झाबुआ लाइव से उमेश चौहान की रिपोर्ट-
जहां एक और आज की आधुनिकता की अंधी दौड़ में लोग अपनी प्राचीन परम्पराओं को भूल चूके हैं। ऐसे समय में अपनी संस्कृति को बचाने व अन्य लोगो को प्रेरणा देने के लिए बैलगाड़ी पर अपनी बारात ले जाने की इस पहल को सभी लोगों ने सराहा है।
आज के दौर मे आप जहा भी आदिवासी समाज की बारात देखेंगे तो उसमे दर्जनों वाहन देखेंगे जिसमे ट्रैक्टरों और चारपहिया वाहनो पर बारातियों को देखेंगे। क्योंकि आज की इस आधुनिक व चकाचौंध से भरी दुनिया मे बारात ले जाने का यही तरीका अपनाया जाता है जिसमे डीजे पर झूमते नाचते बाराती सहज ही देखे होंगे पर आज जो बारात कल्याणपुरा से निकली वो देखने वालो की आंखों में ठेठ आदिवासी संस्कृति को एक बार फिर जिंदा कर गई।
कल्याणपुरा के लोगों के लिए आज अचरज का ठिकाना नहींरहा जब उनके सामने से ऐसी बारात गुजरी जिसका दुल्हा 23 वर्षीय हरिसिह निवासी खेडा था यह बारात समीप के गगांव वडलीपाड़ा गई जिसका इंतजार दुल्हन तौला को भी बेसब्री से था। ये बारात कई आदिवासी युवाओं के लिए प्रेरणा का काम करेगी जो की इस आधुनिकता की दौड़ में अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं।
दो दर्जन बैलगाडिय़ां रही आकर्षक का केंद्र
इस बारात मे डीजे की जगह अपने पारम्परिक वाध्य यंत्र डोल और मांदल भी थे बैलगाडीयो मे बाराती सवार थे जिसमे महिलाएं अपने लोग गीत गा रही थी वही बारात के आगे युवक-युवतियां नाच रहे थे। बारात में दूल्हे की बैलगाड़ी सबसे आगे थी जिसे विशेष तौर पर सजाया गया था। वही 2 दर्जन बैलगाडिय़ों में अन्य बाराती सवार थे। दूल्हे हरिसिंह के अनुसार वह अपने समाज को यह संदेश देना चाहता है की परंपरागत रूप से शादी के आयोजन का मजा ही कुछ अलग है वही इसमें फिजुलखर्ची भी नहीं होती और हमारी संस्कृति भी बची रहेगी। गौरतलब है कि दूल्हा हरिसिंह झाबुआ की सामाजिक संस्था शिवगंगा में सक्रिय कार्यकर्ता है अनपढ़ और दिव्यांग होने बावजूद इस युवक ने अपने समाज के सामने एक मिसाल पेश की है..।
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