टमाटर की पैदावर में कमी से मांग बढ़ी, खेतों में ब्लाइड बीमारी से किसान परेशान

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-पेटलावद क्षेत्र में टमाटर की खेती करने वाले किसान इन दिनों असहज हैं। इस साल टमाटर के भाव आसमान छू रहे हैं लेकिन पैदावार में कमी आ गई है। दिल्ली की मंडियों में भाव 800 रुपए प्रति कैरेट तक मिल रहे हैं जबकि अंचल में रकबा घटकर 1500 से 1600 हेक्टेयर रह गया है। ब्लाइड नामक बीमारी के कारण खेत के खेत खाली हो गए है। ऐसे हालात में किसान आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। पिछले साल हालात इसके ठीक उलट थे। अंचल में 2500 से 3000 हेक्टेयर में टमाटर लगा था वहीं मंडियों में भाव 80 से 100 रुपए कैरेट मिले। इतने कम भाव होने के कारण किसानों को मजबूरी में अपनी फसल मवेशियों को खिलाना पड़ी थी। समय बदला और आज जोरदार भाव के बीच एक-एक टमाटर मूल्यवान हो गया है।गौरतलब है कि क्षेत्र के टमाटर अपने स्वाद और रंग के कारण रतलाम मंडी से लेकर पाकिस्तान और खाड़ी देशों तक पसंद किए जाते हैं किंतु लंबे समय से हो रही खेती ने कई नुकसान भी दिए हैं। टमाटर की खेती में सर्वाधिक कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। ये कीटनाशक सेहत पर तो बुरा असर डालते ही हैं। फसलों में भी रोग और वायरस की शिकायत आती रहती है। इसके चलते किसानों ने भारी नुकसान भी उठाया है। वहीं इस वर्ष रकबे में कमी आई है।इस बार जिन किसानों ने टमाटर लगाया वे खुद को खुशनसीब महसूस कर रहे हैं। रामनगर के लक्ष्मीनारायण पाटीदार का कहना है कि दिसंबर तक ये भाव मिलते रहे तो पिछले वर्ष के घाटे भी पूरे हो जाएंगे। पेटलावद के भरत मुलेवा ने कहा कि भाव तो अच्छे मिल रहे लेकिन टमाटर हैं की कमी है। पिछली बार हमने रोज गाडिय़ां भरकर भेजी थीं लेकिन इस बार 75 से 80 कैरेट टमाटर ही आ रहे हैं। हाल के वर्षों में लगातार नुकसान होने के कारण हमने इस बार टमाटर नहीं लगाया। उनका कहना है कि दिल्ली मंडी में मांग लगातार बढ़ती जा रही है जिससे भाव ऊंचे ही हैं। वहीं क्षेत्र के बाजार में भी लगभग 40 रुपए किलो बिक रहे हैं। दिल्ली मंडी तक टमाटर भेजने में किसान को 100 रुपए तक का खर्च आता है। इसलिए जिनके यहां टमाटर आ रहे हैं वे इन्हें मंडी तक पहुंचा रहे हैं। किसानों ने सरकार से मांग की है कि अन्य फसलों की तरह टमाटर भी समर्थन मूल्य पर खरीदा जाए।मिश्रित फसलें लेंजानकारों का कहना है कि किसानों को यदि अपनी फसलों के अच्छे भाव चाहिए तो वे मिश्रित फसलों का उपयोग करें ताकि कोई भी फसल अधिक मात्रा में नहीं आए। देखा गया है कि जो फसल अधिक आ जाती है उसके भाव कम हो जाते हैं। इसलिए किसानों को शासन से सहयोग लेकर मिश्रित फसलें बोना चाहिए ताकि उन्हें किसी न किसी फसल में अधिक लाभ मिल जाए।तीन साल के आंकड़ों पर एक नजरवर्ष क्षेत्रफल उत्पादन भाव2015-16 3000 हेक्टेयर 21लाख क्विंटल 80 से 150 रुपए2016-17 2500 हेक्टेयर 15 लाख क्विंटल 50 से 100 रुपए2017-18 1500 हेक्टेयर 8 लाख क्विंटल 600 से 800 रुपए

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