मनुष्य एक दूसरे की गलतियों को क्षमा कर सच्चे अर्थों में ईसा मसीह के अनुयायी बने : बिशप डॉ. बसील भूरिया
अब्दुल वली पठान, झाबुआ
25 दिसंबर ख्रीस्त जयंती यानी ईसा मसीह का जन्मदिन। इसा मसीह का जन्मदिन पूरे विश्व में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। चार सप्ताह पूर्व आध्यात्मिक एवं बाह्य तैयारियां प्रारंभ हो जाती है। इस अवधि को आगमन काल कहा जाता है। संपूर्ण विश्व में केरोल गायन की परंपरा है और हमारे झाबुआ धर्मप्रांत में नायक दल घर-घर जाकर लोगों को प्रभु ईसा मसीह के जन्म का संदेश देते हैं। उक्त प्रेरक उद्बोधन धर्मावलंयिों को बिशप डॉ.बसील भूरिया ने दिए। बिशप भूरिया ने कहा कि चर्च में हरी पत्तियों का एक चक्र बनाया जाता है जिसमें चार मोमबत्तियां लगाई जाती है जो कि आगमन काल के चार सप्ताह को इंगित करते हुए आध्यात्मिक तैयारी मोमबत्ती जलाकर प्रार्थना की जाती है। प्रभु ईसा मसीह का जन्म एक गौशाला में हुआ था इसलिए ख्रीस्तीय विश्वासी अपने-अपने घरों में गौशाला बनाते हैं और प्रभु येसू के जन्म की दलायु प्रेम की अभिव्यक्ति को प्रकट करते हैं। उन्होंने कहा कि पवित्र धर्म ग्रंथ बाइबिल में इस बात का विशेष उल्लेख है कि तीन राजा पूर्व से एक तारे को देखते हुए, इसा की जन्मस्थली पहुंचते थे और वहां चरनी में लेटे बालक इसा को सोना, लोबान और गंधरस की भेंट चढ़ाई थी। इसलिए चर्च में या घरों में इस घटना के सूचकां क सर्वत्र तारे झिलमिल करते दिखाई देते हैं। क्रिसमस हमें यह आव्हान करता है कि हम उस बड़ी दिव्य रोशनी से स्वयं को आलोकित करे तथा अपनी रोशनी इस तनमय संसार में प्रकट करे। ईस पुत्र प्रभु येसू ख्रीस्त के इस संसार में आगमन को संत योहन कुछ यूं बयान कतरते हैं जैसा कि पवित्र बाइबिल में लिखा है कि आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ और शब्द ईश्वर था और शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। हमने उसकी ऐसी महिमा देखी जैसे की पिता के एकलौते पुत्र की महिमा जो कि अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण है। ईश्वर में प्रभु येसु में हमें चुना है कि हम ईश्वर के उस प्रेम के सहभागी बने, जैसे ईश्वर ने हमे प्यार किया, यह पर्व हमें सीख देता है कि हम एक-दूसरे इंसानों से प्यार करे, उनका आदर करे, तथा एक दूसरे की जरूरत में सेवा सहयोग की भावना रखे, आगे बढक़र एक दूसरे की गलतियों को क्षमा करे और ईसा मसीह के सच्चे अनुयायी बने रहे। गौरतलब है कि ईसा का जन्म 25 दिसंबर मध्य रात्रि में हुआ इसलिए 24 दिसंबर रात्रि 11 बजे प्रत्येक चर्च में इस त्योहार की विशेष आराधना शुरू हो जाती है जो मध्य रात्रि पश्चात समाप्त होती है। इसके बाद ईसाई धर्मावंलबी एक दूसरे को ख्रीस्त जयंती की शुभकामनाएं देते हैं। त्योहार मनाने का यह सिलसिला 25 दिसंबर से नए वर्ष तक चलता है। वहीं थांदला चर्च के संचालक फादर कसमीर डामोर ने बताया कि प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी क्रिसमस का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है जिसमें रात्रि में जुलूस के साथ मिस्सा पूजा होगी और अन्य धार्मिक कार्यक्रम समाजजनों की उपस्थिति में उत्साह के साथ संपन्न होंगे।
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