मिलिए टुटनदेवी से, जहां पहुंचने पर शरीर की टूटी हुई हड्डिया देवी के आशीर्वाद से जुड़ जाती है

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योगेन्द्र राठौड़, सोंडवा
जी, हां आपने जो ऊपर लिखी लाइनें पढी है वो बिलकुल सही है। यह मंदिर कही और नहीं आदिवासी अंचल के सोंडवा तहसील मुख्यालय पर स्थित है।

रियासत काल से स्थापित है मंदिर –

राजा महाराजाओं के जमाने भले चले गए हो पर उनके समय में स्थापित मान्यताएं अभी भी कायम है। यह मंदिर इस बात का जीवंत उदाहरण है। हां, यह जरुर है कि आधुनिक जमाने मे जमाने के साथ मंदिर को सीमेंट की दीवारे जरुर मिल गई है। पर आज भी आस्था इस मंदिर पर कम नहीं हुई है।

रोचक है मंदिर के नामकरण कि कहानी भी

स्थानीय किंवदंति है कि माता की बडी मूर्ति के पास विराजित छोटी माता की मूर्ति का शिश किसी समय खंडित हो गया था तब ही से माता के मंदिर का नामकरण ‘टूटन देवी’ हो गया। पर यहां कि बोलचाल की भाषा मे इसे ‘टोटन देवी’ कहां जाने लगा है। इसे आप अंग्रेजी में ‘फ्रैक्चर देवी’ शब्द से भी इनके नाम का अर्थ समझ सकते है।

हाथ-पैर टूटने (फ्रैक्चर) ठीक होने की आशा लेकर आते हैं भक्त

इस माता मंदिर पर भक्त अपने टूटे अंगों को पुन: ठीक करने कि आस लेकर आते है। यहां मान्यता है कि शरीर के अंग हाथ या पैर मे फेक्चर हो जाने पर जो भी भक्त यहां मन्नत मांगता है उसकी मनोकामना पूरी होती है।

मन्नत पूरी होने पर चढ़ाना होता है लकड़ी से बने अंग की प्रतिकृति का चढ़ावा

इस मंदिर की यह खासियत है कि यहां इच्छा पूरी होने पर आपको उस अंग की लकड़ी की बनी प्रतिकृति बनवा कर चढ़ाना होता है। जिसे ठीक होने की आशा लेकर भक्त माता के दरबार मे आता है।

कैसे पहुंचे मंदिर तक यहां पहुंचने के दोनों छोर से मार्ग उपलब्ध है।
पहला जिला मुख्यालय अलीराजपुर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी तय कर व्हाया उमराली होते हुए आपको सोंडवा पहुंचना होगा तथा दूसरा मार्ग धार जिले के कुक्षी से व्हाया डही-वालपुर होते हुए आप सोंडवा तहसील मुख्यालय पर पहुंच सकते है। इसके पश्चात सोंडवा बस स्टैंड क्षैत्र से मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सोंडवा पुलिस थाने के सामने से साकडी-उमरठ रोड पर टर्न मारकर करीब 1 किलोमीटर का रास्ता तय कर कुकडिय़ा फाटे तक पहुंचना होगा। यहां आपको यह मंदिर दिखाई देगा। मंदिर मे स्थाई तोर पर कोई पुजारी नहीं है, पर स्थानीय परंपरा के अनुसार जो गांव का पुजारा होता है। वही इस मंदिर के सारे रीति रिवाजों का निर्वहन करता है।

इन दोनों दिनों उमड़ते हैं भक्त

वैसे तो प्रत्येक दिन मंदिर मे भक्त आपको दिख ही जाएंगे, पर गुरुवार व रविवार को अन्य दिनों की तुलना में अधिक संख्या मे भक्त उमड़ते है।

दूर-दूर से आते है श्रद्धालु

मंदिर की ख्याति सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही नही है अपितु पूरे संभाग सहित आसपास के राज्यों गुजरात व महाराष्ट्र में भी इसकी ख्याति फैली हुई है, यहां तक की बडे शहरो से भी श्रद्धालु यहां आते है।
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