पत्रकारों पर मुकदमों के लिऐ बनी हुई है गाइड लाइन

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झाबुआ / अलीराजपुर Live डेस्क की स्पेशल रिपोर्ट ।

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पत्रकारो के खिलाफ मुकदमों को लेकर अक्सर भ्रम की स्थिति पुलिस महकमे ओर पत्रकार संगठनो के बीच बनी रहती है इस संबध मे पुलिस मुख्यालय ने 2010 से ही एक सरक्यूलर जारी किया हुआ है जिसके प्रमुख प्रावधान इस प्रकार है ।

1)- यह कि सीआरपीसी के प्रावधानो के अंतर्गत पत्रकार के खिलाफ एफआईआर तो हो सकती है क्योकि एफआईआर हो जाना अपने आप मे आरोप लगना है ना कि पत्रकार का अपराधी होना ।

2 ) – लेकिन पुलिस मुख्यालय के निर्देश के अनुसार एसपी ओर इलाके के डीआईआई यह देखेंगे कि क्या किसी दुर्भावना के चलते पत्रकार के खिलाफ रिपोर्ट की गयी है ?

3 )- अगर डीआईआई ओर एसपी यह पाते है कि पत्रकार द्वारा समाचार संकलन की प्रकिया मे या समाचार प्रकाशित होने या प्रसारित होने के चलते अपराध कायम करवाया गया है तो वह एफआईआर रद्द कर देंगे ।

4 )- लेकिन अब सवाल खडा होता है कि पत्रकार आखिर कौन कौन से होते है जिन्हें इसका लाभ मिलेगा ! तो इस श्रेणी मे अखबार / टीवी पत्रकार शामिल है 2010 के आदेश के तहत लेकिन उस वक्त तक न्यूज पोट॔ल ओर फ्री लांसर पत्रकारो का चलन नही था लेकिन अब जनसंपर्क विभाग मध्यप्रदेश शाशन ने न्यूज पोट॔ल ओर फ्री लांसर पत्रकारो को मान्यता दे दी है लिहाजा उन्हें भी इसका कवर मिलेगा ..।

5 ) – मामला दज॔ होने पर संबधित पुलिस जनसंपर्क अधिकारी को पत्र लिखकर पूछेगी कि एफआईआर मे नामजद पत्रकार किस संस्थान का है ? जनसंपर्क अधिकारी की सूचना से ही पुलिस आगे की कारवाई करेगी ।

6 )- पत्रकारो को चाहिऐ कि वे तुरंत अपने संपादकीय कार्यालयों से अपने पत्रकार होने की सूची जिला जनसंपर्क अधिकारी के यहा भिजवाकर पंजीकृत करवा ले क्योकि आज के दौर मे पत्रकार षडयंत्र के सर्वाधिक शिकार है हर नेता , अधिकारी ओर माफिया यह चाहता है कि आप या तो उनके फेवर की खबर करे या ना करे ओर अगर खबरे छापी या दिखाई  तो फर्जी मुकदमे मे फंसाने की योजना होती है ।

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