आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर काम का बढ़ता बोझ, मानदेय और उत्पीड़न का सवाल

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आलीराजपुर। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर इन दिनों उनके तयशुदा कामों से ज़्यादा गैर-विभागीय ज़िम्मेदारियों का बोझ बढ़ गया है। इससे उनके मूल कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। भारतीय मजदूर संघ से जुड़ी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सहायिका संघ इस स्थिति को लेकर लगातार अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर रही है।

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें बूथ लेवल ऑफिसर (बी.एल.ओ.) जैसे चुनावी काम भी सौंपे जा रहे हैं, जो वास्तव में पंचायत विभाग का काम है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सहायिका संघ की प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य मंजुला लोहार पूछती हैं, “जब सरकार हमें सरकारी कर्मचारी मानती ही नहीं, तो हर सरकारी काम में क्यों लगाया जा रहा है?” उन्होंने बताया कि 1985 से वे मानदेय पर काम करने को मजबूर हैं, जबकि उनके कामों का दायरा लगातार बढ़ रहा है।

नई परेशानियां और कार्रवाई का डर

हाल ही में लागू हुई ई-केवाईसी और फेस कैप्चरिंग की अनिवार्यता ने नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। अब पूरक पोषण आहार उन्हीं हितग्राहियों को मिलेगा जिनकी ई-केवाईसी हो चुकी है, जिससे कार्यकर्ताओं और हितग्राहियों के बीच मनमुटाव बढ़ने की आशंका है।

भारतीय मजदूर संघ के जिला मंत्री धनसिंह कनेश ने बताया कि विभाग कार्यकर्ताओं पर लोकेशन चालू कर काम का दबाव बनाता है। काम पूरा न होने पर मानदेय रोका जाता है, काटा जाता है और सेवा से हटा भी दिया जाता है।

काम का दायरा सीमित करने की मांग

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की मांग है कि उन्हें सिर्फ उनके विभाग का काम सौंपा जाए। उनका कहना है कि अतिरिक्त कामों का बोझ उन पर अनुचित दबाव डाल रहा है, जिससे वे अपने मूल कार्यों को सही से नहीं कर पा रही हैं।

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