मुस्लिम समाज ने शब-ए-बारात का त्योहार परंपरागत तरीके से मनाया

मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ

खुदा की रहमत उनकी इबादत और खुदा से अपने द्वारा किए गए गुनाहों की माफी तथा इसके लिए वर्ष भर “सब्र” इंतजार करना कि शब-ए-बारात का समय आए और गुनाहों से तौबा की जाए अपने जो गुजर गए हैं उनके लिए दुआ करना इसके लिए इंतजार करना ही शब-ए-बारात का समय होता है।

इस्लाम धर्म में इस्लामिक पंचांग के मुताबिक शब-ए-बारात शाबान की 14-15 तारीख की दरमियानी रात को मनाया जाता है यह 14 तारीख की रात से शुरू होकर 15 तारीख की सुबह को समाप्त होता है सही माने में इस रात को क्षमा मांगने यानी कि साल भर में किए गए जाने अनजाने गुना की क्षमा मांगने की रात होती है रात को कब्रिस्तान जाकर अपनों की कब्र के पास जाकर अल्लाह से दुआ मांगते हैं कि अल्लाह इन्हे जन्नत नसीब करें। इस्लाम का आठवां महीना शबाना का होता है इसी माह की 14-15 तारीख की दरमियानी रात शब-ए-बारात मनाई जाती है।

आम्बुआ में 25 फरवरी को शब-ए-बारात का त्यौहार मनाया गया इस तारीख को समाज जनों ने मस्जिद में नमाज अदा की तथा रात्रि में कब्रिस्तान जाकर अल्लाह से दुआ मांगी मुस्लिम जमात में शब-ए-बारात में दो दिनों तक रोजा रखने का रिवाज है पहले शब-ए-बारात के दिन तथा दूसरा रोजा अगले दिन रखा जाता है रमजान माह में रोजा हर मुस्लिम का फर्ज होता है मगर शब-ए-बारात के दोनों रोजे फर्ज नहीं बल्कि नफिल रोजा कहा जाता है शब-ए-बारात में की गई दुआ जरूर कबूल होती है अल्लाह जरूर सुनता है कबूल करता है बताते हैं कि पांच रातें वो होती है जिनमें की जाने वाली दुआएं अल्लाह जरूर कबूल करता है उन रातों में पहली रात शुक्रवार यानी कि जुम्मे की रात, दूसरी रात ईद-उल-फितर से पहले की रात, तीसरी रात ईद-उल-अधा से पहले की रात तथा चौथी पहली रात रज्जब की रात और पांचवी रात शब-ए-बारात की रात की दुआ तत्काल अल्लाह कबूल कर उसका शबाब देता है शब-ए-बारात की रात मुस्लिम जमात पूरी रात नमाज अदा करते हैं कुरान पढ़ते हैं तथा अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं आम्बुआ में शब-ए-बारात का त्योहार परंपरागत तरीके से मनाए जाने के समाचार है।

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