शक्तिपीठ मां चामुंडा मालवई माताजी प्राचीन मंदिर पर होती है, नौ दिनो तक आराधना, कर्ज देने वाली माता के नाम से प्रसिद्ध

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P. S. Chandel Alirajpur
आलीराजपुर से लगभग 5 किलोमीटर दूर ग्राम मालवई में स्थित मां चामुंडा के मंदिर में नौ दिनों तक भक्ति की गंगा बहेगी। दरअसल यह मंदिर अति प्राचीन होकर महाभारत कालीन बताया जाता है, इस क्षेत्र में भीम बयड़ा नाम का ग्रामीण क्षेत्र भी है। भीम बयडा यानि वह पहाड़ी (बयडा) जहाँ पाण्डु पुत्र भीम का निवास था। ऐसी मान्यता है, कि यहां पांडव वंश भीम आए थे।
मध्य प्रदेश का गौरवशाली नगर जो वर्तमान में जिला है, अलीराजपुर विंध्य पर्वतमाला के बीच दक्षिण पश्चिम मे स्थित अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण दर्शनीय है। मालवई में पहाड़ी पर चामुंडा माताजी का मंदिर रियासत कालीन है। यह स्थान विद्याचल की निचली पहाड़ियों के सबसे रमणीय स्थलों में से एक माना जाता है। मां चामुंडा का मंदिर अब पूरे इलाके में मालवई माता के मंदिर के रूप में जाना जाता है। मां चामुंडा का यह अति प्राचीन मंदिर जो आलीराजपुर के इतिहास की धरोहर तो है, ही भक्तों की आस्था का केंद्र बिंदु भी है। सालों पुराने इस मंदिर में मां चामुंडा की प्राचीन मूर्ति है, जहां वर्षों से भक्त पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं। जैसे जैसे समय बीतता गया इस मंदिर के लिए भक्तों की आस्था भी बढ़ती चली गई अब तो पूरे साल यहां भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है।
इस मंदिर पर रोज सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं, वहीं नवरात्रि में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। मालवई माता के दरबार में वैसे तो साल भर भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है, लेकिन कहते हैं कि नवरात्रि में भक्तों को मां चामुंडा का विशेष आशीर्वाद फल मिलता है। कहा तो यह भी जाता है, कि माता के दरबार में अब तक कोई खाली हाथ नहीं लौटा है, लोगों की आस्था का केंद्र बन चुके इस मंदिर में लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर से आते हैं।
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आलीराजपुर और आसपास के इलाकों में मालवई माता जी कर्ज देने वाली माता के नाम से भी प्रसिद्ध है
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लोगों की मानें तो मुसीबत में लोग मां से कर्ज के रूप में आर्थिक मदद भी मांगते हैं। व्यापारी वर्ग के लिए इस स्थान का बहुत बड़ा महत्व है, और कहा जाता है, कि मालवई माताजी से कर्ज लेकर शुरू किया गया व्यापार हमेशा फलता फूलता है।
लोगों का मानना है, कि आर्थिक मुसीबतों में माता के दरबार में अगर कर्ज के लिए अर्जी लगाई जाए तो जल्दी ही पैसों की व्यवस्था हो जाती है, यानी भक्तों को किसी भी रूप में आसानी से कर्ज मिल जाता है। जिसे भी कर्ज की जरूरत पड़ती है, वह माता के मंदिर में आता है, और अर्जी लगा कर चला जाता है। प्राचीन काल से ही यहां चमत्कार है, कि जल्दी ही उसे उचित दरों पर कर्ज मिल जाता है और व्यवस्था हो जाती है। व्यापारियों में भरोसा है, कि माता का सिक्का मिल जाए तो साल भर व्यापार फलता फूलता है। इस मंदिर के गर्भगृह की दीवार पर पोस्ट ऑफिस बॉक्स जैसा चिट्ठी डालने का स्थान बना हुआ था जिसमें कोई भी भक्त अपनी मन की मुराद लिख कर डालता था, तो उसकी मन की मुराद पूरी होती थी ।
उक्त मंदिर का कुछ निर्माण सन 1755 के आसपास आली स्टेट के तत्कालीन महाराजा साहेब पहाड़ देव (राठौड़ राजवंश) के द्वारा करवाया था , तथा ठिकाना मालवई के वाघेला वंश परिवार को इस मंदिर की देखरेख व पूजा अर्चना की जवाबदारी दी गई थी। उनके पश्चात 1765 में आली के महाराजा प्रताप सिंह प्रथम के समय माताजी के मंदिर की कीर्ति दूर दूर तक फैली थी। तब से यह मंदिर अंचल के हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। बाद में धीरे धीरे कई वर्षों से चैत्र नवरात्रि मैं भक्तो का सैलाब उमड़ता रहा है, और अष्टमी और नवमी में हवन यज्ञ आदि के द्वारा सर्वत्र जन कल्याण हेतु माता जी की आराधना ईष्ट देवी के रूप में की जाती है। मान्यता है, कि दर्शन मात्र से ही माताजी भक्तो की सारी मनोकामनाए पूर्ण कर देती है। मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त गण माता की मान भी उतारने आते है। मंदिर में सुबह शाम दोनों समय महाआरती का आयोजन होता है।
वरिष्ठ जन बताते है, की माता जी के दर्शन दिन में 3 समय विभिन्न रूप में होते है। प्रातः काल में बाल्यकाल, दोपहर में युवा व् संध्या काल में वडील दिखाई देते है। प्रत्येक पूनम एवं रविवार सुबह माताजी का चोला चढ़ाने अथार्त् पोशाक चढ़ा कर आकर्षक श्रंगार व चुनरी पोशाक धारण करवाई जाती है। उस हेतु अग्रिम बुकिंग करनी होती है, और लगभग 3 साल तक इंतजार करना होता है। तब नम्बर लगता है। नवरात्रि में मंदिर में आकर्षक विद्युत सज्जा भी की जाती है, और अखंड ज्योति प्रज्जवलित होती है। साथ ही कन्या भोज एवं भंडारा भी होता है।
कई वर्षों से मंदिर पुजारी श्रवण गिरि गोस्वामी के परिवार के द्वारा मंदिर का पूरा रखरखाव, देखरेख व पूजा अर्चना भी की जा रही हैं। साथ ही मंदिर समिति में असाडा समाज के धर्मेंद्र सिंह जी राठौड़, गिरीश सज्जन सिंह जी परिहार, एवं नगर के दीपक दीक्षित, रीतु डावर, मुन्ना गुप्ता आदि गण मान्य लोग भी तन मन व् धन से महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सेवा व्यवस्था सहयोग करते हैं। मन्दिर में अष्टमी, नवमी में यज्ञ हवन कई वर्षो से स्व. पण्डित रूपलाल शर्मा कराते आये है, एवं वर्तमान में उनके सुपुत्र  बालकृष्ण शर्मा  बहारपूरा करते है।

मालवाई के पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार
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क्षेत्र के श्रद्धालुओं द्वारा समय समय पर मंदिर जीर्णोद्धार किया जाता रहा है। मुकुंद चंद जी सोनी (मोची पुरा, नीम चौक) द्वारा लगभग साठ वर्ष पहले मंदिर के आगे का सभा मंडप बनवाया गया था।  दूसरी बार जनसहयोग से विनेश वाघेला (मालवई पटेल) के नेतृत्व में रिपेयरिंग कार्य किया गया था। चामुंडा माता मंदिर के समीप पास के अंबे माता जी के मंदिर में डॉक्टर मनोज सोलंकी (दाहोद) व गिरेन्द्र सिंह जी तंवर (बड़ौदा) ने सामने पत्थर व ग्रेनाइट लगवाया और यतेंद्र सिंह  भाटी द्वारा टाइल्स 20 वर्ष पूर्व लगवाई गई थी। साथ ही मंदिर का बड़ा ओटला ग्राम पंचायत मालवाई एवं अलीराजपुर के पूर्व वेटनरी डॉक्टर श्रीवास्तव के सहयोग से निर्माण किया गया । कृषि उपज मण्डी आलीराजपुर का भी मन्दिर संचालन में काफी सहयोग व् सक्रीय योगदान रहा। साथ ही मंदिर के पास की निधि, सांसद माननीय कांतिलाल भूरिया एवं तत्कालीन आलीराजपुर विधायक वेस्ता पटेल के द्वारा जन सामुदायिक भवन का निर्माण भी हुवा है। आज की स्थिति में मालवई का चामुंडा माताजी मंदिर परिसर एक दर्शनीय एवं रमणीय स्थल बन चुका है, जहाँ कई लोग पारिवारिक कार्यक्रम का आयोजन करते है।

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