कांग्रेस के बंद को जिले में मिला व्यापक समर्थन : राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपकर मोदी सरकार के तीन काले कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की

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फिरोज खान, अलीराजपुर
केंद्र सरकार द्वारा नए कृषि विधेयक बिल को देशभर में लागू करने के विरोधस्वरूप मंगलवार को किसानों के समर्थन में जिला कांग्रेस कमेटी ने भारत बंद का समर्थन किया। इस दौरान संपूर्ण जिले के नगर और कस्बे बंद रहे। जिला कांग्रेस अध्यक्ष महेश पटेल के नेतृत्व में राष्ट्रपति के नाम अपर कलेक्टर सुरेशचंद्र वर्मा को कांग्रेस नेताओं ने ज्ञापन सौंपा। इस दौरान जिला कांग्रेस कार्यवाहक अध्यक्ष ओमप्रकाश राठौर, पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष राधेश्याम माहेश्वरी, उपाध्यक्ष प्रकाशचंद्र जैन, कोषाध्यक्ष सुमेरसिंह अजनार, विधायक प्रतिनिधि खुर्शीद अली दिवान, अनिल थेपडिया, राजेश चौधरी, अनिल श्रीवास्तव, सुरेश परिहार, इरफान मंसूरी, राहुल राठौड सहित कांग्रेस नेता व कार्यकर्ता मौजूद थे।
क्या है ज्ञापन में
सौंपे गए ज्ञापन में बताया गया कि मोदी सरकार ने देश के किसान खेत और खलिहान के खिलाफ एक घिनौना षडयंत्र किया है। केन्द्र की भाजपा सरकार तीन काले कानूनों के माध्यम से देश की हरित क्रांति को हराने की साजिश कर रही है। देश के अन्नदाता व भाग्यविधाता किसान तथा खेत मजदूर की मेहनत को चंद पूंजीपतियों के हाथों गिरवी रखने का षडयंत्र किया जा रहा है।
आज देश भर में 62 करोड़ किसान- मजदूर व 250 से अधिक किसान संगठन इन काले कानूनों के खिलाफ आवाज उठा रहे है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व उनकी सरकार सब ऐतराज दरकिनार कर देश को बरगला रहे हैं। अन्नदाता किसान की बात सुनना तो दूर, संसद में उनके नुमाईंदों की आवाज को दबाया जा रहा है और सड़को पर किसान मजदूरों को लाठियों से पिटवाया जा रहा है।
संघीय ढांचे का उल्लंघन कर, संविधान को रौंदकर, संसदीय प्रणाली को दरकिनार कर तथा बहुमत के आधार पर बाहुबली मोदी सरकार ने संसद के अंदर तीन काले कानूनों को जबरन तथा बगैर किसी चर्चा व राय मशवरे के पारित कर लिया है। यहाॅ तक कि राज्यसभा में हर संसदीय प्रणाली व प्रजातंत्र को तार-तार कर ये काले कानून पारित किए कए। कांग्रेस पार्टी सहित कई राजनैतिक दलों ने मतविभाजन की मांग की, जो हमारा संवैधानिक अधिकार है। 62 करोड़ लोगों की जिंदगी से जुड़े काले कानूनों को संसद के परिसर के अंदर सिक्योरिटी गार्ड लगाकर, सांसदों के साथ धक्का-मुक्की कर बगैर किसी मतविभाजन के पारित कर लिया गया।
देश के किसान-खेत मजदूर- मंडी के आढ़ती-मंडी मजदूर- मुनीम- कर्मचारी- ट्रांसपोर्टर व लाखों करोड़ों लोगों के ऐतराज इस प्रकार है।
पहला,- कृषि उपज खरीद व्यवस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। ऐसे में किसानों केा न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा और न ही बाजार भाव के अनुसार फसल की कीमत। किसान की फसल को दलाल औने-पौने दामों पर खरीदकर दूसरे प्रांतों की मंडियों में मुनाफा कमा बेच देंगे। अगर पूरे देश की कृषि उपज मंडी व्यवस्था ही खत्म हो गई, तो इससे सबसे बड़ा नुकसान किसान-खेत मजदूर को होगा और सबसे बड़ा फायदा मुट्ठीभर पूंजीपतियों को।

दूसरा,- मोदी सरकार का दावा है कि अब किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है, पूरी तरह से सफेद झूठ है। आज भी किसान अपनी फसल किसी भी प्रांत में ले जाकर बेच सकता है। परंतु वास्तविक सत्य क्या है? कृषि सेंसस 2015-16 के मुताबिक देश का 86 प्रतिशत किसान 5 एकड़ से कम भूमि का मालिक है। जमीन की औसत मल्कियत 2 एकड़ या उससे कम हैं। ऐसे में 86 प्रतिशत किसान अपनी उपज नजदीक अनाज मंडी- मंडी के अलावा कहीं और ट्रांसपोट कर न ले जा सकता या बेच सकता है। मंडी प्रणाली नष्ट होते ही सीधा प्रहार स्वाभाविक तौर से किसान पर होगा।
तीसरा,-मंडियां खत्म होते ही अनाज- सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों-करोड़ो मजदूरों, आढ़तियों, मुनीम ढुलाईदारों,ट्रांसपोर्टरों, शेलर आदि की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप खत्म हो जाएगी।
चौथा,-किसान को खेत के नज़दीक अनाज मंडी-सब्जी में उचित दाम किसान के सामूहिक संगठन तथा मंडी में खरीददारों के आपस के काॅम्पटिशन के आधार पर मिलता है। मंडी में पूर्व निर्धारित ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य ’ किसान की फसल के मूल्य निर्धारण का बेंचमार्क है। यहीं एक उपाय है, जिससे किसान की उपज की सामूहिक तौर से  प्राईस डिस्कवरी यानि मूल्य निर्धारण हो पाता है। अनाज- सब्जी मंडी व्यवस्था किसान की फसल की सही कीमत, सही वजन व सही बिक्री की गारंटी है। अगर किसान की फसल को मुट्ठीभर कंपनियाॅ मंडी में सामूहिक खरीद की बजाय उसके खेत से खरीदेंगे, तो फिर मूल्य निर्धारण,डैच् वजन व कीमत की सामूहिक मोलभाव की शक्ति खत्म हो जाएगी। क्या फूड काॅर्पोरेशन आॅफ इंडिया साढ़े पंद्रह करोड़ किसानों के खेतों से डैच् पर फसल खरीद सकती है ? अगर मुट्ठीभर पूंजीपतियों ने किसान के खेत से खरीदी हुई फसल का डैच् नहीं दिया, तो क्या मोदी सरकार डैच् की गांरटी देगी ? किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य आखिर मिलेगा कैसे ? स्वाभाविक तौर से इसका नुकसान किसान को होगा।
पाॅचवाॅ,- अनाज -सब्जी मंडी व्यवस्था खत्म होने के साथ ही प्रांतों की आय भी खत्म हो जाएगी। प्रांत  ‘मार्कैट फीस ’ व ‘ ग्रामीण विकास फंड ’ के माध्यम से ग्रामीण अंचल का ढांचागत विकास करते हैं व खेती को प्रोत्साहन देते है। उदाहरण के तौर पर पंजाब ने इस गेहॅू सीजन में 127.45 लाख टन गेहॅू खरीदा। पंजाब को 736 करोड़ रू. मार्केट फीस व इतना ही पैसा ग्रामीण विकास फंड में मिला। आढ़तियों को 613 करोड़ रू. कमीशन मिला। इन सबका भुगतान किसान ने नहीं, बल्कि मंडियों से गेहॅू खरीद करने वाली भारत सरकार की एफसीआई आदि सरकारी एजेंसियों तथा प्राईवेट व्यक्तियों ने किया। मंडी व्यवस्था खत्म होते ही आय का यह स्रोत अपने आप खत्म हो जाएगा।
छठवाॅ,- कृषि विशेषज्ञों का कहाना है कि अध्यादेश की आड़ में मोदी सरकार असल में  ‘ शांता कुमार कमेटी ’ की रिपोर्ट लागू करना चाहती है, ताकि एफसीआई के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद ही न करनी पड़े और सालाना 80,000 से 1 लाख करोड़ की बचत हो।इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव खेत खलिहान पर पड़ेगा।
सांतवाॅ,- अध्यादेश के माध्यम से किसान को  ‘ ठेका प्रथा में फंसाकर उसे अपनी ही जमीन में मजदूर बना दिया जाएगा।क्या दो से पाॅच एकड़ भूमि का मालिक गरीब किसान बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ फसल की खरीद फरोख्त का काॅन्ट्रैक्ट बनाने, समझने व साईन करने में सक्षम है ? साफ तौर से जवाब नहीं मंे है। काॅन्ट्रैक्ट फार्मिंग अध्यादेश की सबसे बड़ी खामी तो यही है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि डैच् देना अनिवार्य नहीं । जब मंडी व्यवस्था खत्म होगी तो किसान केवल काॅन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर निर्भर हो जाएगा और बड़ी कंपनियाॅ किसान के खेत में उसकी फसलकी मनमर्जी की कीमत निर्धारित करेंगी। यह इनई जमींदारी प्रथा नहीं तो क्या हैं ? यहीं नहीं काॅन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से विवाद के समय गरीब किसान को बड़ी कंपनियों के साथ अदालत व अफसरशाही के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है। ऐसे में  ताकतवर बड़ी कंपनियाॅ स्वाभाविक तौर से अफसरशाही पर असर इस्तेमाल कर तथा कानूनी पेचीदगियों में किसान को उलझाकर उसकी रोजी रोटी पर आक्रामण करेंगी तथा मुनाफा कमाएंगी।
आंठवाॅ,- कृृषि उत्पाद, खाने की चीजों व फल-फूल-सब्जियों की स्टाॅक लिमिट को पूरी तरह से हटाकर आखिरकार न किसान को फायदा होगा और न ही उपभोक्ता को। बस चीजों की जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले मुट्ठीभर लोगों को फायदा होगा । वे सस्ते भाव खरीदकर कानूनन जमाखोऱी कर महंगे दामों पर चीजों को बेचे पांएगे । उदाहरण के तौर पर कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की रबी 2020-21 की रिपोर्ट में यह आरोप लगाया गया कि सरकार किसानों से दाल खरीदकर स्टाक करती है और दाल की फसल आने वाली हो तो उसे खुले बाजार में बेच देती है । इससे किसानों को बाजार भाव नहीं मिल पाता । 2015 में हुआ ढाई लाख करोड़ का दाल घोटाला इसका जीता जागता सबूत है, जब 45 रू. में दाल का आयात कर 200 रू किलो तक बेचा गया था ।
जब स्टाक की सीमा ही खत्म हो जाएगी तो जमाखोरो और कालाबाजारों को उपभोक्ता को लूटने की पूरी आजादी होगी ।
नौवां-, अध्यादेशों में न तो खेत मजदूरों के अधिकारों के संरक्षण का कोई प्रावधान है और न ही जमीन जोतने वाले बंटाईदारों या मुजारों के अधिकारों के संरक्षण का । ऐसा लगता है कि उन्हें पूरी तरह से खत्म कर अपने हाल पर छोड़ दिया गया है ।
दसवां- तीनों अध्यादेश संघीय ढांचे पर सीधे-सीधे हमला हैं । खेती व मंडिया संविधान के सांतवे शेड्यूल में प्रांतीय अधिकारों के क्षेत्र में आते हैं । परन्तु मोदी सरकार ने प्रांतों से राय करना तक उचित नहीं समझा खेती का संरक्षण और प्रोत्साहन स्वाभाविक तौर से प्रांतों का विषय है, परंतु उनकी कोई राय नहीं ली गई । उल्टा खेत खलिहान व गांव की तरक्की के लिए लगाई गई मार्केट फीस व ग्रामीण विकास फंड को एकतरफा तरीके से खत्म कर दिया गया । यह अपने आप में संविधान की परिपाटी के विरूद्ध है ।
महामारी की आड में किसानों की आपदा को मुट्ठीभर ‘पंूजीपतियों के अवसर‘ में बदलने की मोदी सरकार की साजिश को देश का अन्नदाता किसान व मजदूर कभी नहीं भूलेगा ।
इसलिए आपसे विनम्र आग्रह है कि इन तीनों काले कानूनों को अ.भा. कांग्रेस किसान संगठनों द्वारा आज 8 दिसम्बर 2020 को पूरे ‘‘ भारत वापस ’’ का समर्थन करते हुए इन काले कानूनों को वापस लेने का आग्रह करती है।

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