बच्चों के लिए आयोजित धार्मिक शिविर में बोले संयत मुनिजी संसार में सभी जीव सुख की चाह रखते है

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झाबुआ लाइव के लिए बामनिया से लोकेंद्र चाणोदिया की रिपोर्ट-

संसार में सभी जीव सुख चाहते है। इसीलिये संसार में सभी कार्य सुख प्राप्त करने के लिये करते है। सुख वस्तु में ढुढते है, सुख व्यक्ति में ढुंढते है, वस्तु से तात्पर्य गुलाब जामुन खाया तो वस्तु से सुख पाया वही तुलसी दास जी के एक दोहे को बताते हुऐ कहा कि दुल्हा खुला-खुला घुमता है, खुब नाच कूद के बैडियों में फंस जाता है। किंतु वास्तविक सुख कहा है। सुख है आत्मा में उसी को पहचानना है। लेकिन संसारी लोग संसार में सुख ढुंढते हैं अपने आप में नही। हमें टेंशन कोई नही देता दोष स्वयं का है। हमे टेंशन आ रहा है क्योंकि हमारे कार्य खराब है। दोष हम दुसरो को देते है। हम अपने कर्मो को नही देखते हैं। हमने पूर्वभव में अच्छे कर्म किये है तो हमे मनुष्य जीवन मिला है। हमे अच्छे कार्य कर अपने भव को सुधारना है। उक्त उद्गार बामनिया के गौरव पूज्य संयत मुनिजी ने नारेला रोड स्थित महावीर भवन में दिए। धर्मसभा को आदित्य मुनिजी ने संबोधित करते हुऐ कहा कि जीवन में धर्म रूपी बैंक आ गई परंतु उसमें बैलेंस नहीं है। जैसे हमने बैंक में खाता तो खुल लिया, एटीएम भी ले लिया किंतुं खाते में रूपया नही तो वो एटीएम किस काम का। उसी प्रकार हमें मनुष्य भव तो मिल गया किंतु धर्म रूपी बैलेंस नही है। जीव को पाप करना अच्छा लगता किंतु फल नही भोगना। पूण्य नही करना लेकिन फल चाहिये। अभी तो अपनी खेती पूर्व भव से चल रही है। जीव गलत कार्य स्वयं करता है किंतु फल मिलने पर भगवान को दोष देता है। या किसी और को दोष देता है। जीव वर्तमान में तन को संवारने और माया को जोडऩे में समय गवा रहा है। इंसान को पेट की चिंता नही, पेटी की चिंता है। हमे हर क्रिया का फल मिलेगा जैसी क्रिया करेंगे वैसा ही फल मिलेगा। हमें प्रमाद छोड कर पुरूषार्थ करना है। पुरूषार्थ कर हमें मोक्ष प्राप्त करना है। वर्तमान में बामनिया स्थानक भवन में प्रतिदिन प्रवचन बच्चों-बच्चियों को धार्मिक शिवीर लगाकर धर्म की शिक्षा मुनिश्री संयत मुनिजी, दिलिप मुनिजी एवं आदित्य मुनिजी आदि ठाणा 3 के सानिध्य में दि जा रही है।