“शिव का प्रत्यक्ष विराजमान स्वरूप: ज्योतिर्लिंग”

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डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

जिस आदि, अनंत, अविनाशी की चारों युग और कालचक्र स्वयं आराधना करते है, उस भक्तवत्सल महायोगी, जो संसार के कण-कण में व्याप्त है ने वसुंधरा पर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए स्वयं को ज्योतिर्लिंग स्वरूप में विराजमान किया है। वह शिव शंकर अनंत काल से ज्योतिर्लिंग रूप में मृत्युलोक में निवास करते है और अनंतकाल तक इसी प्रकार इसी ज्योतिस्वरूप में भक्तों का कल्याण करते रहेंगे। शिव साक्षात आनंद का स्वरूप है। यह ज्योतिर्लिंग ही शिव के परम धाम है। शिव का ज्योतिस्वरूप ही हमारी आस्था का परम मोक्ष धाम है। ज्योतिर्लिंग शिव का वह प्रकाशस्वरूप है जहाँ पर शिव की भक्ति का सूर्य सदैव देदीप्यमान रहता है। महादेव तो भोले भण्डारी आशुतोष है। सम्पूर्ण सृष्टि ही विश्वनाथ शिव के अधीन है। पल में प्रलयंकर का रूप धारण करने वाले शिव रुद्र रूप में सृष्टि में ताण्डव मचा सकते है और वहीं भक्तवत्सल भक्तों के कल्याण के लिए सहर्ष ही विष का प्याला स्वीकार करते है और देवो के देव महादेव की संज्ञा पाते है। वहीं शिव भक्तों के उद्धार के लिए स्वयं को ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रत्यक्ष निवास करते है एवं अपने भक्तों को मुक्ति प्रदान कर उन्हें शिवलोक में समाहित करते है। आइये द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से कुछ ज्योतिर्लिंगों के बारे में जानते है।

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्‌। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं ममलेश्वरम्‌ ॥1॥

परल्यां वैजनाथं च डाकियन्यां भीमशंकरम्‌। सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥2॥

वारणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे। हिमालये तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥3॥

एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरेण विनश्यति ॥4॥

सोमनाथ:- गुजरात में स्थित यह ज्योतिर्लिंग भोलेनाथ के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रथम स्थान पर आता है। दक्ष प्रजापति ने चन्द्रमा को श्राप दिया था जिसके फलस्वरूप धीरे-धीरे चन्द्रमा का प्रकाश क्षीण होने लगा था। यह सभी देवताओं के लिए भी चिंता का विषय था। इसी श्राप से मुक्ति के लिए चन्द्रदेव ने शम्भूनाथ की आराधना की थी और फलस्वरूप स्वयं भोलेनाथ यहाँ पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजित हुए और चन्द्रदेव को श्राप से मुक्त किया। चन्द्र देव का एक नाम सोम भी है एवं उनके आराध्य भोलेनाथ है इसलिए उनके द्वारा स्थापित इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ ज्योतिर्लिंग रखा गया। शिव के आशीर्वाद से चन्द्रमा को पुनः अपना क्षीण होता प्रकाश प्राप्त हुआ था। चन्द्रमा ने यहाँ शिव की कई महीनों तक महामृत्युंजय मंत्र से आराधना की थी। शिव का यह परम धाम मुक्ति और सन्मार्ग प्रदान करने वाला एवं शिव की असीम कृपा दिलाने वाला शिव का प्रत्यक्ष निवास है।

रामेश्वरम:- रामेश्वरम हिंदुओं के चार धामों में से एक है इसके साथ ही द्वादश ज्योतिर्लिंगों में भी इसकी गणना की जाती है। रामेश्वरम को दक्षिण भारत का काशी भी माना जाता है। शास्त्रों में उल्लेखानुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व शिवलिंग की स्थापना की एवं आशुतोष से विजयी होने का वरदान माँगा। शिव ने श्री राम को आशीर्वाद दिया एवं उनके आग्रह पर वहाँ ज्योतिर्लिंग रूप में विराजमान होना सहर्ष स्वीकार किया। भगवान श्री राम द्वारा स्थापित इस ज्योतिर्लिंग का महात्म्य अद्भुत है। यह ज्योतिर्लिंग भगवान राम और शिव दोनों की ही कृपा से मोक्ष देने वाला माना गया है। यहाँ पर त्रिपुरारी की पूर्ण विधिवत पूजा करने से ब्रह्महत्या जैसे पाप से भी मुक्त हो सकते है। यहाँ पर गंगोत्री से लाए गए गंगाजल से शिव का अभिषेक कर शिव के परम धाम को प्राप्त किया जा सकता है।

महाँकालेश्वर:- मध्य प्रदेश में स्थित यह ज्योतिर्लिंग शिव का पवित्र धाम है। शिवशंभू जगतगुरु संहार के देवता एवं परम कल्याणकारी है। इस ज्योतिर्लिंग की विशेषता यह है कि यहाँ महाँकाल का मुख दक्षिण दिशा में है। यह ज्योतिर्लिंग स्वयंभू है। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार भस्म ही जीवन का सत्य है एवं सृष्टि का सार है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जहाँ शिव की उपासना भस्मारती से प्रारम्भ होती है। महाँकाल अर्थात जिसे काल पर भी विजय प्राप्त है। मृत्युलोक में महाँकाल को जन्मों-जन्मों के पाप से मुक्त करने वाला और सुख-समृद्धि देने वाला कहा गया है। मान्यता है कि महाँकाल की शरण में जाने के बाद भक्त को कभी भी अकालमृत्यु नहीं आ सकती।

आकाशे तारकेलिंगम्, पाताले हाटकेश्वरम्। मृत्युलोके च महाकालम्, त्रयलिंगम् नमोस्तुते।।

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