क्या कानाकाकड रावत परिवार के लिये भाग्यशाली है दीपक चौहान ?

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आकाश उपाध्याय@जोबट

राजनीति में कुछ ऐसे संयोग, समीकरण या इत्तेफाक जो कई बार चर्चा का विषय बन जाता है तो कई बार किसी राजनेता की सफलता या असफलता को उसके भाग्य से जोडा जाता है । देश प्रदेश में कुछ राजनीतिक जोड़ियां चर्चा का विषय भी रही है, जैसी अटल-आडवाणी, मोदी-शाह, लालू-नितीश की तो अखिलेश-मायावती । कुछ इस ही प्रकार जोबट विधानसभा में कानाकाकड के रावत परिवार व दीपक चौहान की भी दिखाई देती है जिनके राजनीति सफर में कई संयोग या इत्तेफाक देखने को मिले है । वैसे रावत परिवार व चौहान परिवार में पारिवारिक संबंध भी है क्योकि दीपक चौहान एक तरह से रावत परिवार के जमाई भी लगते है । दीपक चौहान तत्कालीन समय(2004-05) में एक शिक्षक होने के साथ रावत परिवार के मुख्य सलाहाकारो में से एक थे । पारिवारिक संबधों के चलते अप्रत्यक्ष रूप से रावत परिवार के राजनीतिक कार्यो व रणनीति तैयार करते थे
जानकारी अनुसार रावत परिवार से नजदीकियां व संबध के चलते 2004 में नगर परिषद का टिकट दीपक चौहान ने लडने की इच्छा जाहिर की तो करीबी होने के चलते रावत परिवार से उन्हे आश्वासन भी मिली का आपका टिकीट हो जायेगा लेकिन आखरी समय उनको टिकीट न मिलते हुए कांग्रेस ने डॉ0 फिलोमन को टिकीट दे दिया । बताया जाता है कि उस समय दीपक चौहान रावत परिवार से काफी खफा रहे लेकिन राह नजर नही आने के चलते वो रावत परिवार के साथ जुडे रहे व काम करते रहे । यहीं से कानाकाकड रावत परिवार व दीपक चौहान के संयोग के समीकरण बनने की शुरूआत हुई ।
2008 विधानसभा चुनाव में सुलोचना रावत के लिये पुरजोर रणनीति के साथ दीपक चौहान ने काम किया और एक बार फिर सुलोचना रावत विधायक बनने में कामयाब रही । 2009 में नगर परिषद अध्यक्ष पद आरक्षण मामले के फैसले के चलते चुनाव 2012 में हुआ । सुलोचना रावत के कांग्रेस से विधायक रहते दीपक चौहान ने एक बार फिर नगर परिषद अध्यक्ष पद के लिये टिकीट मांगा इस बार भी उन्हे आश्वासन मिली की हो जायेगा लेकिन अंतिम समय उन्हे एहसास हो गया की टिकिट नही मिलने वाला है तो वो माधोसिंह डावर के माध्यम से भाजपा से टिकिट ले आये । यहीं से दीपक चौहान बतौर राजनिती रावत परिवार से अलग हो गये व भाजपा से टिकट लेकर नगर परिषद अध्यक्ष पद पर काबिज हुए । यहां अब संयोग का खेल देखिए महज एक साल बाद 2013 विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस से रावत परिवार के विशाल रावत चुनाव लडे और यह पहला मौका था जब रावत परिवार के साथ प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से दीपक चौहान नही थे। दीपक चौहान के भाजपा में जाने से रावत परिवार ने उनके बगैर चुनाव लडा और विशाल रावत की हार हुई । 2017 नगर परिषद चुनाव में फिर एक बार भाजपा से दीपक चौहान को सफलता मिली और उनकी पत्नी नगर परिषद अध्यक्ष बन गई । अब तक दीपक चौहान पुरी तरह भाजपाई होकर माधौसिंह डावर के बेहद करीबी हो गये थे तो बताया जाता है अब तक रावत परिवार व दीपक चौहान में पारिवारिक दूरियां भी काफी बढ चुकी थी । 2018 के विधानसभा चुनाव तक आलम यह था की रावत परिवार को इस बार कांग्रेस से टिकट ही नही मिली तो विशाल रावत निर्दलीय चुनाव लडे और हार गये ।
कहते है कभी कभी भाग्य भी खुद चलकर हमारे पास आ जाता है ऐसा ही कुछ हुआ 2021 विधानसभा उपचुनाव में । यहा सुलोचना रावत व विशाल रावत कांग्रेस छोड भाजपा में आये व भाजपा से टिकट ले लिया । मजबुरी में ही सही दीपक चौहान जो की उक्त 2021 उपचुनाव में मुख्य दावेदारो में से भी एक थे फिर राजनीतिक व पारिवारिक तौर पर रावत परिवार के साथ खडे नजर आये । संयोग देखिए दीपक चौहान के रावत परिवार के साथ होने से एक बार फिर रावत परिवार को जीत मिली और सुलोचना रावत विधायक बनी । नगर परिषद चुनाव 2022 दीपक चौहान की पत्नी चुनाव हार गई तथा नगर परिषय अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर एक बार फिर रावत परिवार में व दीपक चौहान के संबंधो में खटास पडी, नाराज दीपक चौहान ने भाजपा जिला उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा तक दे दिया व घर बैठ गये । जब 2023 का विधानसभा चुनाव आया तो फिर एक बार दीपक चौहान रावत परिवार से दुर भाजपा के बागी उम्मीदवार माधौसिंह डावर के साथ खडे हो गये । फिर संयोग देखिए दीपक चौहान की गैर मौजूदगीद में रावत परिवार को एक बार फिर हार का सामना करना पडा यहा विशाल रावत बडे अंतर से हार गये ।
अब इस पूरे विश्लेषण में रावत परिवार व दीपक चौहान के बीच भाग्य, संयोग या इत्तेफाक कहे लेकिन इसकी जनचर्चाएं होती रही है । हमारा उद्देश्य किसी को भाग्यशाली या अभाग्यशाली बताना नही है। उक्त समाचार केवल जनचर्चाओं पर बनाया गया है ।

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