प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई जनता कर्फ्यू की अपील पर खवासा पूर्णतः बन्द रहा, अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों को बंद रखते हुए लोग घरों में दुबके रहे

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अर्पित चोपड़ा@खवासा

स्थानीय व्यापारी संघ द्वारा लिए गए निर्णयानुसार मेडिकल को छोड़ सारी दुकाने बन्द रही। भीड़भाड़ वाले मोहल्लों में भी सन्नाटा पसरा रहा। बस-जीप एवं सवारी वाहनों के नहीं चलने के कारण बाहर से आ रहे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। राजस्थान से मजदूरी कर लौट रहे ग्रामीणों ने बताया कि वे राजस्थान के कोटा से आ रहे है। आवागमन के साधन नहीं मिलने से बामनिया से पैदल चलकर जाना पड़ रहा है। कुछ मजदूर तो 15 से 20 किमी का सफर तय कर बामनिया से खवासा होते हुए मध्यप्रदेश-राजस्थान की सीमा से सटे अपने गांवों में पहुंचे। व्यापारी संघ द्वारा सर्वसम्मति से लिए गए पूर्णतः बंद के निर्णय के बावजूद ग्राहकों को सामान दे रहे कुछ व्यापारी ने संघ सदस्यों के विरोध के बाद व्यापार बन्द किया। व्यापारी संघ के अध्यक्ष संजय भटेवरा ने बताया कि कुछ दुकानदार संघ में सर्वसम्मति से लिए निर्णय के विपरीत समान बेच रहे थे। सदस्यों के साथ पहुंचकर उनकी दुकानें बंद करवाई गई। क्योंकि एक भी संक्रमित व्यक्ति पूरे गांव के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।

बजाए ताली, थाली और ढोल

अपील अनुसार लोग दिनभर घर में रहने के बाद 5 बजे बाहर निकले और ताली, ढोल, थाली, पूजा की घंटी आदि बजाकर अपनी जान जोखिम में डाल कोरोना को भगाने के कार्य लगे स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस, सेना, सफाईकर्मी, अधिकारी-कर्मचारी के प्रति कृतज्ञता जाहिर की। पूरे कस्बे के लोगों ने मोदी की अपील का समर्थन कर इसमें सहभागिता की। खवासा के राजवाड़ा चौक पर इस आवाज से राष्ट्रीय पक्षी मोर का झुंड बैठा रहा और विश्मित होकर ताली और थाली बजाने वाले को देखता रहा।

पहले भी हो चुका यह प्रयोग

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत चोपड़ा ने बताया कि सितंबर 1993 में खवासा क्षेत्र के तलवाड़ा में आए टिड्डी दल को भगाने और उसे फसलों पर ना बैठने देने के लिए यह प्रयोग किया जा चुका है। इसमें संयुक्त कलेक्टर स्तर के उच्चाधिकारी, प्रशासनिक अमले और नागरिकों ने तालिया और थालियां बजाकर उस टिड्डी दल को भगाया था। आज पुनः इस प्रयोग से 26 साल पुराने उस घटनाक्रम की याद ताजा हो गई।

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