तरूण सागरजी संस्कृति की गोद में समां गए, प्रकृति जब रोती है तो संस्कृति का रोना भी निश्चित, विरले संत का का जाना दु:खद

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रितेश गुप्ता, थांदला

भारतीय ससकृति संतो को जन्म देती है संत कडवे नही होते उनके प्रवचन कडवे होते है। जिनके माध्यम से समाज मे व्यापत बुराईयो को दूर करने का प्रयास करते है जन्म के साथ मृत्यु निश्चित है एक सांसारिक व्यक्ति की मृत्यु होने पर पूरा समाज व्याकुल हो उठता है। तरूण सागरजी संस्कृति की गोद मे समाहीत हो गये है।प्रकृति जब रोती है तो संस्कृति का रोना भी निश्चित है ऐेसे विरले संत का जाना हम सबके लिए दुखद है उन्होने संघ की शाखा मे गणवेश व बेल्ट बदलने की बात कही थी जिसे संघ प्रमुख ने माना अंहिसा का यह पुजारी सदा के लिए सो गया हो किन्तु उनके विचारो से समाज हमेशा जागता रहेगा। उक्त उदबोधन त्यागी भवन मे आयोजित क्रांतिकारी राष्ट्रसंत 108 मुनि तरूणसागर के संथारापूर्वक देवलोकगमन पर सम्पन्न विनयाजली सभा मे विभिन्न समाज के वक्ताओ ने कही । आयोजित सभा को विधायक कलसिंह भाबर,नगर परिषद अध्यक्ष बंटी डामोर,  वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र कांकरीया, बाबूलाल भीमावत, दिगम्बर समाज के अध्यक्ष अभयकुमार मेहता, श्रीसंघ के अध्यक्ष जितेन्द्र घोडावत इंका नेता नगीन शाहजी आरआरएस के सुनिल पणदा भाजपा के रूस्तमसिंह चरपोटा, संजय भाबर,  टिना गांधी, हरीश मेहता, कांतिलाल मेहता, महर्षि दयानंदन आश्रम के विश्वास सोनी, मूर्ति पूजक संघ की ओर से वैभव छिपानी, महावीर मेहता, शशिकांत पंचोली, प्रदीप गादिया, हितेश शाहजी, कपडा व्यापारी संघ के नितिन नागर, पार्षद समर्थ उपाध्याय, शरद मेहता ने भी विनयाजंलि सभा को संबोधित किया। सभा का संचालन राजेश वैद्य ने किया मंगला चरण रक्षता मेहता ने दिया। स्तुतिवंदना किरण पावेचा व इंदु कुवाड ने प्रस्तुत की। इस अवसर पर कृष्णकात सोनी, नंदन जैन, राजेश पंचोली, श्रेणिक गादिया, शशीकांत बोबडा, बाबूलाल मीडा, महेश व्होरा, अनुप मीडा, चंद्रशेखर मेहता, अनिल भंसाली, पारस छाजेड, उषा मेहता सहीत बडी संख्या मे समाजजन उपस्थित थे।

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