नि:संतान वृद्धा महिला कुष्ठ रोगी को परिजनों ने त्यागा

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मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ

समाज में कुष्ठ रोगियों को घृणा की दृष्टि से देखे जाने की परंपरा आज भी कायम है। कभी परिवारों से तो कभी गांव से तो कई बार जिंदा दफन तक कर देने की ह्रदय विदारक घटनाएं ग्रामीण क्षेत्रों में हो चुकी है। 

आम्बुआ इंदिरा आवास फलिया में भी एक ऐसी ही नि:संतान वृद्धा महिला रोगी जिंदगी की अंतिम पड़ाव पर है जिसे परिजनों ने बेसहारा छोड़ दिया। हालांकि यह नि:संतान विधवा महिला इंदिरा आवास के कमरे में वर्षों से अकेली रहती आई है। मगर जब तक स्वस्थ रहे परिजनों तथा रिश्तेदारों ने पूछा मगर अब उसे उपेक्षित कर दिया जाने पर घर छोड़कर वह पंचायत प्रांगण में असहाय अवस्था में पड़ी हो कर मरने की भीख मांग रही है।

हमारे संवाददाता के अनुसार कभी भरे-पूरे परिवार के साथ आम्बुआ के इमली फलिया में रहने वाले आदिवासी परिवारों को चोरों ने परेशान करना प्रारंभ किया तो वे घर बार छोड़कर आम्बुआ कस्बे के समीप इंदिरा आवास तथा हरिजन आवास फलिया में रहने लगे तथा कृषि भूमि जो कि इमली फलिया में है पर दिन में खेती आदि करते रहे। इन्हीं परिवारों में एक परिवार की रूमली पति पातलिया भील भी था जिसमें पति पातलिया भील के साथ उसकी पत्नी रूमली भी थी दोनों को कोई संतान नहीं होने के बावजूद उनका जीवन आराम से कटता रहा। पति पातलिया की मृत्यु के बाद भी रूमली की खेती आदि का कार्य करके देवर आदि करते रहे, खेती के साथ-साथ कुछ महुऐ भी इसके हिस्से में है। जिनका मौसम में महुआ फूल बीन कर तथा थोड़ी बहुत मेहनत मजदूरी कर वह अपना पेट भरती रही। कुछ समय बाद कुदरत की कुछ ऐसी मार पड़ी की महिला रूमली (80) को कुष्ठ रोग हो गया। जब तक रोक की भयावहता कम थी तब तक इंदिरा आवास के अपने कमरे में रही तथा भोजन आदि बनाती रही इधर बीमारी ने पांव पसारे जिस कारण उसके हाथ पाव की उंगलियां गलती गई। जिससे उसको रोजमर्रा के कामो में परेशानी होने तथा कुष्ठ रोग के कारण आसपास तथा परिजनों की घृणा पूर्ण दृष्टि के कारण वह विगत एक सप्ताह पूर्व घिसर-घिसर  कर जैसे-तैसे पंचायत प्रांगण तक आ गई तथा अब यही पड़ी होकर भगवान से मौत मांग रही है। आसपास के समाजसेवी भोजन तो दे सकते हैं मगर उसकी अन्य सेवा कौन करे चलने फिरने में लाचार होने के कारण वह शौच आदि वही कर रही है जिससे गंदगी फैल रही है पास ही छोटे-छोटे बच्चों का निजी स्कूल है जो कि परेशान है।

इस महिला के देवर आदि परिजन इस की कृषि भूमि की उपज ले रहे हैं तथा वर्तमान में महुआ फूल बीन कर ले जा रहे हैं जो कि इस महिला की जीविका का साधन थे। परिजनों से चर्चा करना चाही तो कोई सटीक जवाब देने को तैयार नहीं है। कुष्ठ रोगी को कोई भी अपने पास ना तो रख सकता है और नहीं उसके पास रहना चाहेगा ग्रामीण क्षेत्र में इसे असाध्य तथा  छुआ छूत का रोग मानते हैं जबकि चिकित्सा क्षेत्र में यह साध्य रोग है ठीक हो सकता है तथा छुआ छूत (एक दूसरे में फेलने वाला) का रोग नहीं है lइलाज समय पर कराया जाए तो ठीक होना संभव माना गया है।

प्रतिनिधि द्वारा  जिला चिकित्सा अधिकारी डॉ. श्री प्रकाश ढोके से दूरभाष पर चर्चा करने का प्रयास किया गया मगर वह 26 मार्च को इंदौर विभागीय बैठक में होने से चर्चा नहीं कर सके। 27 को पुनः  संपर्क करना चाहा तो मोबाइल नहीं उठाया गया। बी.एम.ओ डॉ जयदीप जमीदार से चर्चा करना चाही तो उन्होंने एस.एम.एस के माध्यम से सूचना भेजी कि उनके पिताजी बीमार है वह अस्पताल में होने के कारण बात नहीं कर सकेंगे। इस कारण स्वास्थ्य विभाग क्या कर सकता है की जानकारी नहीं मिल सकी।

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