अलीराजपुर की राजनीति में भूरिया-महेश पटेल होंगे फिर से एक

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अलीराजपुर लाइव डेस्क ॥ राजनीति भी अजीब चीज होती है इसका शाब्दीक अथ॔ होता है “राज करने की नीति” ओर “चाणक्य से लेकर नीतिश- लालु-मुलायम” तक अपनी सुविधा ओर सहुलियतें देखकर ही अपने राजनीतिक संबध तय करते है ऐसा ही चलता रहता है अलीराजपुर की कांग्रेस की राजनीति में । यहाँ कांतिलाल भूरिया  ओर महेश पटेल या कहे पटेल परिवार के बीच राजनीतिक नजरिए से देखा जाये तो आपसी राजनीतिक सामंजस्य “सोहाद्रपूण॔” नही रहा है रिश्ते खट्टे-मीठे एक निश्चित अंतराल पर होते रहे है विगत विधानसभा चुनाव के बाद से एक बार महेश पटेल ओर कांतिलाल भूरिया के रिश्तों में खटास आनी शुरु हो गई थी जो लोकसभा चुनाव के बाद काफी बढ गई थी , भूरिया ने संगठन मे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर महेश पटेल को हाशिए पर डालना शुरु कर दिया ओर सरदार पटेल को जिला अध्यक्ष बनाकर महेश को संदेश दे दिया कि उनके बगैर भी कांग्रेस चला सकते है फर्क यह आयेगा कि अभी कांग्रेस साधारण चल रही थी जो रेंगने लगेगी ! कांग्रेस को अलीराजपुर में सरपट दोडाने की ताकत तो अब शायद किसी के पास बची नही है । इसके बाद भडके महेश पटेल-राधेश्याम डी की जोडी ने समांनातर कांग्रेस चलाना शुरु कर दिया ओर परिणाम भूरिया ओर महेश पटेल के बीच तनाव इतना बढा कि विगत माह जमकर दोनो के बीच विवाद भी हो गया था ।

 

अब मिलकर करेगे काम

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अलीराजपुर लाइव को मिली जानकारी के अनुसार कांतिलाल भूरिया ओर महेश पटेल ने आपसी मतभेद एक साथ आमने सामने बैठकर सुलझा लिये है ओर एक साथ मिलकर अलीराजपुर मे कांग्रेस का काम मजबूती से करने की सहमति बना ली है आने वाले सप्ताह मे शायद अलीराजपुर मे भूरिया-पटेल एक बार फिर से कांग्रेस का मंच साझा करते नजर आये ।

 

इस मजबूरी ने किया समझोते को मजबूर

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आखिर करीब 8 माह के तनाव के बाद कांतिलाल भूरिया ओर महेश पटेल क्यो एक साथ करीब आये ओर समझोते को मजबूर हुऐ यह एक बडा सवाल है दरअसल अलीराजपुर जिले की बात करे तो खासकर अलीराजपुर जिले मे महेश पटेल परिवार के तीन बार विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद भी पटेल परिवार का आभामंडल कांग्रेस को लेकर बना हुआ है इसका सीधा सा अर्थ है कि कोई दूसरा कांग्रेस के आभामंडल को हासिल नही कर सकता यह बात प्रयास कर के कांतिलाल भूरिया ने भी देख ओर महसूस कर ली..साथ ही साथ बात कर सरदार पटेल की करे तो यु तो साफ सुथरा चेहरा है जैसा मन मे है वैसा ही बाहर भी लेकिन राजनीतिक रुप से जन सरोकार से दुर है तभी तो अपने इलाके के कई छोटे चुनाव भी वह हार गये । ऐसे मे भूरिया के सामने मजबूरी रही होगी कि महेश के साथ बैठा जाये ओर यही हाल महेश का रहा कि भले ही पटेल परिवार का आभामंडल ग्रामीण क्षैत्रो मे हो लेकिन बिना कांग्रेस वह कोई काम का नही है दूसरा भूरिया के खिलाफ अगर वे प्रदेश के नेताओ अरुण यादव या मोहन प्रकाश या सिधिया खेमे की ओर जुडने की कोशिश करते भी है तो यह बडे नेता एक बात पर तो सहमत है कि बडे नेताओं के संसदीय क्षेत्र मे पार्टी की राजनीति में उनके खिलाफ नही जाना । इसका आभास भी महेश पटेल को किसी ना किसी तरह शायद हो गया होगा । कुल मिलाकर दोनो को एक हो जाना ही दोनो के हित मे लगा इसलिए एक साथ चलने पर सहमत हुऐ लेकिन कांग्रेस को जिले मे दोडा पायेगे यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा ।

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