आचार्य भगवंत उमेश मुनि जी तीन दिवसीय जन्मोत्सव तप आराधना से मनाया

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रायपुरिया लवेश स्वर्णकार …

परम पूज्य आचार्य भगवंत उमेश मुनि जी म सा की 89 जन्म जयंती परम पूज्य महासती श्रीमुक्तीप्रभा जी म. सा.आदि ठाणा पांच की निश्रा में तीन दिवसीय जन्मोत्सव विशेष गुरु गुणानुवाद प्रवचन, तप, आराधना से मनाया गया आज के प्रवचन में सर्वप्रथम 8:00 से 9:00 बजे तक गुरु चालीसा का सामूहिक जाप किया गया तत्पश्चात प्रवचन के प्रारंभ में पूज्य महासती श्री प्रेमलता जी नए सुंदर स्तवन दसो दिशा में गूंजे नाम उमेश गुरुदेव का…. का फरमाया तत्पश्चात पूज्य महासती नित्य प्रभा जी म.सा. ने भ्रमण कराया की जन्मदिन तो सबका आता है पर महापुरुषों का ही जन्मदिन सब मनाते हैं पंच परमेष्ठी के पांचो पदों में आचार्य भगवान तीनों पदों पर विराजमान है गुरुदेव का जीवन संयम से परिपूर्ण था गुरुदेव अपने कर्मों के पहाड़ को तोड़ने के लिए संयम पद पर कठोर नियमों का पालन की एक मुरत थे आप अध्यात्म एवं क्रियाशील के व्यक्तित्व के धनी थे पूज्य महासती जी ने अपने बचपन में गुरुदेव के साथ बिहार की यादें बताएं कहा कि गुरुदेव की क्रिया ने सिद्ध कर दिया
तत्पश्चात कुसुमलता जी म सा ने फरमाया कि गुरुदेव की जैसी कथनी थी वैसी करनी थी आचार्य भगवंत ने वचन सिद्धि को प्राप्त कर लिया था ।
गुरुदेव के वीहार के कई दृष्टांत भी बताएं आपने बताया कि गुरुदेव सदा सभी को फरमाते थे कि धर्म में अडिग रहो भले अड़चन आए उसे संमभाव ,विवेक से सहन करने से उसका फल अच्छा होता है। अंत में परम पूज्य मुक्ति प्रभा जी म.सा. ने फरमाया कि जो वास्तव में ज्ञान दर्शन चरित्र में पारंगत है वही आत्मा भव पार करती है आचार्य भगवंत के जीवन में ज्ञान दर्शन चरित्र का त्रिवेणी संगम था आप तीनों गुणों में समाहित थे आप श्रेष्ठ कवि लेखक कार उच्च शब्दों के रचनाकार सभी कलाओं में निपुण थे । गुरु भगवंत ने ज्ञान कि आराधना कर सर्वोच्च शिखर पर प्राप्त की थी और हम आज और विवेक से कितनी ज्ञान की विरोध ना करते हैं यह में विवेक नहीं या हमारी जागृति की कमी है कि हम ज्ञान की विराट ना करेंगे तो हमें कैसे ज्ञान प्राप्त होगा हमें कभी भी ज्ञान का अनादर नहीं करना सदा विवेक रखना और सभी को ज्ञान बांटने का भाव रखें गुरुदेव की ज्ञान आराधना हमारे लिए बहुमूल्य धरोहर है हमें जो गुरु ज्ञान ज्ञान दे गए और हमें उसकी परवाह नहीं गुरु परम ज्ञानी थे पर अहंकारी नहीं थे गुरु ने कभी भी आचार्य प्रवर्तक पद का अपने नाम के आगे उपयोग नहीं किया था। हमें गौरव है कि हमें ऐसे आचार्य भगवान मिले थे हमें उन्हीं के दिखाए मार्ग पर चलना है ।अंत में पूज्य महासती प्रेमलता जी ने सुंदर स्तवंन जरा ज्ञान की आंखें खोलो आंखें मिचने में क्या सार है… फरमाया।
प्रवचन पश्चात महीला मंडल ने गुरु वंदना एवं अमृता भंडारी ने सुंदर स्तवन गाया ।
तीन दिवसीय जन्म महोत्सव में सामायिक ,प्रतिक्रमण निरंतर जाप के साथ ही एक तेला, छः उपवास, पैसठ एकासना , एवं बियासना तप आराधना हुए

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