झाबुआ लाइव के लिऐ ” गेस्ट रिपोर्टर” चंद्रभान सिंह भदौरिया ( लेखक सहारा समय झाबुआ – अलीराजपुर के संवाददाता है )
आखिरकार थकाऊ इंतजार के बाद बिहार की सत्ता की चाबी किसके हाथ होगी यह तस्वीर अब साफ हो गयी है मोदी का जादू नही चला है ओर बिहार की जनता ने नीतिश कुमार पर ही भरोसा जताया है । इस बार बिहार का चुनाव कई मुद्दो पर आधारित रहा मगर जिन कुछ मुद्दो के चलते भाजपा बिहार हार गयी हम यहा उसकी संक्षिप्त पडताल कर रहे है ।
भागवत का बयान ले डूबा –
आरएसएस को भाजपा की मातृ सत्ता माना जाता है साथी उसके एजेंडे से बाहर जाकर कोई भी भाजपा सरकार काम नही कर सकती । लेकिन बिहार चुनाव के ठीक पहले जिस तरह से भागवत ने आरक्षण की समीक्षा काम बयान दे डाला उससे भाजपा कोई खासा नुकसान पहुँचाया । बाद मे भली ही मोदी – अमित शाह जैसे लोग बोलकर सफाई देते फिरे हो कि कोई मां काम लाल उनके रहते आरक्षण खत्म नही कर सकता मगर हकीकत यही है कि तब तक तीर निकलकर भाजपा को डेमेज कर चुका था ।
कमजोर हो रहा है मोदी मैजिक —
दरअसल मोदी का मैजिक पहले देश मे चला ओर मोदी उसे विदेश मे चलाने मे आज भी कामयाब रहे लेकिन विदेश मे मैजिक बढाने के चक्कर मे देश मे कम समय देना उन्हें भारी पडा । मोदी के खिलाफ यह बात भी गयी कि वह कॉरपोरेट सेक्टर को तो खूब समय देते है मगर देश के किसानो , मजदूरो एंव मध्यम वर्गीय से केवल रेडियो पर मन की बात करते है आज तक किसी किसान के बीच मोदी को खेत – खलिहान मे नही देखा गया । बिहार चुनाव के दौरान बढी हुई दाल की कीमते भी भाजपा पर भारी पढी ।
नही हुआ वोटो का बिखराव –
लोकसभा चुनाव मे बिहार मे मोदी की ऐतिहासिक जीत इसलिए भी हुई थी क्योकि उस समय कांग्रेस / जदयू / राजद अलग अलग लड रही थी ओर मुस्लिम वोट इस कारण बंटे थे साथ ही कुर्मी & यादव वोट भी बिखरे थे मगर इस बार महागठबधन के चलते वोट बिखरे नही बल्कि एकजुट हो गये ।
सीएम प्रोजेक्ट ना करना / मांझी- पासवान बने बोझ
सच तो यह है कि बिहार मे लोगो ने भाजपा के साथ नीतीश का सुशासन देखा था इसलिए भाजपा लालू पर हमला कर पाई लेकिन नीतिश पर एक सीमा से ज्यादा हमलावर नही हो पाई । उनके जवाब मे कोई सीएम प्रोजेक्ट ना करना भी भाजपा की भूल थी साथ ही मांझी – पासवान पूरे चुनाव मे बोझ ही साबित हुए । उन्हें भाजपा ने सीट जयादा दे दी मगर परिणाम नकारात्मक जयादा आये ।