थांदला। दुनिया वालों की नजर में तो सबसे बड़ा गुनहगार व नादान वही है, जो अपनी कमाई की सीजन आए और बिना कमाई के ही वक्त गवा दे और यूं ही हाथ पर हाथ रखकर बैठा रहे। यानी रमजान का महीना ऐसा ही कमाई वाला महीना है जिसमें रब ने फरमाया कि मेरी इबादत करों और एक का दस गुना सवाब मुझसे ले जाओ। पवित्र रमजान के दो अशरे गुजर जाने के बाद तीसरे अशरे में विशेष इबादत यानी एतेकाफ का बड़ा महत्व रहता है। यह बात जामा मस्जिद पेश इमाम मौलाना इस्माइल बरकाती ने समाजजनों को समझाइश देते हुए कहीं। आपने कहा कि जो शख्स दुनिया के सारे कारोबार छोड़कर रमजान के आखिरी दस दिन सुन्नत की नीयत के साथ सिर्फ अपने पैदा करने वाले अल्लाह तआला की इबादत करता है तो उस पर रब का खास करम रहता है। मौलाना बरकाती ने एतेकाफ के मायने समझाते हुए बताया कि एतेकाफ का मतलब ठहरना। दुनिया के सारे कारोबार छोड़कर रमजान के अंतिम दस दिन सुन्नत की नीयत के साथ अल्लाह की इबादत और अपने आपको मस्जिद के अंदर पाबंद कर लेना एतेकाफ कहलाता है। नमाज पढ़ना, कुरआन पढ़ना, जिक्र-ए इलाही में मशगुल रहना, शबे कद्र को पाने के लिए एतेकाफ सबसे बेहतरीन शक्ल है। एतेकाफ की हालत में बेवजह मस्जिद से बाहर जाना जाईज नहीं। इसी तरह औरतो को भी अपने घरो में एक कमरे में एतेकाफ करना होता है। एतेकाफ करने वाला 20वें रोजे की शाम से ही खुद को दुनियावीं बातों से अलग कर मस्जिद में चला जाता है तथा ईद का चांद देखने ही बाहर आता है। स्थानीय गोसिया जामा मस्जिद में एतेकाफ करने वालों मंे कय्यूम खान, ईरफान कादरी, सिराज खान, मोईन खान, अमजद खान, नावेद, शाहरूख शेख, शाहरूख गौरी आदि शामिल है।
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