मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ
मुस्लिम जमात के हजरत इमाम हुसैन जो कि दुश्मनों से टक्कर लेते-लेते दुश्मनों की कपट पूर्ण रणनीति का शिकार होकर कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे उनकी याद में मुस्लिम धर्मावलंबी 10 दिनों तक गम मनाते हैं मातम करते हैं तथा उनकी याद में ताजिए बनाते हैं इन ताजियों को बहुत ही खूबसूरत तरीके से सजाकर 9वे (9 तारीख) दिन उन्हें बाहर निकाल कर रखते हैं तथा रात भर गम में डूब कर मातम करते हैं दूसरे दिन दिन भर रखने के बाद रात में गांव में विभिन्न स्थानों पर घुमा कर नदी में जाकर ठंडे करते हैं
आम्बुआ मुस्लिम जमात ने इस वर्ष भी आकर्षक ताजिया का निर्माण किया तथा 20-09-18 को घरों से बाहर निकाल कर पूरे सलीके के साथ पुराने बस स्टैंड जिसे यह हुसैन चौक कहते हैं रखे गए आम्बुआ में मरहूम सोहराब खा अमीर खा, मरहूम केमालुद्दीन खा तथा मरहूम ग्यासुद्दीन का परिवार अपने पुरखों की विरासत को संभाले हुए उसे आगे बढ़ाते हुए खूबसूरत ताजियों का निर्माण पूरी शिद्दत के साथ करते आ रहे हैं आम्बुआ में ताजिए सामाजिक एकता की मिसाल पेश करते हैं क्योंकि यहां पर मुस्लिम के साथ ही कई हिंदू परिवार भी विगत वर्षों में मांगी गई अपनी मुरादें पूरी होने के एवज में मन्नत उतारने के लिए ताजियों पर नारियल, मिठाई, फूल -माला लोबान अगरबत्ती आदि चढ़ाकर मनौती उतारते हैं कुछ लोग अपने नौनिहालों को फलों मिठाई आदि से ताजियों के सामने तोलते हैं मुस्लिम जनों ने मीठा शरबत आदि का वितरण भी किया सुबह इन ताजिया को हथनी नदी किनारे स्थित कर्बला में ठंडा विसर्जित किया जाना है