90 दिन के अंदर आरोप पत्र जारी नही किया तो बहाल करना होगा कर्मचारी को

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झाबुआ / अलीराजपुर लाइव डेस्क Exclusive रिपोर्ट

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देश के सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को उसके खिलाफ आरोप पत्र के अभाव में 90 दिन से अधिक निलंबित नहीं रखा जा सकता क्योंकि ऐसे व्यक्ति को समाज के आक्षेपों और विभाग के उपहास ( तिरस्कार) का सामना करना पडता है।

न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन और न्यायमूर्ति सी नागप्पन की खंडपीठ ने लंबे समय तक सरकारी कर्मचारी को निलंबित रखने की प्रवृत्ति की आलोचना की और कहा कि निलंबन, विशेष रूप से आरोपों के निर्धारण की अवधि में, अस्थाई होता है और इसकी अवधि भी कम होनी चाहिए। न्यायाधीशों ने कहा कि यदि यह अनिश्चितकाल के लिये हो या फिर इसका नवीनीकरण ठोस वजह पर आधारित नहीं हो तो यह दंडात्मक स्वरूप ले लेता है।

न्यायालय ने कहा, ऐसी स्थिति में हम निर्देश देते हैं कि यदि तीन महीने के अंदर आरोपी अधिकारी या कर्मचारी को आरोप पत्र नहीं दिया जाता है तो निलंबन अवधि तीन महीने से अधिक नहीं होना चाहिए और यदि आरोप पत्र दिया जाता है तो निलंबन की अवधि बढ़ाने के लिये विस्तृत आदेश दिया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने रक्षा विभाग के संपदा अधिकारी अजय कुमार चौधरी की अपील पर यह फैसला दिया। चौधरी को कश्मीर में करीब चार एकड़ भूमि के इस्तेमाल के लिये गलत अनापत्ति प्रमाण पत्र देने के आरोप में 2011 में निलंबित किया गया था। न्यायालय ने कहा कि इस फैसले के आधार पर यह अधिकारी अपने निलंबन को चुनौती दे सकता है।

न्यायालय ने कहा कि जहां तक इस मामले के तथ्यों का सवाल है तो अपीलकर्ता को आरोप पत्र दिया जा चुका है और इसलिए यह निर्देश हो सकता है बहुत अधिक प्रासंगिक नहीं हो। लेकिन यदि अपीलकर्ता को अपने सतत निलंबन को कानून के तहत किसी तरीके से चुनौती देने की सलाह मिलती है तो प्रतिवादी की यह कार्रवाई न्यायिक समीक्षा के दायरे में होगी।

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