मुकेश परमार@झाबुआ
मल्लाभाई रोझ झाबुआ जिले की एक ऐसी सख्सियत थे जिन्होंने शिक्षा के माध्यम समाज में बदलाव की जीतोड़ कोशिश की। मांडलीनाथू में उनके द्वारा स्थापित कन्या पाठशाला या बालक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय उनके प्रयासों की सराहनीय पहल के जीवन्त उदाहरण हैं।
वे गांधीवादी विचारधारा के पोषक रहे, उनका सादा जीवन हमेशा प्रेरणा देता था। आज हे लगभग 50 वर्ष पहले उन्होंने एक आश्रम विद्यालय के रूप में प्रारंभ किया था। प्रायवेट विद्यालय तथा छात्रावास चलाना बहुत कठिन काम है, फिर भी उन्होने इस कठिन काम को लगातार किया। केबल समाज के बल पर आश्रम को चलाये रखने की कठिनाइयों के चलते उन्होंने सरकारी अनुदान लेना शुरू किया, तभी उनकी आशाओं के केन्द्र विन्दु उनके शिक्षा संस्थान, नयी तरह की अनुशासनात्मक समस्यायें आना शुरू हो गयीं थीं।
संवेदनाहीन सरकारी तंत्र और उनके पारिवारिक हस्तक्षेप ने उनके शुचितापूर्ण उद्देश्य में सेंध लगाना शुरू कर दी थी फर यह सब होने के बाद भी मल्लाभाई एक ऊर्जावान संघर्षशील सामाजिक कार्यकर्ता थे। अनेकानेक उतार चढ़ाव के बावजूद वह सत्तर साल से अधिक समय तक सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे। उनके प्रयास सदा स्मरणीय और स्तुत्य रहेंगे। मल्ला गुरूजी जीवनभर सादगी से रहे और अपने जीवन को सार्थक बनाने केलिये संघर्ष करते रहे। आजादी के पहले मल्ला गुरूजी आजादी के आंदोलन से जुड़े और गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने अपने पैतृक गाँव मंडलीनाथू में विद्यालय खोला। वह जनजाति के पटेलिया समाज के वंदनीय शलाका पुरुष थे। मेरा उनसे मिलना जुलना करीब बीस साल पुराना है। मैं जब भी समोई, कंजावानी की तरफ जाता तो थोड़े समय के लिए ही सही मल्लाभाई से जरूर मिलता था। वह मल्ला गुरूजी के नाम से ही प्रसिद्ध थे। बिना काम के मैं.उनके पास कुछ समय उनके सान्निध्य में बैठकर बिताता था। उनके साथ बैठना उनसे बात करना अच्छा लगता था। झाबुआ में सामाजिक सोच से काम करनेवाले कम लोगों में से वह एक जीवट पुरुष थे। सार्वजनिक जीवन में उनके पास अनगिनत खट्टे मीठे आनुभव थे। उनसे सुनते रहो और अपने लिये पथ्य ढूँढ़ लो, ऐसा उनका मार्गदर्शक जीवन था।
उनके मनोभावों में समाज के उत्कर्ष के सपने थे। उनको उन जैसे सहयोगी न मिलने की पीड़ा उनके साथ रहते समय प्रकट हो जाती थी। आदिवासी समाज में लम्बे समय तक सक्रिय काम करनेवाले मल्ला गुरूजी गीने चुने लोगों में से एक महापुरुष थे। आज अभी मुझे पता चला कि उनका देहावसान हो गया। उनकी आयु योबहुत अधिक थी, वह सार्थक जीवन जी रहे थे फिर भी उनके निधन का समाचार सुनकर मन दुखी हो गया। वह ज्वलंत प्रेरणापुंज थे। वृद्धावस्था में भी वह कुछ करने की ललक अपने अंदर समाहित किये हुए थे। मल्ला भाई रोझ के निधन से झाबुआ में एक श्रेष्ठ समाजसेवी की शून्यता पैदा हो गया हैै।
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