महाश्रमणजी का दीक्षादिवस युवादिवस के रूप में मनाया

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झकनावदा से जितेंद्र राठौड़ की रिपोर्ट

तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्य महाश्रमणजी का 45वा दीक्षादिवस युवादिवस के रूप मनाया गया। अखिल भारतीय तेरापन्थ युवक परिषद के तत्वाधान में भारत भर की परिषदों द्वारा यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्रातः प्रभात फेरी निकाली गई फिर तेरापंथ भवन में धर्मसभा में नवरत्न सागरजी के अनुयायी सन्त मुनिश्री आदर्शरत्नजी, अक्षतरत्नजी, विशुद्धरत्नजी, अर्हमरत्नजी, ओर समकितरत्नजी का सानिध्य प्राप्त हुआ। आचार्यश्री महाश्रमणजी का जीवन परिचय देते हुए मुकेश कोठारी ने बताया आपका जन्म13 मई 1962 को सरदारशहर राजस्थान के साधारण परिवार झूमर मलजी के घर हुआ था। आचार्य श्री तुलसी की आज्ञा से मुनिश्री सुमेरमलजी ने 5 मई 1974 वैशाख सुदी चौदस को दीक्षा प्रदान की। आचार्य महाप्रज्ञजी के देवलोक गमन के बाद 23 मई 2010 को सरदारशहर में चतुर्विध धर्मसंघ ने आपको ग्यारहवे अधिशास्ता के रूप में आपका पदाभिषेक समारोह आयोजित किया। बाल गायक संयम व्होरा ओर सुमधुर प्रदीप व्होरा ने सुमधुर गीतिका द्वारा अपनी भावाव्यक्ति प्रस्तुत की। मुनिश्री आदर्शरत्नजी ने अपने उद्बोधन में फ़रमाया की महाश्रमणजी ने हमारी तरह ही जन्म लिया पर उन्होंने अपने जीवन मे कुछ करने का लक्ष्य बनाया। उन्होंने खुद को तपाया खपाया ओर इस योग्य बनाया की आज सब उनको पूज रहे है। इंसान जन्म लेकर जीवन यात्रा करता है और म्रत्यु को प्राप्त कर लेता है इसमे कोई बड़ी बात नही है। महत्वपूर्ण यह है कि इंसान जीवन कैसा जिया किस तरह जिया। उन्होंने आज के अवसर पर सबको 1 वर्ष के लिए 1 त्याग का संकल्प करवाते हुए कहा यही आपकी ओर से दीक्षादिवस पर अपने गुरु को तोहफा है। उन्होंने जैन समाज को संगठित रहने का आह्वान करते हुए कहा अपनी2 मान्यताओं से धार्मिक क्रियाये करे पर समाज को संगठित रखे। कार्यक्रम में ज्ञानशाला के बच्चे कन्याए,महिलाओ ओर पुरषो ने अपनी उपस्थिति देकर अपनी भावांजलि अर्पित की। मंगलपाठ पश्चात कार्यकम का समापन किया गया।

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