यह है लोभान एनकाउन्टर की कहानी ओर डीआईजी धर्मेंद्र चोधरी मेडल केस की कहानी

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झाबुआ Live डेस्क के लिए ” अशोक बलसोरा ” की EXCLUSIVE पड़ताल ।

राष्ट्रपति सचिवालय ने अपनी 21 सितम्बर की एक अधिसूचना के जरिए मध्यप्रदेश के आयपीएस अधिकारी धर्मेंद्र चोधरी को 2004 मे दिया वीरता पदक रद्द करने का एलान किया है । राष्ट्रपति के आफिसर आफ स्पेशल ड्यूटी पी प्रवीण सिद्धार्थ की ओर से यह अधिसूचना जारी की गयी थी जो अब जाकर सार्वजनिक हुईं है । दरअसल पूरे मामले मे वीरता पदक शुन्य घोषित करने की अनुशंसा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2012 मे राष्ट्रपति सचिवालय से की थी जिस पर अब फैसला आया है ।

यह था मामला –
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दरअसल मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के कल्याणपुरा थाने के ” मेंहदीखेडा ” गांव का रहने वाले कुख्यात अंतर राज्यीय डकैत ” लोभान पिता खीमा “उम्र 22 साल जिस पर कुल 11 मुकदमे दज॔ थे तथा 15 हजार रुपये झाबुआ पुलिस की ओर से ओर एक हजार राजस्थान पुलिस की ओर से घोषित था । दिनांक – 5 दिसंबर 2002 को एसपी आर एल बोरना को अंतरवेलिया चोकी पर पदस्थ सिपाही मानसिंह ओर संजय प्रतापसिंह ने सूचना दी कि कुख्यात डकैत लोभान अपने दो साथियो के साथ मिलकर पिटोल की तरफ बाइक से जा रहा है इस पर एएसपी धर्मेंद्र चोधरी के नेतृत्व मे एक टीम बनाई गयी ओर घेराबंदी शुरु की गयी । इस दोरान आसपास के थाने ओर चोकीयो की टीम को घेराबंदी को कहा गया ओर खेडी गांव के पास लोभान खेत की मेढ से फिसलकर गिर पड़ा ओर उसके दो साथी तुवर के खेत से होकर फायर करते हुए ओर गोफन से पत्थर चलाते हुऐ फरार हो गये जबकि लोभान पुलिस पर कटटे से फायर करता रहा ओर पुलिस के अनुसार क्रास फायरिंग मे लोभान मारा गया ।

पुलिस विभाग ने की थी अनुशंशा
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लोभान के इस एनकाउन्टर मे एएसपी धर्मेंद्र चोधरी सहित कई अधिकारी ओर कम॔चारी शामिल थे ..पुलिस के इस एनकाउन्टर पर एक मजिस्ट्रेरियल जांच शाशन ने करवाई थी ओर एफआईआर भी दर्ज हुई थी दोनों ही जांच मे एनकाउन्टर को सही पाया गया था उसके बाद तत्कालीन एसपी आर एल बोरना ने दो सिपाहियों संजय प्रतापसिंह ओर मानसिंह को आउट ओफ टन॔ प्रमोशन का प्रस्ताव पुलिस मुख्यालय को भेजा था ओर एएसपी धर्मेंद्र चोधरी को राष्ट्रपति का वीरता पदक का प्रस्ताव भेजने का प्रस्ताव पुलिस मुख्यालय को इंदोर के तत्कालीन आईजी वीरेन्द्र मोहन कंवर की अनुशंसा पर भेजा गया था । पुलिस मुख्यालय ने राज्य शाशन के जरिए यह प्रस्ताव राष्ट्रपति सचिवालय भेजा जहां प्रस्ताव को मंजूर करते हुए 15 मई 2004 को वीरता पदक दिया गया था ।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को थी आपत्ति
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इस लोभान एनकाउन्टर मामले मे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बिना किसी शिकायत के सीधे पुलिस से प्राप्त रिपोर्ट के आधार स्वत संज्ञान लिया ओर जांच शुरू कर शुरु मे इस एनकाउन्टर मे शक जाहिर इस आधार पर किया था कि लोभान को करीब से गोली मारी गयी थी मगर पुलिस मुख्यालय ने तथ्य प्रस्तुत कर मानवाधिकार आयोग को संतुष्ट करने की कोशिश की । राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2011 मे पुलिस मुख्यालय को लोभान के परिवार को 5 लाख ₹ सहायता राशि देने को कहा था जो पुलिस मुख्यालय ने लोभान के परिजनों को उपलब्ध भी करवा दिये थे । हर एनकाउन्टर पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग परिजनों को सहायता राशि दिलवाता रहा है लेकिन 2011 -12 मे प्रसारण को लगभग फाइल करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एनकाउन्टर मे झाबुआ के तत्कालीन एएसपी ओर वत॔मान मे रतलाम के डीआईजी धर्मेंद्र चोधरी की एनकाउन्टर स्थल पर उपस्थिति के समय पर ओर पुलिस के कुछ प्रतिवेदनो मे विसंगति का आधार बनाते हुए राष्ट्रपति भवन को धर्मेंद्र चोधरी को दिया हुआ वीरता पदक वापिस लेने की अनुशंसा कर दी जिस पर राष्ट्रपति सचिवालय ने 21 सितम्बर को फैसला सुनाया ।

जो तीन कारणों पर होता है फैसला ; फैसले मे कारण नदारद
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पदक वापसी तीन कारणों या आधार पर हो सकती है पहला यह कि यह साबित हो कि वीरता पदक लेने वाले का चरित्र ठीक ना हो । दूसरा कारण कायराना हरकत की हो ओर तीसरा सरकार प्रकरण को फेक मानें लेकिन यहाँ तीनों कारण ना होकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के इगो को संतुष्ट करने का प्रयास यह फैसला लगता है

अब आगे क्या ?
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दरअसल धर्मेंद्र चोधरी से पदक वापिस लेने का फैसला पुलिस के मनोबल को गिराने वाला है क्योकि मजिस्ट्रेट जांच मे ओर शाशन की अन्य जांचो मे यह एनकाउन्टर सही करार दिया गया था ओर लोभान समाज के लिए खतरा था यह आ अंकडो से साबित होता है । अब इस मामले मे राज्य सरकार राष्ट्रपति सचिवालय से पुनर्विचार का आग्रह कर सकती है ओर धर्मेंद्र चोधरी के समक्ष भी कोट॔ जाने के विकल्प खुले है ।

विभाग को देगे जवाब
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इस पूरे मामले मे झाबुआ के पूव॔ एएसपी ओर रतलाम के वत॔मान डीआईजी धर्मेंद्र चोधरी से उनका पक्ष जानने की कोशिश की तो उनका कहना है किसानों वह मीडिया से अभी कोई बात नहीं करेंगे लेकिन विभाग को अपना पक्ष मांगे जाने पर रखेंगे ।

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