इन पांच कारणों से कर्नाटक का किला गंवाया कांग्रेस ने

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@ चंद्रभान सिंह भदोरिया @ चीफ एडिटर
कर्नाटक चुनावों के शुरुआती रुझानों से कांग्रेस को निराशा का सामना करना पड़ा है। रुझानों में बीजेपी अकेले बहुमत की और बढ़ती दिखाई दे रही है और कांग्रेस का आखिरी किला बताया जा रहा कर्नाटक भी उसके हाथ से फिसलता दिखाई दे रहा है। बीजेपी के लिए कर्नाटक में आना 2019 के लिहाज से भी काफी अहम माना जा रहा है। दक्षिण भारत में इसे बीजेपी की शुरुआत कहा जा रहा है तो कांग्रेस के लिए आने वाले दिनों में चुनौती और बड़ी होने जा रही है। आइए जानते हैं कि कांग्रेस की इस हार की क्या पांच बड़ी वजहें रहीं-

एंटी इन्कमबेंसी फैक्टर

कर्नाटक को राज्य में एंटी इन्कमबेसी फैक्टर का सामना करना पड़ा। सीएम सिद्धारमैया के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार इंदिरा कैंटीन जैसी योजनाओं के बावजूद लोगों को लुभाने में नाकाम रही। कांग्रेस और बीजेपी दोनों के मैनिफेस्टो में महिलाओं को आरक्षण, युवाओं को शिक्षा और रोजगार के भरोसे जैसे तमाम वादे लगभग एक जैसे ही थे। हालांकि बीजेपी ने कांग्रेस के शासनकाल में भ्रष्टाचार और केंद्र की योजनाओं और फंड को लागू न करने जैसे मामलों पर राज्य की सरकार को घेरने का काम किया और इसमें सफल भी हुई।

मोदी का जवाब नहीं-

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन चुनावों में बीजेपी की ओर से प्रचार की कमान संभालीण् इस दौरान पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने उनका कदम-दर-कदम साथ दिया। मोदी अपने प्रचार में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर सीएम सिद्धारमैया से जुबानी जंग में अकेले लोहा लेते दिखाई पड़े। कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी ने जमकर कैम्पेनिंग की, लेकिन पीएम मोदी अपनी कैबिनेट के मंत्रियों, कई राज्यों के सीएम के साथ चुनाव प्रचार में उतरे और लोगों को अपने वादों पर भरोसा करवाने में सफल रहे।

बसपा और एनसीपी का जेडीएस के साथ जाना

पारंपरिक रूप से दलित वोटर्स को कांग्रेस के साथ माना जाता है।े इन चुनावों में बहुजन समाज पार्टी का जेडीएस के साथ मिलकर चुनाव लडऩा भी कांग्रेस के लिए नुकसानदायक रहा। इसके अलावा कांग्रेस को सेक्युलर वोट के बंटवारे का भी नुकसान उठाना पड़ा। बीजेपी से मुकाबले के नाम पर ये वोटर्स कांग्रेस, एनसीपी और जेडीएस में बंट गए। बहुजन समाज पार्टी और एनसीपी 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए गैर बीजेपी, गैर कांग्रेसी थर्ड फ्रंट बनाने के लिए कांग्रेस से छिटक रही हैं। यही चीज कांग्रेस को भारी पड़ा।

सिद्धारमैया को खुली छूट और आंतरिक गुटबाजी

कर्नाटक चुनावों में कांग्रेस में खेमेबाजी भी देखने को मिली। पार्टी में सीएम सिद्धारमैया को खुली छूट देने का विरोध कांग्रेस के कई नेताओं ने छुपे तौर पर किया। टिकट बंटवारे में भी सिद्धारमैया की ही चली। आने वाले दिनों में पार्टी की हार की एक वजह टिकट बंटवारे में भी तलाशी जाएगीण् कई जगहों पर एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस के युवा नेताओं को टिकट मिले तो कई बड़ी सीटों पर कांग्रेस ने जिला और ब्लॉक स्तर के नेताओं को टिकट दिए।

लिंगायत कार्ड फेल होना-

कांग्रेस ने चुनावों से ठीक पहले लिंगायत वोटरों को लुभाने के लिए इसे अलग धर्म की मान्यता देने का कार्ड चला था। बीजेपी ने इसे समाज तोडऩे वाला कदम बताया था। राज्य की करीब 76 सीटों पर दखल रखने वाले लिंगायत समुदाय को लुभाने की यह कोशिश कांग्रेस को भारी पड़ी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत बीजेपी के दूसरे नेता मतदाताओं को यह समझाने में सफल रहे कि कांग्रेस का यह कदम हिंदू धर्म को बांटने वाला और समाज को तोडऩे वाला है।

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