भूपेंद्र सिंह नायक@पिटोल
जिस प्रकार भौगोलिक स्थिति में देश की सीमाओं की रक्षा के लिए युद्ध लड़ा जाता है। आज उसी प्रकार हमारे देश के विभिन्न राज्यों की सीमाओं में मजदूरों को अपना और अपने परिवार का जीवन बचाने के लिए सरकारी सिस्टम से युद्ध जेसे हालातों से गुजरना पड़ रहा है। क्यों गुजरात सरकार अपने प्रवासी मजदूरों को भोजन और पानी तथा रहने की व्यवस्था से वंचित कर रही है ।क्या उत्तर प्रदेश और बिहार के मुख्यमंत्री अपने प्रदेश के नागरिकों की सुरक्षा की ओर अपने प्रदेशों में विकास की खोखली बाते करते हैं । अगर उनके प्रदेशों में वे ईन मजदूरों रोज़गार उपलब्ध कराने के लिए सक्षम होते तो ये गरीब मजदूर दूसरे प्रदेशों अपने पेट की आग बुझाने के लिए परिवार सहित दर दर की बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर नहीं होते। पिटोल बॉर्डर पर गुजरात से मध्य प्रदेश के मजदूरों के लिए तो खुशी लाता है परन्तु यू पी और बिहार के मजदूरों के लिए मायूसी होती है। क्योंकि वे सेंकड़ों किलोमिटर तक पैदल पैदल तो कोई साइकिल से या मोटरसाईकिल तो कोई आटो रिक्शा से पिटोल बॉर्डर तक तो पहुंच जाता है परंतु गुजरात उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार के तालमेल के आभाव में उन उत्तरप्रदेश और बिहार के मजदूरों को वापस गुजरात के पुलिस प्रशासन को सुपुर्द कर दिया जाता है। वे पीड़ित मजदूर लाख अपनी पीड़ा का बखान करे परंतु कानूनी प्रक्रिया के कारण कोई नहीं सुनता वे मजदूर लाचार हो कर वापस भूख और प्यास से तड़फने के लिए छोड़ दिए जाते हैं।
क्या यही है सरकारों की संवेदनाएँ की जिन मजदूरों की मेहनत और पसीना बहाने से उनके प्रदेशों की तरक्की और विकास की दिशा तय होती है उन्हीं प्रवासी मजदूरों को आज की परिस्थितियों में दर दर की ठोकरें खाने और भूखों मरने के लिए बे सहारा कर छोड़ दिया गया है। आज देश में लॉक डाउन को एक महीने से ज्यादा समय हो गया है। जब प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन लगाया तब कहा था कि जो मजदूर जंहा है । वहीं रहेगा और उनके खाने रहने की व्यवस्था वंहा कि सरकारें करेगी परंतु हुआ इसके विपरीत आप देश के किसी राज्य से पैदल
चलने वाले पद यात्री से देश के किसी भी मीडिया कर्मियों द्वारा सवाल किया जाता है कि आप क्यों अपने गृह गांव पैदल जा रहे हो तो उन पीड़ित मजदूर लोगों का एक ही जवाब होता है कि हम भूख और प्यास से मर जायेंगे । क्योंकि सरकारे जो टीवी पर कहती हैं कि वे सभी दावे खोखले साबित हो रहे हैं ।क्योंकि अगर सरकारे इनके भोजन पानी और समुचित रूप से इस करोना वैव्श्रिक महामारी बीमारी से ज्यादा तो भूख से पीड़ित हैं इसलिए सेंकड़ों किलोमिटर तक पैदल चल कर अपने गांवों की चलते हुए जा रहे हैं।