मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ
मालवा निमाड़ का प्रसिद्ध गणगौर पर्व अब समापन की ओर है। आज 8 अप्रैल को राम मंदिर में बोए गए जवारो की वाडी़ को खोला गया इसके बाद महिलाओं ने वाड़ी की पूजा अर्चना की तथा दोपहर में गणगौर की पाती का विशाल जुलूस ढोल की थाप पर निकाला गया जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं तथा कन्याऐ सिर पर ईश्वर तथा रणुजा देवी की मूर्तियां को उठाकर चल रही थी।
हमारे संवाददाता को मंदिर के पुजारी श्री शंकर लाल पारीख ने बताया कि चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की ग्यारस के दिन श्री श्री राम मंदिर में जवारे बोए जाते हैं जिसे वाड़ी बोना कहा जाता है। इसी दिन से प्रति शाम फुल पाती निकाली जाती है तथा चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया(तीज ) को वाड़ी खोली जाती है उसके बाद महिलाएं वाड़ी की पूजा करती है चतुर्थी को जवारे एवं गणगोर विसर्जन किया जाता है। गणगोर पर्व मुख्यता राजस्थान के मारवाड़ीयो का पर्व माना जाता है। इसके बाद निमाड़ में लगभग सभी हिंदू समाज वाले इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं। मारवाड़ी समाज की श्रीमती रमीला अगाल (माहेश्वरी) ने हमारे प्रतिनिधि को बताया कि मारवाड़ी समाज में गणगोर का विशेष महत्व है गणगोर में दो पुतले बनाए जाते हैं जो की लकड़ी के होते हैं जिसमें एक ईश्वर (शिव) तथा दूसरा रणादेव या रणुजा देवी (पार्वती) का होता है इन्हें गणगोर के रथ भी कहा जाता है चैत्र प्रतिपदा से लेकर चतुर्थी तक यह पर्व मनाया जाता है। यदि कोई परिवार इस रथ को रोकना चाहे तो वह रोक सकता है जिसके लिए उन्हें जोड़े से पूजा करना एवं अन्य कार्यक्रम कराना पड़ते हैं।
उन्होंने आगे बताया कि यह सौभाग्य क प्रतीक का पर्व है जिसे सुहागन महिलाएं पुरुषों की लंबी उम्र की कामना तथा कुंवारी कन्याऐ अच्छे वर की कामना के साथ मनाती है । शाम को पाती निकालकर महिलाएं घर घर मंगल गीत गाती है तम्बोल का प्रसाद यानी कि प्रसाद में चना मूंगफली चिरौंजी दाने आदि मिलाकर वितरण किया जाता है महिलाएं मेहंदी तथा पान का आदान प्रदान करती है। गणगोर के रथ का भी आदान प्रदान करती है। गणगौर के रथ का भी स्थान स्थान पर पूजन किया जाता है तथा आयोजन स्थल पर रात्रि में महिलाएं इन मूर्तियों को सिर पर रखकर गणगोर नृत्य करती है तथा मंगल गीत गाती है 08-04-19 को निकाले गए इन रथों तथा जवारो का विसर्जन कल 09-04-19 चतुर्थी तिथि को रात्रि में विसर्जन किया जाएगा।