का समय सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। चैत्रीय नवरात्र व आश्विन नवरात्र दोनो नवरात्र के अवसर यंत्र-मंत्र-तंत्र अनुष्ठान कर शक्ति संपन्न बनने का प्रयास होता है। हर व्यक्ति में शक्ति होती है किन्तु उस सुप्त शक्ति को जागृत करनें की अपेक्षा रहती है। शक्ति की जागृति किसी न किसी अनुभवी व्यक्ति के देख-रेख में करनी चाहिए। मार्ग दर्शक के अभाव में दुर्घटना भी घट सकती है अत: साधना की सिद्धि मार्ग दर्शक के अभाव में नही करना चाहिए। नवरात्र के दिनों में किए गए अनुष्ठान का लक्ष्य स्थिर होना आवश्यक है। अध्यात्म की शक्ति सर्वोपरि होती है। आश्विन माह में किया गया अनुष्ठान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है। ज्योतिष शास्त्र में भी बताया गया है आश्विनस्य सिते पक्षे दशमा तारको दये, स कालो विजय ज्ञेय सर्व कार्यार्थ सिद्ध अर्थात आश्विन शुक्ला दसमी के सांयकाल अगस्त्य नामक तारें के उदय होनें तक जो काल रहता है वह सक कामनाओं को सिद्ध करनें वाला होता है क्योकिं यह श्रेष्ठ विजय मुहुत्र्त होता है। संकल्प शक्ति से ही अनुष्ठान को सफल किया जा सकता है। वैसें तो प्रत्येक आत्मा अनंत शक्ति सम्पन्न है उसमें दोनों प्रकार की शक्तियां है एक ओर दंभ, दर्प, क्रोध, अहंकार, वासना से आसुरी शक्तियां है तो दुसरी ओर अभय, अहिंसा, अप्रमाद, निरहंकार, सत्य, सहिष्णुता आदि देवीय शक्तियां भी विद्यमान है। तब व्यक्ति में आसुरी शक्तियां प्रकट होती है तब व्यक्ति उच्छंखल बन जाता है और देवीय शक्तियों के प्रकट होनें पर वह स्वयं तथा दूसरों के हितार्थ का चिंतन करता है। इस कालावधि में सम्पूर्ण रूप से आराधनी होती है तो विशेष रूप से लाभान्वित हो सकता है।सर्वप्रथम जिस मंत्र की साधना करना हो तो उसकें इष्ट के प्रति पूर्णत: समर्पण हो, आस्था इतनी गहरी हो कि मंत्र और इष्ट के साथ एकात्मकता हो जाय। सघन आस्था के साथ काल शुद्धि, क्षेत्र शुद्धि, भाव शुद्धि भी अनिवार्य है जो लोग इन नवरात्र के दिनों में मंत्रानुष्ठान करते है, उन्हें सर्वप्रथम सुरक्षा कवच का निर्माण करना होता है, जिससें अनुष्ठान को निर्विध्न रूप से सम्पन्न किया जा सकें। प्राचीनकाल में जब भी कोई अनुष्ठान करतें तो रक्षा कवच बनाकर फिर अनुष्ठान प्रारंभ करते जिससें कोई भी विध्न बाधा उन्हें विचलित नही कर पाती। आज भी साधना को सिद्धि के द्वार तक ले जाया जा सकता है बशर्ते संकल्प सुदृढ़ हो, सहनशीलता व धेर्य हो, जागरूकता हो, समर्पण हो, आसन की स्थिरता हो, मन निश्चल हो, भावना विशुद्ध हो तो कोई वजह नही कि हमारा अनुष्ठान सफल न हो, तो नवरात्र का समय एक स्वर्णिम अवसर है। इस अवसर पर आध्यात्मिकता सम्पन्न बननें की दिशा में सार्थक प्रयास करें। दुनियां में अनेक शक्तियां होती है परन्तु अध्यात्म शक्ति को सर्वोपरि शक्ति माना है। जितनें अवतार या महापुरूष हुए उन्होनें अध्यात्म शक्ति सम्पन्न बननें के लिए पुरूषार्थ किया। हमारा पुरूषार्थ भी उसी दिशा में होना चाहिए। यही काम्य है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.