दिनेश वर्मा@ झाबुआ Live
सख्त अनुशासन के लिए जाने जाने वाली भाजपा ने इस बार अनुशासन की डोर कुछ ढीली कर दी है। नगरीय निकाय चुनाव में टिकट न मिलने के कारण कई कार्यकर्ता बागी हो गए है और वे स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रहे है। इनमें कई तो जीत के दावे भी कर रहे हैं।
भाजपा के गढ़ कहे जाने वाले पेटलावद में नगर परिषद की बात करे तो यहां सियासी संकट बढ़ता ही जा रहा है। चुनाव के कार्यक्रम की शुरुआत से ही भाजपा बागियों से जूझ रही है। टिकट वितरण के पहले दावेदारों की संख्या अनेक थी, लेकिन टिकट जब मिला तो असंतोष बढ़ गया। पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ निर्दलीय बनकर ताल ठोंक दी। भाजपा ने मान मनौव्वल की मगर बात नहीं बनी। पेटलावद में कई नाम ऐसे हैं जो निर्दलीय लड़ रहे हैं लेकिन उन पर संगठन द्वारा किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जाना कहीं न कहीं बड़े सवालों को जन्म दे रहा है।
आपको बता दे कि भाजपा ने इस बार पेटलावद में सामाजिक कार्ड खेला और हर समाज के व्यक्ति को टिकट देने के प्लान को लेकर चुनाव लडने की तैयारी की ओर यहां हुआ भी कुछ ऐसा ही। पेटलावद के 15 ही वार्डो में भाजपा ने जैन समाज से 4, सीरवी समाज से 3, ब्राह्मण समाज से 1, राठौड़ समाज से 1, कहार समाज से 1, अजा से 1 व्यक्ति को टिकट दिया। भाजपा ने अजजा से 4 को टिकट दिया, इनमें 4 ही प्रत्याशी महिलाएं है, क्योंकि इस बार नगर परिषद सीट आदिवासी महिला के लिए आरक्षित है और बीजेपी यह कतई नहीं चाहती कि अध्यक्ष कांग्रेस पार्टी का यहां बने। वहीं कांग्रेस ने 4 अजजा वार्डो से 2 पुरुष और 2 महिलाओं को टिकट दिया है, यानि उसे यह पता है अध्यक्ष में उसकी दाल गलने वाली नही है, हालांकि यह तो भविष्य के गर्त छिपा है कि इस बार अध्यक्ष किस पार्टी का बनेगा या फिर बनेगा भी के नहीं, क्योंकि इस बार जिस तरह का माहौल पेटलावद में बना है, उसने 15 साल पहले बने माहौल की याद दिला दी, जिसमें निर्दलीय परिषद बनी थी और बीजेपी को हार झेलना पड़ी थी। ऐसे ही माहौल के चलते इस बार भी निर्दलीय परिषद बनने की भी अपार संभावना नजर आने लगी है।
आखिर क्यों इन्हे पार्टी से निष्कासित नही किया जा रहा:
पेटलावद पार्षद चुनाव में भाजपा की दो तस्वीरें कुछ और ही हाल बयां कर रही हैं। एक तस्वीर भाजपा के बागियों की जो अपने आप को भाजपा समर्थित प्रत्याशी बता रहे है और दूसरी तस्वीर जिन्हें भाजपा ने अधिकृत प्रत्याशी बनाया है। भाजपा की यह दो तस्वीर खूब चर्चा में है। एक तरफ तो भाजपा बागियों पर कार्रवाई नहीं कर रही और दूसरी तरफ दूसरी तरफ भाजपा नेता ही निर्दलीयों के घर जा रहे और उनका प्रचार भी कर रहे है। इसकी पार्टी में चर्चा हो रही है।
यह बड़े नेता खड़े है पार्टी के विरोध में, मुकाबला बीजेपी vs बागी बीजेपी:
वार्ड 1 से मुकेश परमार। यह वह नेता है जो बीते 10 सालों से परिषद में आने का सपना देख रहा है, लेकिन पार्टी ने 10 साल बाद भी इस बड़े नेता को टिकट देना मुनासिब नहीं समझा और इस बार फिर ऐसा होने पर इनके सब्र का बांध फूटा और पार्टी के विरोध में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़े हो गए। वार्ड 1 में कई बड़े भाजपा के नेता इनके समर्थन में खुले मंच से मैदान में उतर गए और यही वजह है कि यहां कांटे की टक्कर का हो गया है। यानि यहां बीजेपी vs बागी बीजेपी के बीच मुकाबला बना हुआ हैं।
वार्ड 2 की बात करे तो यहां भी भाजपा समर्थित यानि हमेशा भाजपा को ही वोट देने वाले भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ चुनावी मैदान में है। यहां कांग्रेस को भले ही प्रत्याशी नहीं मिला, लेकिन कांग्रेस ने पार्टी को ही पार्टी से लड़वा दिया और बाहर से मजे ले रही है।
वार्ड 3 में भी यही कारण है, जहां बीजेपी vs बागी बीजेपी के बीच मुकाबला है।
वार्ड 6 इस बार खूब चर्चा में है। जिसमें भाजपा ने जरूर अपना प्रत्याशी घोषित किया, लेकिन बागी हुए निर्दलीय प्रत्याशी के आगे बीजेपी नतमस्तक हो गई। यही वजह रही कि नाम वापसी के दिन बागी प्रत्याशी बैठे नही और बीजेपी प्रत्याशी को मजबूरन प्रेस कान्फ्रेस करकर यह कहना पड़ा कि पार्टी पदाधिकारी उनको टिकट देने के बाद बीच नदी में अकेला छोड़कर चले गए और उस प्रत्याशी को सामाजिक मुद्दे से जूझना पड़ा। ऐसा नहीं था कि पार्टी पदाधिकारियों को यह पता नही था कि यहां किसी अन्य व्यक्ति को टिकट देने के फैसले के बाद इस तरह से ड्रामेबाजी होगी। यहां सबसे बड़ी बात यह सामने आ रही कि जो बागी मैदान में खड़े थे पार्टी पदाधिकारी उन्हें मना नहीं सके। एक तरफ संगठन सर्वोपरि का नारा देते है। वहीं दूसरी तरफ यही नेता संगठन की खिलाफत कर देते है। यानि यह हुआ कि पार्टी संगठन से नहीं चलेगी। 14 ही वार्डो बीजेपी ने अपने प्रभारियों की घोषणा की, लेकिन वार्ड 6 में पार्टी ने कोई प्रभारी नही बनाया। इससे तो यह हुआ कि जो जीता वह अपना।
वार्ड 7 में बीजेपी vs बागी बीजेपी के बीच मुकाबला है। यहां जो निर्दलीय प्रत्याशी है वह भी कट्टर बीजेपी सोच वाले हैं। अब ऐसे में यहां लड़ाई में पार्टी जीतेगी या बागी बीजेपी यह देखने वाली बात होगी।
वार्ड 8 में भी वार्ड 6 में उभरी स्थिति हैं। यहां पूर्व पार्षद रहे अनुसूचित जाति मोर्चे के जिलाध्यक्ष को फिर से टिकट नहीं मिलने से नाराज हो गए। हालांकि पार्टी द्वारा मान मनौव्वल कर इनसे फार्म खिंचवा लिया गया, लेकिन चौराहों पर चर्चा है कि अब यह बीजेपी प्रत्याशी के खिलाफ भितरघात करने में कोई कमी कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
वार्ड 9 में भाजपा के बागी भाजपा प्रत्याशी का खेल बिगाड़ने में लगे हुए हैं।
वार्ड 12 में बीजेपी के कद्दावर नेता माने जाने वाले आजाद गुगलिया ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपनी पत्नि को खड़ा किया है। यहां जो बीजेपी प्रत्याशी है उनके पति से इनका गहरा दोस्ताना भी था, लेकिन इन्होंने दोनो को दरकिनार कर दिया और बीजेपी से खिलाफत कर दी।
पार्टी के सम्मान को भूले नेता, पार्टी क्यों नहीं कर रही निष्कासित:
जिस पार्टी ने आपको वर्षो से जो सम्मान दिया आप उसी सम्मान को भूल गए और अब पार्टी के खिलाफ मैदान में उतर गए है। वहीं बड़ा सवाल यह है इतना सबकुछ होने के बाद भी आखिर क्यों पार्टी इन्हें निष्कासित नही कर रही है। इससे तो यही कहा जा सकता है कि जो जीता वह अपना। यानि पार्टी पदाधिकारियों ने अपने ही नेताओं को आपस में लड़वा दिया और मजे ले रही। अगर ऐसा नहीं है तो मतदान से पहले पार्टी को इन बागी प्रत्याशियों पर कार्यवाही करकर पेटलावद की जनता में फैले भ्रम को दूर करे, जो जनता में फैला है कि आखिर बीजेपी प्रत्याशी को वोट दे या बीजेपी के बागी प्रत्याशी को, क्योंकि जो सालों से बीजेपी के वोटर रहे है उनके बीच यह असमंजस की स्थिति हैं।
यह मुद्दे भी कर रहे बीजेपी को नुकसान:
देश में बढ़ती महंगाई, बेरोज़गारी से लेकर किसानों से छलावा, आवारा पशुओं की समस्या, कोरोना की दूसरी लहर में फैली अव्यवस्था से उपजी नाराज़गी आदि मुद्दे भी बीजेपी को नुकसान कर रहे हैं।
क्या बीजेपी इसलिए नही कर रही बागियों पर कार्यवाही:
जो राजनीति इस वक्त चल रही है यह कहना गलत नही होगा कि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने किसी को भी नाराज नहीं करने की रणनीति बनाई है। इस रणनीति के तहत वे दागियों और बागियों पर कार्रवाई न करेगी। यानी नगरीय निकाय चुनाव में जो नेता पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम कर रहे है उन पर कोई नहीं की जाएगी। पार्टी का लक्ष्य है कि 2023 में सरकार बनाई जाए। इस लक्ष्य को पाने के लिए लगातार रणनीति बनाई जा रही है। भाजपा को उम्मीद है कि 2018 की तरह 2023 में भी उसकी लॉटरी लग सकती है। इसलिए पार्टी समन्वय के साथ काम कर रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा भी मिशन 2023 तक दागी और बागी पर कोई कार्रवाई नहीं करेगी।
बीजेपी के सीट हुई कम तो एक कारण यह भी रहेगा:
बीजेपी की इस चुनाव में अगर सीट कम होती है तो इसमें एक कारण यह भी सामने आ रहा है कि जहां जिस समाज की संख्या अधिक है वहां उसी समाज के व्यक्ति को टिकट देना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और इसलिए आज पेटलावद का यह चुनाव एक सामाजिक मुद्दे पर लड़ा जा रहा है। ऐसे वार्डो में जो निर्दलीय मैदान में है वो अपने समाज की एकता दिखाकर जीत के दावे कर रहे है। जिससे कई समाजों में आपसी खटास भी पैदा हो रही है। यह सब बीजेपी के टिकट वितरण में हुई गड़बड़ी के कारण हो रहा हैं। यानि इस बार जो बीजेपी के रणनीतिकार थे वो सही रणनीति बना नही पाए जो अब बीजेपी को आने वाले चुनाव में नुकसान करेगी।
बीजेपी में यह बड़े नाम जो चुनाव में कर रहे है बगावत:
वार्ड 1 से मुकेश परमार, 6 में शंकर राठौड़, 7 में मोहन मेड़ा, 9 में राजू सतोगिया, 12 में आजाद गुगलिया। अब पार्टी इन्हे बाहर करती है या नहीं यह देखने वाली बात होगी। यह चुनाव इनका आगे का राजनीति भविष्य तय करेगा। अगर जीते तो यह पार्टी में बने रहेंगे और हारे तो पार्टी में तो रहेंगे, लेकिन बस ओपचारिक तौर पर। अब देखना यह होगा कि किसका राजनीतिक भविष्य खत्म होता है और किसका राजनीतिक भविष्य जगमगाता है।
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