पेटलावद ब्लास्ट का जख्म एक साल बाद भी हरा, पीडि़त परिवारों की नहीं हो रही सुनवाई

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img-20160910-wa0021 41झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
img-20160910-wa0065पेटलावद ब्लास्ट के एक साल बाद भी इलाज के लिए दर दर भटक रहा युवक, तत्कालीन कलेक्टर से सहायता मांगी तो कहा गया कि पेटलावद में मुफ्त में इलाज करवाओं जबकि पेटलावद में कोई सुविधा नहीं है कोई हड्डी रोग विशेषज्ञ भी नहीं है। आखिर गरीब आदमी अपना इलाज कहां करवाए?
यह है मामला
झोंसर निवासी भेरूसिंग थावरिया कटारा उम्र 34 वर्ष की 12 सितंबर के ब्लास्ट में एक पैर की हड्डी पूरी तरह से टूट गई, तीन माह तक तो सरकार ने इलाज करवाया किन्तु इसके बाद भेरूसिंग को स्वयं के रुपए से इलाज करवाना पडा, पैर में क्रेन डालकर हड्डी को बढ़ाई गई, जिस कारण लगातार खर्चा आता रहा है लगभग 1 साल में 75 हजार रुपए अपने जेब से खर्च करने के बाद आज भी घाव पूरी तरह से नहीं भरा। छोटे-छोटे बच्चें प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे है दो साल से स्कूल फीस भी जमा नहीं की गई। वहीं बच्चों को किताबे लाने के लिए भी पैसे नहीं है, दूसरों से उधार किताब ला कर पढ़ाई कर रहे है, खेत है किन्तु खेत में काम करने वाला कोई नहीं है। तत्कालीन कलेक्टर अरूणा गुप्ता से 18 अगस्त को जनसुनवाई में आवेदन दे कर गुहार लगाई तो उन्होने अजीब से फरमान दिया कि पेटलावद में इलाज करवाए और केस को समाप्त कर दिया, फिर भी हर माह दाहोद जाकर अपने पैर का इलाज करवा रहा भेरू अपनी मुसीबतों से स्वयं ही लड़ रहा है।

दोनों आंखों खोने के बाद दर-दर की ठोंकरे खाने को मजबूर सोहन खराड़ी

- दोनों आंखों से अंधा हो गया सोहन खराडी.
– दोनों आंखों से अंधा हो गया सोहन खराडी.

मेरे से अच्छे तो वे जो मर गए, यह बात डाबरिया फलिये के सोहन खराडी ने कही। 12 सितम्बर के ब्लास्ट में उसकी दोनों आंखे चली गई, वहीं पैर में भी गंभीर चोट लगी, जिसका इलाज इंदौर से लेकर दिल्ली तक चला, किन्तु आंखों की रोशनी नहीं मिली, सरकार ने इलाज का पैसा तो दिया किन्तु इंदौर व दिल्ली आने जाने व वहां रहने खाने के पैसों के लिए भी सोहन को संघर्ष करना पड़ा।
अब सोहन के सामने समस्या यह है कि अपने परिवार का लालन पालन कैसे करना, घर में पत्नी व दो छोटे बच्चे है, उन्हे क्या खिलाना कहां से पढाना, मकान केवल ईंटे रखकर बना हुआ है, बारिश में पूरा घर पानी से भर जाता है। सोहन का कहना है इस तकलीफ को मै देख तो नहीं सकता किन्तु महसूस करता हूं, पर कुछ कर भी नहीं पाता हूं।
सरकार ने पेंशन चालू करने का आश्वासन दिया था आज तक चालू नहीं हुई। साथ ही इंदिरा आवास देने का वादा भी किया था. किन्तु वह भी आज तक पूरा नहीं हुआ, रही सही कसर नहर ने पूरी कर दी, जमीन का एक हिस्सा नहर डूब में आ गया, जिसका मुआवजा 50 हजार रूपए दिया गया जो तीन भाईयों में बांटा गया। इलाज के लिए एक बार पुन: दिल्ली जाना था किन्तु पैसे नहीं होने के कारण नहीं जा पा रहा हूं, मेरे पूरे जीवन में अंधकार ही अंधकार है।
ब्लास्ट के बाद मां-बेटी का धूप में जाते ही हो जाती है बेहोश
अपनी बच्ची को ट्यूशन के लिए खुद दूध देने आई ग्राम नाहरपुरा की लीलाबाई मईडा आज अपने कर्ज के साथ दुख को बढ़ता देख काफी परेशान है। ब्लास्ट के वक्त टेम्पो में उतरकर पैसे देते एक धमाका हुआ और फिर कुछ भी पता ही नहीं चला। गहरे जख्म लिए लीलाबाई अपनी पुत्री सोना के साथ हास्पिटल कब गई उसे पता ही नहीं चला लेकिन जब आंख खुली तो पता चला की उसके साथ हादसा हुआ है और पूरा पेट फट गया है। खेती बाड़ी में मेहनत मजदूरी कर अपना जीवन यापन करने वाली लीलाबाई जब तक दाहोद में रही उसका इलाज नि:शुल्क चला लेकिन घर के आने के बाद उसके पेट में लगे टांके खुल गए, जिसके कारण उसने अपना इलाज पेटलावद के निजी चिकित्सालय में करवाया जिसके चलते उस पर करीब 50 हजार का कर्ज हो गया। रुपए की व्यवस्था करने के लिए उसके गहने आदि भी गिरवी रखना पड़े। आज भी अपने पेट पर ब्लास्ट की बड़ी निशानी लिए लीलाबाई परेशान हो रही है।
छात्रा का बिगड़ा एक साल
ट्यूशन आई छात्रा सोना भी टेम्पो में उतरी थी की धमाके साथ रासायनिक उर्वरक उसके पूरे शरीर पर चिपक गया। जिस कारण वह कई महीनों तक दाहोद में उपचार करवाया, इस दरमियान उसका स्कूल भी जाना बंद हो गया। अपनी पढ़ाई सुचारू रूप से जारी रखने के लिए बालिका सोना इस साल फिर से स्कूल तो जा रही है लेकिन ब्लास्ट की परेशानी उसका पीछा नहीं छोड़ रही है। तेज धूप उसको अब बर्दाश्त नहीं होती है जिसके कारण वह बेहोश होकर गिर जाती है।

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