चंद्रभानसिंह भदोरिया @ चीफ एडिटर
झाबुआ जिले के कल्याणपुरा पुलिस थाने मे पदस्थ टीआई गीता सोलंकी का रसुख पूरे पुलिस विभाग की किरकिरी करवा रहा है मगर पुलिस कप्तान सहित आला अधिकारियों को टीआई के रसुख के आगे खामोशी ओढना पड रही है। इसी खामोशी का परिणाम है कि पुलिस के स्थापित नियमों की कल्याणपुरा पुलिस थाना लगातार धज्जियां उड़ा रहा है। मगर कप्तान साहब …. टीआई को हटाने की जगह जांच के नाम की खामोशी ओढे बैठे है और यही खामोशी थाने से ट्रैक्टर बदलवा गई। अगर आम्र्स एक्ट मामले मे कथित फर्जी एफआईआर और आरोपी के भागने को लेकर जांच लंबित ना होती तो शायद ट्रैक्टर बदलने का कांड ना होता। जनता मे साफ संदेश जा रहा है कि कल्याणपुरा पुलिस क्या क्या खेल रही है पुलिस विभाग की परंपरा रही है कि अगर किसी टीआई पर गंभीर आरोप हो तो उसे वहां से हटाकर उस मामले की जांच की जाए ताकि जांच प्रभावित ना हो लेकिन 4 महीने से गीता सोलंकी उसी थाने पर पदस्थ होकर अपनी जांच करवा रही है जिस थाने के प्रभारी रहकर आम्र्स एक्ट के आरोपी के भागने ओर फिर नई कूटरचित एफआईआर गढ़ी गई। इतना बडा मामला होने पर भी आला अधिकारी 4 महीने से जांच लंबित रखे हुए हैं। सवाल उठता है क्यों? क्या अधिकारी किसी दबाव में है प्रभाव में है? अगर हां तो किसके? पब्लिक में किरकिरी हो रही है साहब..। पद और उसकी प्रतिष्ठा से बढ़कर कुछ नही होता साहब। अगर राजनितिक दबाव है तो ठोकर मारिऐ ऐसे दबाव को, अब ट्रैक्टर बदली कांड की जांच भी देखिए टीआई के उसी थाने के प्रभारी रहते हो रही है ताकि अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर पीडि़त पक्ष को अपने हक मे बुलवा सके। हो सकता है टीआई गीता सोलंकी को फिर से राहत पुलिस के आला अधिकारी दे दे लेकिन इस बार एक्सपोज टीआई नही आला अधिकारी हो जाएंगे।
अंत मे एक शेर
एक आंसु भी हुकूमत के लिए खतरा है
तुमने देखा नही आंखो का समुंदर होना
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