37 लाख हेक्टयर उजाड़ वन, बंजर वन निजी क्षेत्र को लीज पर दिए जाने का विरोध, जयस ने राज्यपाल के नाम दिया ज्ञापन
झाबुआ डेस्क। सोमवार को जयस ने राज्यपाल के नाम दिया ज्ञापन देकर 37 लाख हेक्टयर उजाड़ वन, बंजर वन निजी क्षेत्र को सौंपने का विरोध किया है। तहसीलदार झाबुआ को दिए ज्ञापन में इसे निरस्त कराने की मांग राज्यपाल से की गई।
ज्ञापन में कहा ब्रिटिश हुकुमत ने 1862 में वन विभाग की स्थापना की 1864 में पहला वन कानून, 1878 में दूसरा वन कानून एवं 1927 में तीसरा वन कानून लागू कियाद्ध जयस पूरी जिम्मेदारी के साथ आपको बता रहा है कि भारतीय संविधान के बीते 75 वर्षीय सफर में वन विभाग ने आदिवासी समुदाय पर ऐतिहासिक अन्याय किए है, प्रजातांत्रिक व्यवस्था द्वारा बनाए गए संविधान, कानून एवं संशोधनों को चुनौतियां दी है और इसे हर काल खण्ड में समर्थन भी मिला है। भारतीय न्याय व्यवस्था की भूमिका भी वन, वनभूमि, पर्यावरण संरक्षण, वन्य प्राणी संरक्षण एवं जैव विविधता के संरक्षण का नाम लेकर जंगलों पर आश्रित समुदाय से उसके अधिकार छीने जाने, उस पर सरकार अन्याय कर रही है। हम इस पूरे विषय पर संक्षिप्त और प्रमाणित जानकारी बता रहे कर रहे संविधान की 5वीं अनुसूची में आपको अधिकार दिए हैं, महामहिम राज्यपाल को अधिकार दिए हैं, हम उन अधिकारों के अनुसार जवावबदेही एवं जिम्मेदारी आपको याद दिलवा रहे है।
ज्ञापन में कहा 37 लाख हेक्टयर बंजर एवं उजाड़ वन भूमि मध्य प्रदेश शासन वन विभाग के अधिकारी अपनी दादागिरी इस तरह कर रही है वह राज्य के हितों की पूर्ण अनदेखी कर रहे है। असीम श्रीवास्तव प्रधान मुख्य वन संरक्षण वन बल प्रमुख ने सार्वजनिक रूप से 37 लाख हेक्टयर उजाड़ वन एवं बंजर वन राज्य में होना बताकर उसे निजी क्षेत्र को लीज पर दिये जाने की योजना सार्वजनिक की है जिसे दुर्भाग्य से हमारे निर्वाचित जनप्रतिनिधि परीक्षण करने और करवाने की बजाय उपलब्धि बताकर उद्योगपतियों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे है। हम वैधानिक सवाल सामने रख रहे है, वैधानिकता के दायरे में जानकारी का परीक्षण करने, मूल्यांकन करने एवं सत्यापन करने का अनुरोध कर रहे है।
ये बिंदु रखे ज्ञापन में
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मध्य प्रदेश वन विभाग वर्तमान में कितनी आरक्षित वन भूमि, कितनी संरक्षित वन भूमि एवं कितनी असीमांकित वन भूमि राज्य में होना प्रतिवेदित कर रहा है।
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इस प्रतिवेदित भूमि में से कितनी भूमि भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 20 के अनुसार राजपत्र में आरक्षित वन अधिसूचित भूमि है, कितनी भूमि राजपत्र में धारा 20 के अनुसार आरक्षित वन अधिसूचित किए बिना ही आरक्षित वन दर्ज की जा रही है प्रतिवेदित की जा रही है।
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इस प्रतिवेदित भूमि में से कितनी भूमि धारा 29 के अनुसार संरक्षित वन भूमि है कितनी भूमि को धारा 29 के तहत संरक्षित वन अधिसूचित किए बिना ही संरक्षित वन दर्ज एवं प्रतिवेदित किया जा रहा है।
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इस प्रतिवेदित भूमि में से कितनी भूमि किस धारा के अनुसार असीमांकित वन भूमि कब-कब अधिसूचित की गई है, असीमांकित वन भूमि की किस कानून, नियम, मैनुअल या कोड में क्या परिभाषा दी गई है।
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इस प्रतिवेदित भूमि में से कितनी भूमि को धारा 4 में अधिसूचित वनखण्ड में शामिल किए जाने के कारण निजी भूमि होने, गैर संरक्षित वन भूमि होने, अहस्तानान्तरित भूमि होने के बाद भी संरक्षित वन दर्ज एवं प्रतिवेदित किया जा रहा है।
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इस प्रतिवेदित भूमि में से कितनी भूमि को भारतीय वन अधिनियम 1927 संशोधन 1965 धारा 20अ के अनुसार आरक्षित वन या संरक्षित वन किस दिनांक को आदेशित किया या अधिसूचित किया गया है।
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वन मुख्यालय के द्वारा प्रतिवेदित भूमियों में से कितनी भूमि वर्किंग प्लान में दर्ज है, इन वर्किंग प्लान में दर्ज कितनी-कितनी किस-किस श्रेणी की भूमियों पर वास्तविक रूप से वन विभाग काबिज है कितनी भूमि किन कारणों से वन विभाग के कब्जे में नहीं है।
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वन मुख्यालय द्वारा प्रतिवेदित संरक्षित वन भूमि में से एवं आरक्षित वन भूमि में से कितनी-कितनी भूमि वन विभाग ने गैर वानिकी कार्यों के लिए 1980 तक आवंटित की, अन्तरित की गई, कब्जा सौंपा गया लेकिन उसकी कोई प्रविष्टी वर्किंग प्लान, एरिया रजिस्टर, वनकक्ष इतिहास एवं वनकक्ष मानचित्र में दर्ज ही नहीं की है।
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वन मुख्यालय द्वारा प्रतिवेदित कितनी आरक्षित वन भूमि एवं कितनी संरक्षित वन भूमि राजपत्र में भा.व.अ.1927 की धारा 27 एवं धारा 34अ के अनुसार 1980 के पहले और 1980 के बाद डीनोटीफाईड की गई और उसकी प्रविष्टी वन विभाग वर्किंग प्लान, एरिया रजिस्टर, वनकक्ष इतिहास एवं वनकक्ष मानचित्र में दर्ज करना ही भूल गया।
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वन मुख्यालय द्वारा प्रतिवेदित वन भूमि, नियंत्रित वन भूमि को लेकर उपरोक्त किसी भी विषय पर वनमंडल, वनवृत, वर्किंग प्लान वनवृत प्रमाणित जानकारी दस्तावेजों के साथ उपलब्ध करवाने में हर स्तर पर हर तरह से असफल रहा है।