झाबुआ – अलीराजपुर सहित कुछ आदिवासी जिलो मे 5 वी अनुसूची लागू करने के लिए हाईकोर्ट मे लगी जनहित याचिका ; हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

May

मुकेश परमार @ झाबुआ


मध्यप्रदेश हाईकोर्ट इंदोर मे जयस प्रमूख ओर धार जिले के मनावर से कांग्रेस विधायक डाक्टर हीरालाल अलावा ने एक जनहित याचिका लगाई गयी है जिसमे मांग की गयी है कि संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत उल्लेखित 5 वी अनुसूची लागू करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार को आदेशित करने को कहा गया है .. याचिका क्रमांक 12572 /2020 को इंदोर हाईकोर्ट की दो सदस्यो की बैंच जज जस्टिस सतीश शर्मा एंव जस्टिस शैलेंद्र शुक्ला ने आज 5 सितंबर को मामले की प्रारभिंक सुनवाई करते हुऐ मध्यप्रदेश सरकार से दो हफ्ते मे इस मामले मे अपना पक्ष रखने को कहा है ..याचिका मे वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर ओर अभिनव धनोदकर की ओर से पैरवी की जा रही है । याचिका मे कहा गया है कि आजादी के 70 साल बाद भी सरकारें 5 वी अनुसूची मे नामित किये राज्यो जिनमे मध्यप्रदेश भी शामिल है मे इसे लागू नही कर पाई है जिससे आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारो का हनन हो रहा है तथा आदिवासी समुदाय अपने प्रशाशनिक हको से भी वंचित है । गोरतलब है कि कांग्रेस ने सन 2018 मे अपने वचन पत्र क्रमांक 62 मे भी प्रदेश के आदिवासियों से 5 वी अनुसूची का वादा किया गया था लेकिन अपने 15 महीने के कार्यकाल मे कमल नाथ सरकार अपना वचन नहीं निभा सकी ओर 5 वी अनुसूची के मुद्दे को कांग्रेस सरकार ने हाशिऐ पर डाल दिया था हालांकि डाक्टर हीरालाल अलावा लगातार पत्र लिखकर अपनी ही सरकार को जयस की ओर से जगाते रहे लेकिन सरकार सोई रही ..अब जाकर डाक्टर हीरालाल अलावा ने न्यायिक प्रक्रिया के जरिऐ संविधान के अनुच्छेद 244 मे उल्लेखित हक को हासिल करने का न्यायिक अभियान शुरु किया है ।

समझिऐ 5 वी अनुसूची है क्या ?

आदिवासियों के लिए संविधान में 5 वीं अनुसूची बनाई गई क्योंकि आदिवासी इलाके आज़ादी के पहले भी स्वतंत्र थे. वहां, अंग्रेज़ों का शासन-प्रशासन नहीं था. तब इन इलाकों को बहिष्कृत और आंशिक बहिष्कृत की श्रेणी में रखा गया?

1947 में आज़ादी के बाद जब 1950 में संविधान लागू हुआ तो इन क्षेत्रों को 5 वीं और छठी अनुसूची में वर्गीकृत किया गया.

जो पूर्णत: बहिष्कृत क्षेत्र थे उन्हें छठी अनुसूची में डाला गया. जिसमें पूर्वोत्तर के चार राज्य हैं- त्रिपुरा, मेघालय, असम और मिज़ोरम.

और जो आंशिक बहिष्कृत क्षेत्र थे, अंग्रेजों ने वहां भी कोई हस्तक्षेप नहीं किया. उन्हीं क्षेत्रों को 5वीं अनुसूची में डाला गया. इसमें दस राज्य शामिल हैं, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश.

संविधान में 5 वीं अनुसूची के निर्माण के समय तीन बातें स्पष्ट तौर पर कही गईं- सुरक्षा, संरक्षण और विकास.

मतलब कि आदिवासियों को सुरक्षा तो देंगे ही, उनकी क्षेत्रीय संस्कृति का संरक्षण और विकास भी किया जाएगा, जिसमें उनकी बोली, भाषा, रीति-रिवाज़ और परंपराएं शामिल हैं.

5 वीं अनुसूची में शासन और प्रशासन पर नियंत्रण की बात भी कही गई है. ऐसी व्यवस्था है कि इन क्षेत्रों का शासन-प्रशासन आदिवासियों के साथ मिलकर चलेगा

मतलब इन क्षेत्रों को 5वीं अनुसूची में एक तरह से विशेषाधिकार मिले, स्वशासन की व्यवस्था की गई. जिसके तहत इन क्षेत्र में सामान्य क्षेत्र के आम क़ानून लागू नहीं होते. स्वशासन के लिए संविधान में ग्रामसभा को मान्यता दी गई है

जैसे कि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग परंपराएं हैं. मध्य प्रदेश में पटेल, झारखंड में मुंडा, मानकीय और पहान, ये व्यवस्थाएं चली आ रही हैं.

इन प्राचीन कबीलाई व्यवस्थाओं में एक ढांचा था, कबीले का सरदार होता था, आपसी झगड़ों का निपटारा वे गांव में ही कर लेते थे. पुलिस थाना व्यवस्था तब नहीं होती थी.

5वीं अनुसूची में इसी व्यवस्था को ग्रामसभा के रूप में मान्यता दी और उसे ज़मीन बेचने और सरकारी अधिग्रहण संबंधी अधिकार दिए. अपनी भाषा, संस्कृति, पहनावा, रीति-रिवाज़ और बाज़ार की व्यवस्था तय करने का अधिकार मिला कि बाज़ार में क्या बिके, क्या न बिके? गांव चाहता है कि शराब न बिके तो नहीं बिकेगी.

फिर 1996 में 5 वीं अनुसूची के परिदृश्य में पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) क़ानून बना. 5 वीं अनुसूची में ग्रामसभा पारिभाषित नहीं थी, अब 9 बिंदुओं में पारिभाषित कर दिया गया.

दूसरा, ग्रामसभा के साथ-साथ पंचायती राज व्यवस्था को भी जोड़ा गया. दोनों को गांव के विकास की ज़िम्मेदारी मिली. ये गांव की प्रशासनिक व्यवस्था हुई. ज़िले की प्रशासनिक व्यवस्था करने के लिए ज़िला स्वशासी परिषद (डीएसी) को मान्यता दी.

समस्या यहीं से है कि डीएसी की बॉडी और नियमावली अब तक किसी राज्य ने नहीं बनाई कि उसमें कितने सदस्य हों, उनके काम क्या हों.

यह परिषद स्वायत्त है, मतलब कि इसके पास वित्त का भी प्रबंधन हो. संविधान के अनुच्छेद 275 में ट्राइबल सब-प्लान (टीएसपी) की व्यवस्था है, इसके तहत ऐसे क्षेत्रों के लिए अलग से बजटीय आवंटन होता है जिसका प्रयोग आदिवासियों के कल्याण और उनकी आर्थिक व सामाजिक बेहतरी के लिए होता है. ज़िला स्वशासी परिषद पैसा किस तहसील में, किस ब्लॉक में ख़र्च हो

पर जब परिषद ही नहीं बना तो स्वाभाविक है कि टीएसपी का पैसा कहीं न कहीं डायवर्ट किया जा रहा है. जैसे मध्य प्रदेश में टीएसपी का 100 करोड़ रुपया राज्य सरकार ने इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट में दे दिया.

दस्तावेज़ों के सहारे सामने आया ये महज़ एक छोटा सा उदाहरण है. पूरे प्रदेश में यह पैसा कहीं शहरों में विकास के नाम पर तो कहीं अस्पताल और यात्राओं में लगाया जा रहा है.

वहीं, स्वशासन की कल्पना करते हुए जिस ग्रामसभा की बात की गई, वर्तमान में उसके द्वारा लिए गए निर्णय को शासन स्वीकार ही नहीं करता है