दो रूपयों की मजदूरी से पद्मश्री तक का सफर कैसे पूरा किया भूरी बाई, जानिये इस खबर में

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भूपेन्द्रसिंह नायक पिटोल
पिथौरा कलाकृतियों को लेकर पद्मश्री से सम्मानित पिटोल के पास ग्राम बावड़ी बड़ी में जन्मी और पिटोल से सटे गुजरात के गांव बटवारा में ब्याही भूरी बाई के जीवन की कहानी उनकी जुबानी है।
हाल ही में 2021 के पद्मश्री एवं पद्मा विभूषण अवॉर्ड में देश के 119 विभूतियों को इन सर्वोच्च अवार्ड से सम्मानित किया गया जिसमें 7 लोगों को पद्म विभूषण 10 को पद्मभूषण और 102 लोगों को पद्म श्री अवार्ड से नवाजा गया जिनमें 16 लोगों को मरणोपरांत यह सम्मान दिया गया। इन हस्तियों में सम्मानित होने वाली देश की 29 महिलाएं भी शामिल थी। इन हस्तियों को सम्मानित करने के लिए राष्ट्रपति भवन में यह कार्यक्रम हुआ था। इसी कड़ी में पिटोल के पास आदिवासी अंचल के गांव बावड़ी बड़ी में जन्मी भूरी बाई बारिया भी पद्मश्री से का पद्मश्री सम्मान से सम्मान किया गया। इस सम्मान से हमारा आदिवासी झाबुआ जिला भी गौरवान्वित हुआ।
बचपन की मजदूरी से पद्मश्री तक का सफर
भूरी बाई ने बताया कि मेरे पिताजी गांव बावड़ी में रहते थे मैं 10 वर्ष की उम्र से ही मजदूरी कर रही हूं। मैंने अभी तक स्कूली शिक्षा नहीं ली है और मैं आज भी अपने आपको अनपढ़ कहती हूं। मैं मेरे पिताजी के साथ और बहन के साथ घर का गुजारा करने के लिए जंगलों से लकडिय़ां काटकर पिटोल गांव और गुजरात के दाहोद में बेचा करती थी और हमारे परिवार का गुजारा करती थी मैंने और मेरी बहन ने शुरू से मजदूरी करी पहले खेती में इतना अनाज उत्पादन नहीं होता था सिंचाई के साधन नहीं थे इसलिए मजदूरी करने जाना पड़ता था।
शादी के बाद पति के साथ भोपाल करने मजदूरी करने गई थी। शादी से पहले मैं अपने घर पर ही मिट्टी की दीवारों पर अपने मन की कल्पना के अनुसार इन कलाकृतियों को बनाती थी। भूरी बाई बताती है कि मेरी शादी गुजरात के बटवारा गांव में हुई इससे पहले मैं अपने घरों की कच्ची दीवारों पर गीली मिट्टी करके इन कलाकृतियों को बनाती थी पर शादी के बाद मुझे मेरे पति भोपाल मजदूरी करने के लिए ले गए वहां भारत भवन म्यूजियम बन रहा था। तब मैं मजदूरी करते हुए एक समय कलाकृति बना रही थी तब वहां पर कार्यरत स्वामीनाथन जी की नजर मेरी कलाकृति पर पड़ी और उन्हें मुझे ब्रश से पेंटिंग करने के लिए प्रेरित किया तब मुझे वहां दीन दाढ़की के रूप में 6 रुपए प्रतिदिन मिलती थी और उन्होंने मुझे 10 रुपए दीन दाढ़की की देकर मेरी कला को प्रोत्साहन कर आगे बढ़ाया जिसका परिणाम यह है कि मेरी पिथौरा कला कृति को मध्यप्रदेश संपूर्ण भारत देश और विदेशों में भी पहचान मिली। इसी कला की वजह से पहचान एवं मुझे पद्मश्री अवार्ड मिला मैं मेरे गुरुदेव स्वामीनाथन जी को अपना भगवान समझती हूं और उन्हीं की प्रेरणा से आगे बढ़ रही हूं अगर इस कला को आदिवासी भाई.बहन सीखना चाहते हैं तो मैं उन्हें इस कला को आगे बढ़ाने के लिए ट्रेनिंग दूंगी।

आज भी पुराने रंग ढंग में जीवन जीती है भूरी बाई
भूरी बाई ने बताया कि मेरे पिताजी और मेरे ससुराल में आज भी हम लोग ग्रामीण परिवेश के अनुसार कवेलू के मकान में रहते हैं तथा आज भी मिट्टी के चूल्हे और मिट्टी के बर्तनों में ही स्वादिष्ट खाना पका कर खाते हैं जिससे हमें हमारी ग्रामीण संस्कृति को जीवित रख सकें और हम हमारेपूर्वजों के अनुसार उनकी मान्यताओं के अनुसार देवी देवताओं के समक्ष नतमस्तक होकर धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने मुझे इस काबिल बनाया कि मुझे देश के राष्ट्रपति के हाथों पदम श्री का सम्मान मिला।

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