आदिवासी बच्चो में संस्कार व शिक्षा के लिये अनुठा प्रयास – 21 दिवसीय समर कैंप का आयोजन संपन्न

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डेक्स @ झाबुआ लाईव

आदिवासी बाहुल्य में आदिवासी बच्चो में बढते बुरे व्यसनों तथा शिक्षा-संस्कारो में कमजोर होने से मन में एक चिंता सी बनी हुई थी मन बार-बार अंदर से कचौट रहा था, मुझे लगातार उनकी चिंता सताये जा रही थी, सोचता रहता था आखिर क्या किया जाये की आगे बढती इन आदिवासीयों युवा पीडी को संस्कारी एवं आधुनिकता के मार्ग पर लाया जाये । मै पीछले 6 माह से इसके लिये कुछ करना चाहता था और अततः मेरे मित्र जो की शिक्षक भी है उनसे मेने इस युवा पीडी के लिए हो रही चिंता को जाहिर किया । बस इसके बाद हमारा यह अनुठा प्रयोग पूर्ण रूप से सफल हुआ और मुझे आत्मीय शांति के साथ इस अनुठे प्रयोग की सफलता के बाद इसे आगे बढे रूप में करने का साहस प्राप्त हुआ । उक्त वाक्य भाजपा आदिवासी जनजातिय संगठन के प्रदेश अध्यक्ष कलसिंह भाभर ने हमारे झाबुआ लाईव के संवाददाता को एक खास बातचीत में कहे ।

दरअसल आपको बता दे की जिले के चौनपुरा में विशेष तौर पर 20 मार्च 2022 से 11 अप्रैल 2022 तक 21 दिवसीय एक समर कैंप का आयोजन किया गया था । इस समर कैंप में अपनी वार्षिक परिक्षा दे चुके राणापुर, पेटलावद, थांदला, पंच पिपलिया व चौनपुर अलग – अलग स्थानो से लगभग 25 सरकारी स्कुल के आदिवासी बच्चो को शामिल किया गया । यह बच्चे अलग अलग कक्षाओं, कृषको, जनप्रतिनिधीयों तो कुछ शिक्षको के बच्चे थे वही कुछ बच्चे बुरे व्यसन के आदि थे । इसमें शामिल होने वाले सभी बच्चों की विशेषताएं बहुत भिन्न भिन्न थी तो इस समर कैंप में इन्हे पूर्णतः मोबाईल से मुक्त रखा गया था । कलसिंह भाभर ने बताया की इस समर कैंप का मुख्य उद्ेश्य इन बच्चो में व्याप्त व्यसनों से मुक्त करना, पढ़ने की अवस्था के लड़के लड़कियों को सार्थक शिक्षा के लिए प्रेरित करना, हमारी संस्कृति के अनुरूप आधुनिकता में ढालना, प्रर्यावरण के प्रति सजगता और संस्कृत- अंग्रेजी के प्रति बच्चों में रूचि उत्पन्न कराना इत्यादि था ।


प्रतिदिन इस शिवर में बच्चों को प्रातः 05 बजे से देर रात्रि 10 बजे तक अलग-अलग गतिविधीयां करवाई जाती थी । सुबह प्रातः 05 बजे उठकर शारीरिक व्यायाम, प्रातरू स्मरणम्, संस्कृत के शुभाषित और श्री मद् भगवद्गीता के कुछ श्लोकों का परायण करवाया जाता था इसके पश्चात् 7ः30 बजे अल्पाहार के बाद 08ः00 बजे से 11ः15 तक कक्षाऐं ली जाती थी । 11ः30 से 12ः30 तक इन बच्चों को प्रतिदिन अलग-अलग विशिष्टजनो से अपनी उपलब्धियों को लेकर मार्गदर्शित करवाया जाता था । 12ः30 से 02ः30 तक भोजन के बाद कुछ समय का विश्राम किया जाता था । 03ः00 से रात्रि विश्राम तक इस प्रकार अलग अलग गतिविधिंया संचालित की जाती थी । शिविर शिक्षा में संस्कृत और अंग्रेजी को पढ़ने से अधिक व्यवहारिक बोलचाल का प्रयत्न करवाया गया। जिसका साक्षात् दर्शन इस समर कैंप के समापन कार्यक्रम में देखने को जब विविधता से ओतप्रोत बच्चों ने संस्कृत और अंग्रेजी में ही परिचय और अनुभव बताएं । कुछ बच्चे धुम्रपान के आदि थे उन्होंने सभी के समक्ष उसे त्याग ने का संकल्प लिए । इस शिविर के आयोजन में कई लोगो का सहयोग व मार्गदर्शन मिला परन्तु विशेष रूप से सहयोग कलसिंह भाभर की पुत्री कु. तेजस्विनी भाबर, व्यवहारिक संस्कारों से संबंधित सत्र के लिये श्री कलसिंह जी भाभर द्वारा तथा संस्कृत व अंग्रेजी के साथ संपूर्ण इस शिक्षा शिविर का प्रभार दायित्व निभाने वाले श्री मोहन सिंह डामर ( गुरूजी) का रहा ।
कलसिंह भाभर व इनके सहयोगीयों का यह प्रयास भलेही छोटे स्तर पर था लेकिन समाज में एक नई दिशा देने योग्य था । आज इनके द्वारा आयोजित इस समर कैंप पर भलेही आदिवासी बच्चों की संख्या 25 रही हो लेकिन इस अनुठी पहल के बाद वो दिन दुर नही जब प्रति वर्ष कई अलग-अलग आदिवासी बाहुल्य इलाको में इस प्रकार के समर कैंपो में हजारो की संख्या में आदिवासी बच्चे संस्कार व शिक्षा प्राप्त करेगें ।

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