जीते जी शरीर रूपी पिंड भगवान को दान कर दिया वहीं पिंडदान हो गया -पंडित अरविंद जी

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 मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ 

लोग संतान की इच्छा करते हैं वह भी पुत्र की इच्छा करते हैं ताकि मरने के बाद वह उनका पिंडदान कर सके ताकि उसकी सद्गति हो सके मगर आजकल पुत्र क्या करते हैं सब जानते हैं पुत्र से पिंड दान की इच्छा के बजाय जीते जी शरीर रूपी पिंड भगवान को दान कर दो तो समझो तुम्हारा पिंडदान हो गया ।
उत्तम उदगार आंबुआ में श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा समिति द्वारा श्राद्ध पक्ष में भागवत महापुराण कथा में व्यासपीठ पर विराजमान पंडित अरविंद भारद्वाज ने व्यासपीठ से व्यक्त करते हुए द्वितीय दिवस की कथा प्रारंभ में कहे उन्हें कहा कि मां दूध पिलाती है बदले में कोई शुल्क नहीं लेती है । मां बाप यही चाहते हैं कि बदले में उनके बच्चे श्राद्ध पक्ष अमावस आदि के समय घी गुड़ की धूप दे इससे अधिक के चाह नहीं रखते हैं ।
कथा के द्वितीय दिवस राजा परीक्षित की कथा सुनाते हुए बताया कि राजा परीक्षित सिर पर स्वर्ण मुकुट धारण कर जंगल में शिकार पर गए जहां पर उन्हें एक बैल मिला जिसके एक पैर को काल पुरुष काट रहा था पूछने पर उसने बताया कि वह कलयुग है । राजा परीक्षित ने उसे ऐसा करने का मना किया, तो उसने अपने लिए स्थान मांगा तब उन्होंने कहा कि तुम्हारा वास जुआ घर, मदिरालय, तथा वेश्याओं के घरों में रहेगा । कलयुग द्वारा कोई अच्छा स्थान मांगने पर उन्होंने कहा कि तुम स्वर्ण मैं भी रहोगे राजा यह भूल गए कि उन्होंने मुकुट सिर पर धारण कर रखा है कलयुग उसमें बैठ गया तथा राजा की मती खराब कर दी राजा जब आगे बढ़े तो एक आश्रम दिखा ,जहां पर एक ऋषि ध्यान में बैठे थे राजा परीक्षित ने पुकारा मगर ध्यान में होने के कारण उन्होंने उत्तर नहीं दिया राजा को गुस्सा आ गया और उन्होंने मरा हुआ सर्प मुनि के गले में डाल कर चल दिए मुनि पुत्र को जब पता चला है कि उनके पिता के गले में मरा हुआ सर्प किसी ने डाल दिया है । तब उसने श्राप दे दिया कि जिसने भी यह किया है उसको सात दिनों में सर्प डसने से मृत्यु को प्राप्त होगा ।
राजा परीक्षित ने राजमहल जाकर स्वर्ण मुकुट उतारा तो कलयुग का प्रभाव समाया हुआ उन्हें अपने किए पर पश्चाताप हुआ तभी उन्हें पता चला कि उन्हें श्राप दिया गया है तथा सात दिन में मृत्यु होगी राजा ने गंगा किनारे जाकर श्री सुखदेव से प्रार्थना की कि जल्दी मरने वाले को क्या करना चाहिए श्री सुखदेव जी ने भागवत कथा सुनने का कहा था राजा के आग्रह पर उन्हें भागवत कथा सुनाने को तैयार हुए ।
पंडित श्री अरविंद जी ने बताया कि राजा को एक समर्थ गुरु मिल गया जिसने उसे सद मार्ग बताया जो कि उसका उद्धार करेगा कोई भी मंत्र दृढ़ विश्वास के साथ जपा जाए तो वह शुभ फल देता है भाव के साथ भक्ति की जाए तो भगवान मिल जाते है भागवत कथा में आगे श्री बराह भगवान का अवतार  सनद कुमार की कथा तथा पांडव के पांच पुत्रों की हत्या एवं उत्तरा के गर्भ में पल रहे गर्भ की भगवान द्वारा रक्षा किए जाने आदि की कथा सुनाई कथा सुनने उमराली, वालपुर, सोंडवा, अलीराजपुर आदि स्थानों से श्रोता उपस्थित हुए ।

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