शेरअली मस्तान साहब के उर्स में कव्वालों ने सुबह तक पेश किए कलाम

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पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
कर तुमना करोगो करम तो कौन करेगा..झोली तो मेरी तेरे सिवा कौन भरेगा…कृपा किजो दर्शन दिजो..सोये भाग जगईयो…मोला अली के सदके में कभी मेरे घर भी अईयो करो.. आपका मेला जब-जब आया सबने आस लगाई…सब लाये फूलो की चादर..टूटा दिल मै लाई करो बस…कृपा करो मोरो ख्वाजा महाराजा…..उत्तरप्रदेश के संबल मुरादाबाद के सरफराज चिश्ती ने जब ये शेर पढ़ा तो आयोजन स्थल तालियों से गूंज उठा। जी हां, खुशनुमे सुहाने मौसम केसाथ, इत्र की खुशबू की महकके बीच सूर और ताल की से संगत मिलाती कव्वाल पार्टी, सूफी संतो और हर कलाम पर कव्वाल पर नोटो की बारिश करते बाहर से आए ख्वाजा केदीवानो और नबी से मोहब्बत करने वाले। यह नजारा था हजरत दातार शेर अली मस्त मस्तान ओढ़ी वाले दादा रेहमतुल्लाह अलैह दादाजी के15वें सालाना उर्स मुबारक का। शुक्रवार रात सरकार के दरबार में महफिल ए सिमां अपने शबाब पर रही। पहले राजस्थान के कपासन से आए इत्मियाज साबरी एण्ड कव्वाल पार्टी ने मंच संभाला। उन्होनें ने हम्द की पेशकश के साथ महफिल ए समां का आगाज किया। इसके बाद उप्र के संबल मुरादाबाद से आए सरफराज चिश्ती साहब ने मंच संभालकर अपने कलाम पेश किए। उन्होनें ऐसा माहौल खड़ा कर दिया कि हर आशिकाना रसूल झूम उठा। उन्होनें नबी के नाम कलाम सुनाते हुए कहा- फक्रहै कि हम हिंदुस्तानी है। तो पांडाल तालियों से गूंज उठा।कव्वाल पार्टी एककेबाद एककलाम पेश करते चले गए और दाद देने वालों ने भी जमकर नजराना लुटाया। उन्होनें तिरंगे की शान में कलाम पेश कर श्रोताओं में देशभक्ति का संचार किया। इसके बाद प्यारे नबी की शान में नात ए रसूल और फिर फेमस कव्वाली कृपा करो मोरे ख्वाजा महाराजा पेश की। 5 घंटे से अधिक समय तक उन्होंने मंच संभाला। रात करीबन 3 बजे के बाद गजलो का दौर शुरू हुआ, जिसमें सरफराज चिश्ती ने प्रेम मोहब्बत से भरपूर गजल उजाड़ दे मेरे दिल की दुनिया सुकूं को मेरे तबाह कर दे, तू नही है मगर तेरी याद तो है, तू मेरे साथ है मैं अकेला नहीं, लोग तन्हा समझते है समझा करे.. अब किसी हाल में भी मैं तन्हा नहीं आदि पेश कर श्रोताओं का मनोरंजन किया। कार्यक्रम का सफल संचालन झाबुआ के शहरकाजी रियाज भाई ने किया। उर्स में प्रदेशभर के श्रद्धालु कव्वाली की महफिल सुनने केलिए यहां पहुंचे थे। उर्स कमेटी ने सभी का तहेदिल से आभार माना है।
सूफी संतो ने बढ़ाई महफील की रौनक:
महफिल ए सिमां में मालवा ए हिंद प्रसिद्ध सूफी संत लाल बादशाह, महामंडलेश्वर अखंडगिरी महाराज, अजीम बुजुर्ग हस्ती जहूर बाबा, रतलाम गुलाबशाह वली रेअ दादाजी से कलीम बाबा चिश्ती, याया खान साहब (इंदौर), अर्चना दीदी (वारिसे पाक, इंदौर), अशोक बाबा (महू), आजिम भाई (मदरसा बोर्ड कमेटी इंदौर), जहिर खान (बंदीछोड़ दातार, उज्जैन), हाजी फारूख बाबा मलंग (सोनकच्छ), छोटू महाराज (इंदौर), फरजाना बाजी (बियाबानी दातार, धरमपुरी), हजरत सयद अशफाक बाबा (भाभरा) हजरत अनिस बाबा (कुशलगढ़) हजरत सलीम बाबा (झाबुआ) करीम बाबा (कोटड़ी) मौजूद थे। कव्वाली सुनने आए श्रद्धालुओं के उपर गुलाब के फूलों की बारिश भी की गई।
ये अतिथि रहे मौजूद-
महफील ए कव्वाली में नपं अध्यक्ष मनोहरलाल भटेवरा, डॉ. विक्रांत भूरिया, युवक कांग्रेस झाबुआ एसडीओपी आरआर अवासिया, टीआई लोकेंद्रसिंह ठाकुर, अशोक चोहान, अभिभाषक सक्सेना, निसार भाई (बाग) समीर भाई (धरमपुरी) तय्यब भाई(धरमपुरी), मोनू भाई (धरमपुरी), गोलू भाई (रतलाम), मूसा भाई (रतलाम), आवेश भाई (रतलाम), हुकड़ी दादा (रतलाम), फरदीन खान (कालीदेवी), अमीर जवान लाला, कादर भाई जनता सब्जी मंडी आदि विशेष रूप से मौजूद रहे।
सरफराज चिश्ती कव्वाल, वतन के नाम पर पेश किया कलाम-
दिल में अपने जो है अरमान भी दे सकते है, सिर्फ अरमान नही शान भी दे सकते है। मुल्क से अपने हमे इतनी मोहब्बत है, हम तिरंगे के लिए जान भी दे सकते है। नबी की शान में कलाम पेश किया- पड़ी गरीबी है मजबूर हो गए है हम, तुम्हारे दर से बहुत दूर हो गए है हम,जो हुक्म हो तो मदीने में घुमने आए, हसीने रोजे की जाली को चुमने आए। अगर हूजूर के रोजे की दीद हो जाए, कसम खुदा की गरीबों की ईद हो जाए।
हजरत अली शैरे खुदा की शान में पेश की नातेपाक:
या अली तेरे सीवा हाजत रवा कोई नही, लाखो रूखदत है मगर शेरे खुदा कोई नहीं, मैं तो नाम जपूं अली-अली का.. मैं तो नाम जपूं अली-अली का आका हुसैन की शान में पेश की नातेपाक, हक पर लूटा दिया है भरा घर हुसैन ने, वादा वफा किया यूं पयंबर हुसैन ने। अल्लाह रे नानाजान की उम्मत के वास्ते.., तीरो के बीच दे दिया असगर हुसैन ने। ख्वाजा के नाम पर पेश किया कलाम- न हम तकदीर लाए है, न हम तकबीर लाए है, गले में ताक है और पांव में जंजीर लाए है बदलवाने को ये फूटी हुई तकदीर लाए है, हम अपने दिल में अपने पीर की तस्वीर लाए है..
कृपा महाराजा मोईद्दीन करो..कृपा महाराजा मोईद्दीन…
महफिले रंग के साथ हुआ समापन, कव्वालो ने पेश किए शानदार कलाम
हजरत शेर अली मस्त मस्तान ओढ़ी वाले दातार (रेअ) के सालाना उर्स का समापन शनिवार को महफिल ए रंग के साथ हो गया। आस्ताने ओलिया केबाहर स्थित महफिल खाने में कुल की महफिल हुई। सुबह महफिल खानें में 9.30 बजे रंग की महफील शुरू हुई, जिसमें राजस्थान के कपासन से आए इम्तियाज साबरी ने एक के बाद करकर कलाम पढ़े। कार्यक्रम में जब कव्वाली गाई जा रही थी तो उनके एक-एक कलाम पर नजराना देने के लिए लोग जा रहे थे। उन्होने करार आ गया, इक निगाहें करम आपकी हो गई, मेरे जीवन में कैसा निखार आ गया…कलाम पर उपस्थित लोगों की आंखो से पानी बह निकला। दोपहर 1 बजे हजरत अमीर खुसरो द्वारा लिखित आज रंग है री मां रंग है…से कुल की महफिल का समापन हुआ। उर्स के दौरान आज रंग है री सखी ओढ़ी वाले बाबा के घर आज रंग है, आओ चिश्ती संग खेले होली दातार के संग की जैसे ही कव्वाल ने पेश की तो पूरा शामियाना इत्र व गुलाब जल की खुश्बू से महक उठा। आस्ताने में कुल की रस्म हुई जिसमें फातेहा पढ़ी जाकर मुल्क में अमन चैन ओर खुशहाली की दुआ की गई।
पूरी महफील सजी केसरिया साफे से:
रंग की इस महफिल में कर किसी के सीर पर केसरिया साफे भी नजर आए रहे थे। इसी रंगारंग महफिल में इम्तियाज साबरी ने अपनी कव्वाली पेश की। जिसे समाजजनो ने खूब सराहा। अंत में मेला बिछड़ों ही जाए, दातार तोरा मेला बिछड़ो ही जाए पढक़र रंग की महफिल का समापन हुआ।
विशाल शाकाहारी भंडारे का किया गया आयोजन:
उर्स कमेटी के कार्यकर्ताओ ने बताया उर्स कमेटी की ओर से लगर ए आम (विशाल शाकाहारी भंडारे) का आयोजन किया गया। लंगर में श्रद्धालुओं ने बढ़-चढक़र हिस्सा लिया। उर्स कमेटी ने प्रशासन से लेकर हर किसी को इस धार्मिक आयोजन को सफल बनाने के लिए आभार माना है।

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